भारत सारथी

नई दिल्ली। 14 विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार पर अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट से गिरफ्तारी, रिमांड और जमानत के लिए दिशा-निर्देश तय करने की मांग की है। कोर्ट पांच अप्रैल को उनकी इस मांग पर विचार करने के लिए राजी हो गया है।

सरकार बनाम विपक्ष की लड़ाई और तेज होने के आसार

कांग्रेस के नेतृत्व में 14 विपक्षी दलों के इस कदम से सरकार बनाम विपक्ष की लड़ाई और तेज होने के आसार हैं। जांच एजेंसियों के लिए कुछ दिशा-निर्देश की मांग करने वाले दलों में द्रमुक, राजद, भारत राष्ट्र समिति, आप, तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, झामुमो, जदयू, माकपा, भाकपा, सपा, शिवसेना (उद्धव गुट) और जम्मू-कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस शामिल हैं।

पांच अप्रैल को होगी मामले की सुनवाई

प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने विपक्षी दलों की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी की दलीलें सुनने के बाद कहा कि इस याचिका पर पांच अप्रैल को सुनवाई होगी। सिंघवी ने कहा कि हम भविष्य के लिए दिशा-निर्देश चाहते हैं। 14 दल सीबीआइ और ईडी सरीखी एजेंसियों के दुरुपयोग के खिलाफ एकमत हैं। उन्होंने दावा किया कि सीबीआइ और ईडी के 95 प्रतिशत प्रतिशत मामले विपक्षी नेताओं के खिलाफ हैं।

सीबीआइ और ईडी द्वारा दायर मामलों की संख्या बढ़ने का दिया हवाला

सिंघवी ने राजग के सत्ता में आने के बाद सीबीआइ और ईडी द्वारा दायर मामलों की संख्या बढ़ने का भी हवाला दिया। उनका कहना था कि 2014 के पहले और उसके बाद के आंकड़े देखे जा सकते हैं। मामलों में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है, जबकि दोषसिद्धि की दर चार से पांच प्रतिशत है। हम चाहते हैं कि गिरफ्तारी से पहले और उसके बाद जमानत के लिए कुछ दिशा-निर्देश तय किए जाएं।

बुनियादी अधिकार का हो रहा है हनन

सिंघवी की दलील थी कि इस चलन के कारण सरकार के खिलाफ असहमति और असंतोष व्यक्त करने के लोगों के बुनियादी अधिकार का हनन हो रहा है। याचिका में कहा गया है कि गंभीर आपराधिक या हिंसा वाले मामलों को छोड़कर गिरफ्तारी और रिमांड के लिए तिहरे परीक्षण का सहारा लिया जा सकता है। क्या अभियुक्त के देश से भागने का खतरा है, क्या सुबूतों से छेड़छाड़ किए जाने की आशंका है या गवाहों को डराने-धमकाने या प्रभावित करने का काम किया जा सकता है।

दलील में कहा गया है कि अगर ये शर्तें पूरी नहीं की जाती हैं तो जांच की जरूरतों के अनुसार अन्य विकल्पों का सहारा लिया जा सकता है, जैसे निश्चित घंटों के लिए पूछताछ या फिर अधिकतम घर में नजरबंदी जैसे उपाय। इसी तरह जमानत के लिए इस सिद्धांत का सभी अदालतों में पालन किया जाना चाहिए कि बेल नियम है और जेल अपवाद। ऐसा उन मामलों में बेहद जरूरी है जिनमें हिंसा की घटनाएं शामिल नहीं है। जमानत से इन्कार तभी किया जाए जब तिहरे परीक्षण का फार्मूला लागू कर लिया गया हो।

विशेष कानूनों के तहत रिहा करने पर दिया जोर

विपक्षी दलों की यह भी दलील है कि अगर ऐसा लगता है कि मुकदमा छह महीने में पूरा नहीं होगा तो जब तक तिहरे परीक्षण की शर्त पूरी न हो तब तक अभियुक्त को पीएमएलए जैसे विशेष कानूनों में भी जमानत पर रिहा कर दिया जाना चाहिए।

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