खुली आंखों देखें दुनिया , अच्छा साहित्य पढ़ें नये रचनाकार

कमलेश भारतीय

प्रतिष्ठित कथाकार शेखर जोशी

हरियाणा ग्रंथ अकादमी की ओर से शुरू की गयी पत्रिका के प्रवेशांक नवम्बर , 2012 के अंक में हिंदी के लब्ध प्रतिष्ठित कथाकार शेखर जोशी से कथा विधा पर चर्चा की गयी थी । कल पंचकूला के सेक्टर 14 स्थित हरियाणा अकादमी भवन जाना हुआ तो प्रवेशांक ले आया ।

-हिंदी कहानी में वाद और आंदोलन कैसे शुरू हुए ?
-हिंदी कहानी में वाद और आंदोलन की शुरूआत का रोचक तथ्य यह है कि पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी ‘उसने कहा था ‘ सन् 1915 में प्रकाशित हुई थी । संवेदना व शिल्प की दृष्टि से यह कहानी अपने रचनाकाल में बेजोड़ थी और आज भी है ! इस नयेपन के बावजूद गुलेरी ने इसे नयी कहानी नहीं कहा ।

प्रेमचंद , सुदर्शन , जैनेंद्र , अज्ञेय , पहाड़ी, इलाचंद्र जोशी और अमृत राय ने भी सहज ढंग से कहानी के विकास में अपना योगदान दिया लेकिन किसी आंदोलन की घोषणा नहीं की ।

संभवतः सन् 1954 में कवि दुष्यंत कुमार ने ‘कल्पना’ पत्रिका में कहानी विधा पर केंद्रित एक आलेख लिखा और स्वयं खूब जोर शोर से ‘नयी कहनी’ का नारा बुलंद किया । अपने अभिन्न मित्रों मार्कंडेय व कमलेश्वर की कहानियों को नयी कहानी की संज्ञा दी ! संपादक भैरव प्रसाद गुप्त और आलोचक नामवर सिंह ने भी इस नामकरण पर अपनी मुहर लगा दी तो यह नाम पड़ा !

नयी कहानी के प्रवक्ता कहानीकारों की दिगंतव्यापी कीर्ति को देखकर ही शायद आने वाली पीढ़ियों के कहानीकारों ने भी अपने लिए एक नया नाम खोजने की परंपरा चलाई ताकि अपना वैशिष्ट्य रेखांकित किया जा सके ! जो भी हो कहानी को किसी वाद या आंदोलन से लाभ या नुकसान नहीं हुआ । कालांतर में वे ही कहानियां सर्वमान्य हुईं जिनमें अपना युग का यथार्थ प्रतिबिंबित था और कथ्य और शिल्प के स्तर पर बेजोड़ थीं !

-क्या कविता में सन्नाटा है ?
-कौन कहता है कि कविता में सन्नाटा है ? नये ऊर्जावान , प्रतिभाशाली कवि बहुत अच्छी कविताएं लेकर आ रहे हैं । हिमाचल , उत्तराखंड , छत्तीसगढ़, बिहार , मध्यप्रदेश और देश के अन्य भागों से कवि अच्छा लिख रहे हैं । प्रकाशकों से पूछ कर देखिए उनके पास कितने काव्य संग्रहों की पांडुलिपियां प्रकाशन की बाट जोह रही हैं !

-क्या कविता की तरह कथा में भी सन्नाटे की बात की जा सकती है ?
-कहानी में भी कोई सन्नाटा नहीं । जितने नये कहानीकार इस दौर में उभरे हैं उतने तो पचास दशक में भी नही थे !

-क्या कहानी पर बौद्धिकता भारी पड़ रही है ?
-कहानी पर बौद्धिकता हावी नहीं हो रही । कुछ लोग कई माध्यमों से अर्जित ज्ञान को अपनी कहानियों में प्रक्षेपित कर रहे हैं ! ऐसा प्रतीत होता है कि बौद्धिकता हावी हो गयी ! हां , कुछ प्रबुद्ध कहानीकार वाकई अच्छे बौद्धिक हैं । सहज ढंग से अपनी अभिव्यक्ति में बौद्धिकता का आभास देते हैं । यह स्वागत् योग्य है ।

-पत्र पत्रिकाओं में साहित्य का स्थान कम होता जा रहा है । ऐसा क्यों ?
-कथा के ही नहीं समाचारपत्रों के रविवारीय अंकों में भी पहले जो साहित्यिक सामग्री रहा करती थी अब वह लुप्त होती जा रही है । कहानी के लिए यदि पत्रिकाओं में पृष्ठ कम होने की शिकायत है तो यह स्वीकार करना होगा कि कुछ पत्रिकायें कहानी पर ही केंद्रित हैं बहुत कहानियां आ रही हैं । कितना पढ़ेंगे ? संस्मरण , यात्रा वृत्तांत , निंदापुराण इस कमी को पूरा कर ही रहे हैं न !

-नये रचनाकारों के नाम कोई संदेश देना चाहेंगे ?
-नये रचनाकारों के नाम कोई संदेश देने की पात्रता मैं स्वयं में नही देखता ! जैसे हमने खुली आंखों दुनिया को देखकर लिखा , उस्ताद लेखकों के साहित्य को पढ़कर सीखा ,अपने समकालीन रचनाकारों की रचनाओं की बारीकियों को समझा वैसे ही किया जाये तो कुछ हासिल किया जा सकता है । आज के समाज को समझने के लिए साहित्य के अलावा अन्य विषयों की भी अच्छी जानकारी उतनी ही जरूरी है । सबसे बड़ी बात है आत्मविश्वास। धैर्य की ! साहित्य में कोई शाॅर्टकट नहीं होता !

-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी । 9416047075

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