उच्च शिक्षा में भारत का ग्रॉस इनरोलमेंट रेशो (जीईआर) केवल 30 प्रतिशत। 18 से 23 वर्ष आयु वर्ग से 100 मिलियन से ज्यादा युवा उच्च शिक्षा की परिधि से बाहर। श्री विश्वकर्मा कौशल विश्वविद्यालय ने अनुभव के प्रमाणन का फॉर्मूला ईजाद किया। वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक गुरुग्राम : युवाओं की संख्या भारत की महान मानवीय संपदा है, किंतु देश के करोड़ों युवा उच्च शिक्षा की औपचारिक परिधि से बाहर हैं। मसलन औपचारिक शिक्षा और उच्च शिक्षा के मानकों में हमारा देश बहुत पीछे है। उच्च शिक्षा में भारत का ग्रॉस इनरोलमेंट रेशो (जीईआर) 30 प्रतिशत है। यद्यपि दुनिया के विकसित देशों का जीईआर 60 से 70% के ऊपर है। जीईआर की गणना 18 से 23 साल की आयु वर्ग के अनुसार होती है। दरअसल जीईआर की गणना का यह है वैश्विक मानक है। भारत में इस आयु वर्ग में 140 मिलियन लोग आते हैं। यह एक बड़ा वर्ग है, लेकिन इसमें से केवल 30% ही उच्च शिक्षा में हैं। इसका सीधा सा अर्थ है कि 140 में से 40 मिलियन के आसपास युवा ही उच्च शिक्षा में हैं, जबकि 100 मिलियन युवा उच्च शिक्षा के दायरे से बाहर हैं। इनमें से 50% लोग ऐसे हैं, जो 12 वीं पास हैं, लेकिन फिर भी लेबर मार्केट में हैं। उनके पास अनुभव तो है, लेकिन सर्टिफिकेट नहीं हैं। उनका अनुभव उच्च शिक्षा के लिए उन्हें क्वालीफाई नहीं बनाता। इस अनुभव का कोई विकल्प नहीं, लेकिन फिर भी व्यवस्था और मानक के अनुसार वह उच्च शिक्षा की परिधि में नहीं आते। औपचारिक शिक्षा और अनौपचारिक शिक्षा का वर्गीकरण एक बड़ा अंतर पैदा कर रहा है। अनौपचारिक शिक्षा के आंकलन का कोई व्यवस्थित जरिया नहीं है। दोनों में भेद बढ़ रहा है। डिग्री डिप्लोमा ना होने के कारण अनुभवी लोग अपनी आजीविका में स्थायित्व नहीं ला पा रहे। समाज ने केवल औपचारिक शिक्षा को ही स्वीकृति दी है। यद्यपि अनुभव आधारित अनौपचारिक शिक्षा को डिग्रियों के सामने हेय दृष्टि से देखा गया है। जबकि अनौपचारिक शिक्षा वाले लोगों में अनुभव और समझ दोनों होती हैं। रोजगार के 70 से 80 फ़ीसदी क्षेत्र अनौपचारिक शिक्षा से जुड़े हैं, जबकि बमुश्किल 10 फीसदी फॉर्मल सेक्टर मार्केट है। अनुभव आधारित अनौपचारिक शिक्षा अर्जित करने वाले लोगों को मान्यता देकर उनकी आजीविका को स्थायित्व प्रदान किया जा सकता है। इसके लिए एक बनी बनाई धारणा से बाहर आना होगा। शिक्षण संस्थानों को इस दिशा में गंभीरता से काम करना होगा। यदि हम अनुभव का आंकलन करने का एक मैकेनिज्म डेवलप कर लें तो न केवल भारत के जीईआर में क्रांतिकारी परिवर्तन आ सकता है, बल्कि इन करोड़ों युवाओं के करियर में नए आयाम भी जुड़ सकते हैं। इसके माध्यम से लाखों-करोड़ों लोगों को उच्च शिक्षा के मॉडल में शामिल किया जा सकता है। हमारे देश में औपचारिक और अनौपचारिक शिक्षा का जो भेद है इसका खामियाजा उन करोड़ों लोगों को भुगतना पड़ता है, जिनके पास औपचारिक शिक्षा के प्रमाण पत्र नहीं है, परंतु अनुभव में वह किसी से कम नहीं हैं। ऐसे लोगों को उच्च शिक्षा के आयाम में शामिल करने के लिए रिकॉग्निशन ऑफ प्रायर लर्निंग (आरपीएल ) एक महत्वाकांक्षी अवधारणा है। इसके माध्यम से करोड़ों लोगों को शिक्षा के नूतन मॉडल में शामिल किया जा सकता है। आरपीएल अनुभव को मान्यता देकर अकादमिक श्रेष्ठता की श्रेणी में खड़ा करने का एक सफल मंत्र। अपने तजुर्बे के बल पर उद्योग के पहिए को आगे बढ़ा रहे लोगों को अकादमिक जगत में अपेक्षित पायदान पर पहुंचाने की दिशा में यह बड़ा कदम है। इस लिहाज से आरपीएल को रिवॉल्यूशन इन प्रोफेशनल लाइफ कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। अनुभव के आधार पर असंख्य लोगों ने इंडस्ट्री को हमेशा अपने कंधों से उभारा है, किंतु एक कसक हमेशा बनी रही। दरअसल समाज में शिक्षा आधारित डिग्रियों और विद्या आधारित अनुभवों के बीच एक गहरी खाई शुरू से रही है। आरपीएल इस खाई को पाटने का नायाब नुक्ता है। एक साल में ही इसके माध्यम से