कमलेश भारतीय 

अभी कांग्रेस कर्नाटक में बम्पर जीत की खुशी भी नहीं मना पा रही क्योंकि चार दिन हो गये परिणाम आये लेकिन स्थिति जस की तस है -मुखायमंत्री के चुनाव को लेकर । किधर जायें -सिद्धरमैया की ओर या डी के शिवकुमार की ओर ? फैसला नहीं हो पा रहा क्योंकि सीधे सीधे फार्मूले से डी के शिवकुमार इंकार कर रहे हैं यानी उपमुख्यमंत्री नहीं बनना चाहते । कांग्रेस हाईकमान को जवाब दे दिया है कि उपमुख्यमंत्री नहीं बनना चाहते । पहले दिन दिल्ली भी नहीं पहुंचे कि मेरे पेट में दर्द है और मेरा जन्मदिन भी है । लोग बधाई देने पहुंच रहे हैं । ऐसा कहते हुए दिल्ली नहीं पहुंचे -बड़े नेताओं की कुर्सी की परिक्रमा नहीं की । सिद्धरमैया पहुंच गये अंर सबको साधने में लग गये । दूसरे दिन स्थिति को भांपते हुए डी के शिवकुमार ने भी दिल्ली की ओर रुख किया लेकिन चलने से पहले बहुत इमोशनल कार्ड खेला ! मीडिया से बोले कि न मैं ब्लैकमेल करूंगा , न पार्टी छोडूंगा और न ही किसी विधायक को तोड़ूंगा ! कांग्रेस मेरी मां है । मेरा कोई विधायक नहीं , सारे 135 विधायक कांग्रेस के हैं ! इस संतमना जैसे बयान के बावजूद लड्डू तो फूट रहे हैं मन में कि मुख्यमंत्री पद ही मिले नहीं तो उपमुख्यमंत्री बन कर क्या करना है ! इतना संतमना व्यवहार राजनीति में कोई करता भी नहीं । यह तो कहने की बातें हैं ! दिल से कोई नहीं कहता ! नहीं तो पहले दिन ही पेटदर्द कैसे ? वैसे शिवकुमार ने कांग्रेस को हर मुश्किल समय में सहारा दिया । जेल काटी तब सिद्धरमैया कहां थे ? राजस्थान के विधायकों कॅ संभाला , हरियाणा जैसे राज्य प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी बने जिस पद को कमलनाथ भी छोड़कर चले गये ! भारत जोड़ो यात्रा में हरियाणा में भी साथ साथ रहे ! 

वैसे इससे पहले कांग्रेस ने मध्यप्रदेश में युवा ज्योतिरादित्य सिंधिया की उपेक्षा कर कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाया और यह प्रयोग बुरी तरह विफल रहा । ज्योतिरादित्य ने बगावत की और कांग्रेस की सरकार पलटने में भाजपा का साथ दिया । यह अलग बात है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ही थे जिन्हें इतना मान सम्मान दिया जाता था और राहुल गांधी के साथ उनकी ड्रीम टीम में थे । अब कांग्रेस को कोसने वालों में ज्योतिरादित्य भी सबसे आगे वाले भाजपा नेताओं में से एक हैं ! 

राजस्थान में पूर्ण बहुमत से कांग्रेस की सरकार बनी । युवा सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री बनाकर साधने की कोशिश की गयी लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक न चलने दी और नाम नाम का उपमुख्यमंत्री रहने दिया । इससे नाखुश सचिव ने बगावत की जो सफल न हुई और उपमुख्यमंत्री पद से भी गये । मान मनोबल के बाद कांग्रेस में ही रहे लेकिन अशोक गहलोत उन्हे सरेआम निकम्मा तक कहने से नहीं चूके ! आजकल सचिन फिर बगावत के मूड में हैं और पंद्रह दिन का अपनी ही सरकार को अल्टीमेटम दे रखा है कि या तो भ्रष्टाचार की जांच करवाओ या फिर मेरे आंदोलन की धार देखो ! अब लगता है अगले विधानसभा चुनाव से पहले यह आर पार की लडाई है दोनों के बीच । इससे लगता है कि एक नेता पाला बदल जायेगा ! कौन ? कह नहीं सकते ! 

इन सब से सबक लेकर यदि कांग्रेस ने कर्नाटक में कोई गलत फैसला लिया तो यहां भी देर सबेर संकट आ सकता है । यह राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का अपना गृहराज्य भी है और यहां मुख्यमंत्री चुनाव में कोई भी गलती उनकी भी राजनीति को प्रभावित करेगी और राजनीतिक कुशलता का परिचय भी देगी ! 

दुष्यंत कुमार कहते हैं :

आप दीवार गिराने के लिये आये थे 

आप दीवार उठाने लगे , ये तो हद है ! 

-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी । 9416047075

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