भारत सारथी

किसी मामले में दोष साबित होने के बाद किसी जनप्रतिनिधि के ऑटोमैटिक डिस्क्वॉलिफिकेशन के प्रावधान के खिलाफ शनिवार को सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी को 2019 के मानहानि मामले में दोषी ठहराए जाने और लोकसभा सांसद के रूप में अयोग्य घोषित किए जाने के एक दिन बाद ये पीआईएल दाखिल की गई है।

जनहित याचिका में कहा गया है कि पीआईएल दाखिल करने का मुख्य कारण राहुल गांधी की अयोग्यता का मुद्दा है। पीआईएल में तर्क दिया गया है कि अधिनियम के चेप्टर-III के तहत अयोग्यता पर विचार करते समय आरोपी के नेचर, गंभीरता, भूमिका जैसे कारकों की जांच की जानी चाहिए।

किसने दायर की है ये जनहित याचिका?

केरल की एक कार्यकर्ता आभा मुरलीधरन की ओर से सुप्रीम कोर्ट में ये जनहित याचिका दायर की गई है। आभा मुरलीधरन के मुताबिक, धारा 8 (3) अयोग्यता के नाम पर विभिन्न राजनीतिक दलों की ओर से चलाए जाने वाले झूठे राजनीतिक एजेंडे को बढ़ावा दे रही है, इसलिए ये धारा राजनीतिक हित के लिए किसी जनप्रतिनिधि की ओर से लोकतांत्रिक ढांचे पर सीधा हमला है जिससे देश की चुनावी व्यवस्था में भी अशांति पैदा हो सकती है।

जनप्रतिनिधि अधिनियम 1951 की धारा 8 (3) में क्या लिखा है?

जनप्रतिनिधि अधिनियम 1951 की धारा 8 (3) में लिखा है कि अगर किसी सांसद या विधायक को दो साल या उससे ज्यादा की सजा होती है तो तत्काल उसकी सदस्यता चली जाती है। साथ ही अगले 6 साल तक चुनाव लड़ने पर भी रोक लग जाती है। आभा मुरलीधऱन की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि लिली थॉमस मामले में आए फैसले का राजनीतिक दलों में व्यक्तिगत प्रतिशोध के लिए खुले तौर पर दुरुपयोग किया जा रहा है।

क्या है लिली थॉमस केस?

साल 2005 में केरल के वकील लिली थॉमस और ‘लोकप्रहरी’ नाम के NGO के महासचिव एसएन शुक्ला ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की। याचिका में जनप्रतिनिधि कानून की धारा 8 (4) को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई। दलील दी गई कि ये धारा दोषी सांसदों-विधायकों की सदस्यता को बचाती है। तर्क दिया गया कि धारा 8 (4) के तहत अगर मामला ऊपरी अदालत में लंबित है तो फिर उन्हें अयोग्य नहीं करार दिया जा सकता।

लिली थॉमस और एनजीओ की ओर से दायर याचिका में संविधान के अनुच्छेद 102 (1) और 191 (1) का भी हवाला। दिया गया। बता दें कि अनुच्छेद 102 (1) में सांसद और 191 (1) में विधानसभा या विधान परिषद सदस्य को दोषी ठहराए जाने के बाद अयोग्य ठहराने का प्रावधान है। 10 जुलाई 2010 को सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस एके पटनायक और जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की बेंच ने फैसला सुनाया। कोर्ट ने फैसले में कहा कि केंद्र सरकार के पास धारा 8 (4) को लागू करने का अधिकार नहीं है। अगर किसी मौजूदा सांसद या विधायक को दोषी पाया जाता है तो जनप्रतिनिधि कानून की धारा 8 (1), 8 (2) और 8 (3) के तहत सदस्य अयोग्य हो जाएगा।

अब जानते हैं आखिर क्या है जनप्रतिनिधि कानून?

जनप्रतिनिधि कानून साल 1951 में आया था। इस कानून की धारा 8 में लिखा है कि अगर किसी सांसद, विधायक या विधान परिषद सदस्य को किसी आपराधिक मामले में दोषी ठहराया जाता है, तो दोषी ठहराए जाने के दिन से लेकर आगले 6 साल तक दोषी सदस्य कोई चुनाव नहीं लड़ पाएगा।

अब धारा 8 (1) में उन अपराधों का जिक्र किया गया है जिसके तहत दोषी साबित जाने पर सदन के सदस्य के चुनाव लड़ने पर रोक लग जाती है। दो समुदायों के बीच घृणा बढ़ाना, भ्रष्टाचार, दुष्कर्म जैसे अपराधों का जिक्र किया गया है जिसमें दोषी ठहराए जाने पर सदस्य चुनाव नहीं लड़ सकते।

इस कानून की धारा 8 (3) में कहा गया है कि अगर किसी सांसद, विधायक को दो साल या उससे ज्यादा की सजा होती है तो उसकी सदस्यता तत्काल चली जाती है। साथ ही अगले 6 साल तक चुनाव लड़ने पर भी रोक लग जाती है।

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