बी. वॉक की डिग्री देने की शुरुआत हुई है। बशर्ते उन कामगारों ने 12 वीं क्लास पास कर रखी हो और तीन साल का इंडस्ट्री में अनुभव हो। श्री विश्वकर्मा कौशल विश्वविद्यालय ऐसे लोगों को मात्र 1 साल में डिग्री प्रदान करेगा। आरपीएल सही मायने में अनुभवी लोगों का सम्मान है। अनुभव का जीवन में कोई शॉर्टकट नहीं है। बहुत से अनुभवी लोगों के पास बेशक डिग्रियां न हों, लेकिन सभी डिग्रीधारियों के पास अनुभव नहीं है। यद्यपि अब अनुभवी लोगों के पास डिग्रियां भी होंगी। आरपीएल के माध्यम से उनके अनुभव का मूल्यांकन किया जा सकता है और उन्हें प्रमाणित किया जा सकता है। जैसे ही आरपीएल के माध्यम से वह प्रमाणित होते हैं, उनके लिए रोजगार की संभावनाएं प्रबल होंगी। उनकी कमाने की क्षमता और योग्यता बढ़ेगी। प्रमाणन से उनकी ग्लोबल मार्केट में उद्योग और कारपोरेट दोनों में स्वीकृति बढ़ेगी। रिकॉग्निशन ऑफ प्रायर लर्निंग हमारे जीईआर को बढ़ाने में ब्रह्मास्त्र साबित हो सकता है। जब किसी को आरपीएल के अंतर्गत लाते हैं तो उनको नई चीजें सीखने को मिलती हैं। ब्रिज कोर्स के माध्यम से उनके अंदर की उत्पादकता, विचारशीलता और अन्वेषण बाहर आता है। वह जिस संस्थान में काम कर रहे होंगे, उसके लिए पहले से और ज्यादा उपयोगी हो जाएंगे। आरपीएल के माध्यम से आगे बढ़ेंगे तो उनके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास होगा। युवाओं का आत्मविश्वास बढ़ेगा। दर्जा बढ़ेगा और साथ ही उनके वेतन में भी बढ़ोतरी होगी। इससे नए अवसर पैदा होंगे। अनुभवी लोग पदोन्नत होंगे तो नीचे नए पद सृजित और खाली होंगे। परिणाम स्वरूप रोजगार की संभावनाएं बढ़ेंगी। अगर विश्वविद्यालयों में अनुभवी लोगों को लाया जाएगा तो वह न केवल ब्रिज कोर्स के माध्यम से उच्च शिक्षा को पूरा कर सकेंगे, बल्कि एक नए विचार का प्रसार होगा। कैंपस में भी उनके अनुभव से एक नया वातावरण बनेगा। विद्यार्थियों और शिक्षकों को भी कुछ अनुभवजन्य चीजें पता चलेंगी। अनुभवी लोगों को पढ़ाने के लिए शिक्षकों पर रचनात्मक दबाव आएगा और शिक्षण कौशल में बढ़ोतरी होगी। शिक्षण संस्थानों के परिसर में उत्कृष्टता की एक नई संस्कृति पैदा होगी। अनुभवी लोग जब यहां से प्रमाण पत्र लेकर लौटेंगे तो फील्ड में उनकी रचनात्मकता और नवाचार दोनों में बढ़ोतरी स्वाभाविक है। इस अभ्यास से नए अविष्कार हो सकते हैं। आरपीएल के हाइब्रिड में नए कोर्स ऑनलाइन और क्लास रूम, दोनों माध्यम से करवाए जा सकते हैं। इससे जीईआर बहुत तेजी से आगे बढ़ेगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के जीईआर को 50 फीसद तक ले जाने के लक्ष्य को आरपीएल के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। साथ ही अनुपयोगी क्षमताओं का इस्तेमाल किया जा सकेगा। जब आरपीएल के माध्यम से इन युवाओं को सर्टिफिकेट मिलेंगे और अनुभव आधारित विचार उनको उद्यमिता की ओर अग्रसर भी कर करेंगे। भारत को आज उद्यमियों और उद्यमिता की आवश्यकता है। आरपीएल उद्यमिता को बल देगा और देश की अर्थव्यवस्था में एक योगदान सुनिश्चित करेगा। इससे सामाजिक समावेश होगा, जो लोग विभिन्न कारणों से उच्च शिक्षा की मुख्यधारा से बाहर हैं, उनको भी वापस उच्च शिक्षा में लाया जा सकता है। औपचारिक शिक्षा के साथ जुड़कर और अनुभव के आधार पर प्रमाण पत्र अर्जित करने के बाद इस युवा शक्ति के लिए विदेशों में भी अपार संभावनाएं होंगी। श्री विश्वकर्मा कौशल विश्वविद्यालय ने देश का पहला कौशल विश्वविद्यालय होने के नाते आरपीएल को नवाचार के रूप में लिया है। यह बदलते वक्त के साथ नवाचार का अद्भुत मॉडल है। इससे हम युवा शक्ति का मूल्यांकन और प्रमाणन करके एक नई स्फूर्ति के साथ समाज की प्रगति में उन को शामिल कर सकते हैं। उन्हें नई दिशा देकर भारत में अन्वेषण, रचनात्मकता और उद्यमिता को बल दे सकते हैं। Post navigation अब जनता नहीं सुन रही मन की बात : पंकज डावर मोदी ने समाज सुधारकों को मन की बात के जरिए दिया मंच – राव इंद्रजीत