वाल्मीकि समाज का समाजशास्त्रीय अध्ययन बहुत जरूरी : प्रो. सोमनाथ सचदेवा

बाल्मीकि समाज केवल सप्तसिंधु क्षेत्र में ही क्यों : प्रोफेसर अग्निहोत्री

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक

कुरुक्षेत्र, 28 मई : कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सोमनाथ सचदेवा ने कहा कि महाकाव्य रामायण के रचयिता आदि कवि महर्षि वाल्मीकि के रामायण में दिए गए संदेश को आत्मसात करते हुए समाज की समृद्धि के लिए कार्य करना चाहिए और बाल्मीकि समाज का समाजशास्त्रीय अध्ययन की जरूरत है तथा इतिहास और समाजशास्त्र विभाग द्वारा इस विषय पर अध्ययन किया जाना चाहिए। प्रोफेसर सोमनाथ सचदेवा रविवार को प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग में हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी तथा सामाजिक संस्कृतिक अध्ययन केंद्र चंडीगढ़ द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित महर्षि बाल्मीकि और उनकी रामकथा का संदेश विषय पर एक गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे थे।

कुलपति प्रो. सोमनाथ ने कहा कि कि भारत महापुरुषों का देश रहा है तथा अनेक महापुरुषों ने अपने पुरुषार्थ के बल पर देशवासियों का सही मार्गदर्शन किया है संस्कृत के प्रथम महाकाव्य रामायण की रचना करने के कारण ही महर्षि वाल्मीकि को आदि कवि कहा जाता है। महर्षि वाल्मीकि ज्योतिष विद्या व खगोल विद्या के प्रकांड पंडित थे। उन्होंने कई स्थानों पर सूर्य चंद्रमा और नक्षत्रों की स्टिक गणना की है। महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में आने वाले सभी लोग बाल्मीकि थे जिन्होंने महर्षि से शास्त्र और शस्त्र दोनों का ज्ञान प्राप्त किया।

कुलपति प्रो. सोमनाथ ने कहा कि महर्षि वाल्मीकि द्वारा मर्यादा पुरुषोत्तम राम जी की कथा को लिपिबद्ध करना एक महान कार्य था पूरा विश्व उनका ऋणी है। रामायण एक संपूर्ण कथा है जिसमें रामसेतु का भी वर्णन मिलता है। प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग से प्रोफेसर भगत सिंह ने मुख्य अतिथि तथा सभी प्रतिभागियों का इस अवसर पर स्वागत किया।

हरियाणा साहित्य संस्कृति अकादमी के कार्यकारी उपाध्यक्ष प्रोफेसर कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने कहा कि हिंदुस्तान के समाज की रचना अर्थात समाजशास्त्र पर ध्यान नहीं दिया गया है यह बड़ा दुर्भाग्य का विषय है। समाजशास्त्र की दिशा विदेशी विद्वान तय करते हैं । उन्होंने कुकी कौन है इसके बारे में भी अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि वाल्मीकि समाज की सामाजिक संरचना पर भी गहन अध्ययन की जरूरत है। प्रोफेसर अग्निहोत्री ने बताया कि बाल्मीकि समाज केवल सप्तसिंधु क्षेत्र में ही पाया जाता है जिसके अंतर्गत हरियाणा पंजाब शिमला जम्मू और पाकिस्तान इत्यादि इसके अंतर्गत आते हैं।

उन्होंने कहा कि भारतीय इतिहास में विदेशी और प्रशासन को महत्व दिया जा रहा है इतिहास पहले पद में लिखी जाती थी आजकल गद्य में लिखी जाती है। उन्होंने कहा कि वाल्मीकि समाज अधिकतर छावनी क्षेत्र के आसपास ही पाया जाता है। सेंटर फॉर सोशल कल्चरल स्टडीज चंडीगढ़ से एडवोकेट सत्येंद्र सिंह ने भी इस विषय पर अपने विचार रखें। एक दिवसीय गोष्ठी में लगभग 100 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया तथा अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए।

इस मौके पर इतिहास संस्कृति प्रकोष्ठ के सहायक निदेशक डॉ जगदीश प्रसाद, डॉ. अजयवीर सिंह, एडवोकेट रविंदर सिंह, डॉ. अरुण कुमार, मनोज कुमार एपीआरओ आयुष विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र, एडवोकेट करण चौधरी, डॉ. गुरतेज सिंह,डॉ. कुलदीप सिंह, चरणजीत सिंह तथा डॉ. हरिकिशन गणमान्य लोग उपस्थित थे।

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