सुरेश गोयल धूप वाला

हिसार, 8 मई। समलैंगिंग विवाह को यदि मान्यता मिल गई तो सामाजिक व्यवस्था ही बिखर जाएगी। स्वछंदता का साम्राज्य स्थापित हो जाएगा। समलैंगिंग मानसिकता पूरी तरह भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों और संस्कारों के बिल्कुल विपरीत है ।यह बात सामाजिक कार्यकर्ता सुरेश गोयल धूप वाला ने प्रेस को जारी अपने एक व्यक्तव्य में कही।

सुरेश गोयल ने कहा कि समलैंगिंग विवाह को मान्यता देने या न देने को लेकर पूरे देश मे एक बहस छिड़ी हुई है।देश भर की धार्मिक -सामाजिक संस्थाए व बडी संख्या में लोग इसको मान्यता देने के विरोध में उठ खड़े हुए हैं, वंही कुछ मुट्ठी भर लोग इसे मान्यता देने कि पैरवी भी कर रहे है।

उन्होंने कहा कि चूंकि इस विषय में अंतिम निर्णय देश की सर्वोच्च न्यायालय ने करना है। महामहिम राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन द्वारा इसको मान्यता न दीए जाने का अनुरोध किया जा रहा है जो उचित है।

समलैंगिंग विवाह एक ही लिंग के दो लोगो के विवाह को कहा जाता है। क्या इसे तर्क संगत कहा जा सकता है ?

दुनिया के 16 देशों में समलैंगिंग जोड़ो के संयोजन को मान्यता प्रप्त है, परन्तु भारत जैसे देश में तो इस विषय में चर्चा करना भी हास्यस्पद समझा जाता है। पश्चमी देशों की संस्कृति सामाजिक व्यवस्था भारत से पूरी तरह भिन्न है। अपने देश में कुछ वर्ष पूर्व तक तो यह शब्द कभी चर्चा में भी नही रहा।धूप वाला ने कहा कि कुछ सिरफिरे लोगो द्वारा इस विषय में अदालत का दरवाजा खटखटाने के बाद ही यह शब्द प्रचारित हो गया है।

उन्होंने कहा कि समलैंगिंग विवाह के पक्षधर तर्क देते हैं कि विवाह का लाभ सभी को मिले यह उनका मानवाधिकार है। क्या यह प्रकृति विरोधी नही?

सुरेश गोयल ने कहा कि माता-पिता बच्चों को जन्म देते हैं । उन्हें पढ़ाते लिखाते है , उनकी उचित परवरिश करते है उनको रोजगार के साधन उपलब्ध करवाने में उनकी मदद करते हैं , यदि बड़ी होकर उनकी अपनी औलाद बागी होकर अपनी मर्जी से समलैंगिंग विवाह कर लें तो उनकी आशाओं औऱ सपनो पर क्या बीतेगी?उनकी वंश वृद्धि कैसे होगी? जो उनकी बड़ी आशा होती है।बहुत ही जटिल सवाल है।

उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी इसे उचित नही ठहराया जा सकता। मनोविज्ञानिकों का इस विषय में तर्क है कि इस तरह के विवाह के कुछ समय बाद ही मानसिक विकार की स्थिति पैदा हो सकती है और इस तरह के कई मामले उनके समक्ष आए भी है।

भारत का माननीय सर्वोच्च न्यायालय इस विषय में बहुत ही सचेतक है।बहुत ही गहराई के साथ चिंतन कर इस विषय में अपना फैसला देगा। भारतीय समाज को न्याय की पूरी -पूरी उम्मीद है।

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