देवकुमार ……समाजसेवी

सिर्फ एक छलावा बनकर रह गया है!

प्रतिवर्ष शिक्षा निदेशालय सर्कुलर जारी करता हैं,

जरूरतमंद अभिभावक उम्मीद भरी निगाहों से देखते हैं और हर साल हताश होकर शिक्षा के व्यवसायी करण का निवाला बनते हैं !

अपना पेट काटकर शिक्षा के व्यवसाय के धन्ना सेठों का साम्राज्य खड़ा करने में योगदान करते हैं!

शिक्षा का अधिकार,वास्तव में एक प्यारा शब्द है जिसे हर जरूरत मंद अभिभावक सुनना चाहता है।

हर माता-पिता और व उनका बच्चा शिक्षा के मौलिक अधिकार से अध्ययन,सस्ती शिक्षा पाकर कर अपने जीवन को बेहतर जीवन जीने व राष्ट्र निर्माण में योगदान देने के लिए आगे बढ़ना चाहते हैं। लेकिन, सवाल यह है कि अगर सरकार के पास पर्याप्त सुविधाएं हैं, तो क्या उनके पास शिक्षा का अधिकार देने के लिए बुनियादी ढांचा है या .यह सिर्फ रिकॉर्ड के लिए एक कागजी काम है।

सरकार के पास ऐसा करने के लिए एक शिक्षा मंत्रालय पूरा सिस्टम और बुनियादी ढांचा है,!

लेकिन शिक्षा का व्यवसायी करण निजी स्कूल माफिया ऐसा नहीं होने देंगे।

शिक्षा एक बड़ा व्यवसाय है जिसमें बड़े व्यवसाय और कॉर्पोरेट घरानों द्वारा बहुत चकाचोंध के नाम पर शिक्षा के मौलिक अधिकार पर अपना एकछत्र राज कायम कर रखा है!एक बच्चे को सर्वोत्तम शिक्षा के साथ तैयार कर सकते हैं। भारी शुल्क और सरकारी समर्थन के साथ ये स्कूल माता-पिता और बच्चे के दिमाग पर राज करते हैं और शिक्षा विभाग इन निजी स्कूलों द्वारा प्रदान की गई मिठाई के साथ चुप बैठ जाता है।

राज्य के जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी!
फी एंड फण्ड रेगुलेटरी कमेटी!
सब एक क्लर्क की तरह काम करते हैं !

यह सिर्फ एक दंतहीन सर्कस का बाघ है जिसमें कोई शक्ति नहीं है सिर्फ एक क्लर्क के रूप में कार्य करता है।

शिक्षा सेवा है सिर्फ कागजों में!
एजुकेशन एक्ट में अमूलचूल बदलाव की जरूरत है!
क्रमशः……..

error: Content is protected !!