अजीत सिंह

हिसार। मार्च 19 – हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार के पूर्व प्रोफेसर व जाने माने कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर आर बी श्रीवास्तव का कहना है कि केवल फसलों का न्यूनतम मूल्य बढ़ाने से कृषि लाभकारी व्यवसाय नहीं बनेगी, इसके लिए कृषि को बाजारोन्मुखी बना कर राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापार से जुड़ना होगा। अब उत्पादनों की क्वालिटी, प्रतिस्पर्धी मूल्य व समय पर सप्लाई के जरिए ही जुड़ा और टिका जा सकता है। वह कृषि विकास की चुनौतियों को लेकर वानप्रस्थ संस्था में एक गोष्ठी को संबोधित कर रहे थे।   

प्रो श्रीवास्तव हरियाणा सरकार द्वारा डॉ आर एस परोदा की अध्यक्षता में गठित हरियाणा किसान आयोग के सलाहकार रहे हैं । उन्होंने डा० आर एस परोदा कमेटी 2019 के उस महत्वपूर्ण सुझाव की जानकारी साझा की जिसके अनुसार वर्तमान कृषि विज्ञान केंद्रों को “सूचना टेक्नोलॉजी पर आधारित ज्ञान केंद्रों व नॉलेज सेंटरों में बदलने की अनुशंसा की गई है ताकि ये केन्द्र किसानों को आधुनिक ज्ञान व प्रशिक्षण देकर उनका समयानुकूल सशक्तिकरण कर सकें। ये केंद्र किसानों के व्हाट्सएप ग्रुप्स बना कर उन्हें उनकी समस्याओं के तुरंत निदान का कार्य करें। अब यह बहुत आवश्यक हो गया है कि प्रगतिशील सफल किसानों के प्रेरणादायक उदाहरण दे कर किसानों को नवाचार करने, टेक्नोलॉजी और कृषि व्यापार के नए ढंगों को अपनाने के लिए प्रेरित करें।     

प्रो श्रीवास्तव ने हरियाणा के सुल्तानसिंह का मछली उत्पादन, प्रोसेसिंग, पैकेजिंग और देश विदेश में बिक्री का उदाहरण दिया। उन्होंने सोनीपत जिले के कमल सिंह चौहान का भी ज़िक्र किया जिन्होंने बेबी कार्न और स्वीट कार्न की आधुनिक खेती व सफल व्यवसायीकरण करके किसानों के सामने अद्वितीय उदाहरण पेश किया है। एक अन्य उदाहरण उन्होंने उत्तर प्रदेश के टुंडला के पास के नारकी, गांगिनी आदि गांवों का दिया जहां किसानों ने शिमला मिर्च जैसी सब्जियों का आधुनिक तकनीकों से उत्पादन और व्यापार के माध्यम से सैंकड़ों युवाओं को रोज़गार दिया है जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सकारात्मक परिवर्तन आया है।
  
उत्तर प्रदेश के मैनपुरी ज़िले में अपने पैतृक गांव का ज़िक्र करते हुए प्रो श्रीवास्तव ने कहा कि टेक्नोलॉजी व व्यवसायीकरण अपनाने से गांव की आर्थिक हालत अच्छी हो गई है। कुछ युवाओं ने ट्रैक्टर व थ्रेशर से कस्टम हायरिंग का काम शुरू कर दिया है। तकनीकों को अपनाने से कल्लर ज़मीन अब उपजाऊ बन गई है। उन्होंने कहा कि कुछ गलतियां भी हो गईं हैं जैसे कि तालाब खत्म हो गए हैं, बरगद, नीम और पीपल जैसे विशाल पेड़ भी गांव में बहुत कम हो गए हैं। यही पेड़ विषैली गैसों जैसे कि कार्बन डाइआक्साइड को सोखने का बड़ा काम करते थे। तालाब भूजल स्तर ठीक बनाने में योगदान करते थे। इस तरह की गलतियों को गांवों में सुधारने की आवश्यकता है। कृषि में सोलर ऊर्जा के उपयोग को भी बढ़ावा देने की आवश्यकता है। जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण भी कृषि के लिए बड़े मुद्दे बन रहे हैं। अत: इस विषय पर गहन विचार व प्रसार करके समस्या के निवारण के लिए कदम उठाने की आवश्यकता है।     

उन्होंने कहा कि पराली से पेट्रोल बनाने का सफल प्रयोग पानीपत रिफाइनरी ने किया है जिसे भरपूर प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।  

प्रो श्रीवास्तव ने कहा कि किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी डीलर के ज़रिए न देकर सीधे किसान के बैंक खाते में दी जानी चाहिए। ग्रीनहाउस की वास्तविक लागत और सब्सिडी के माध्यम से बनाए गए ग्रीनहाउस की लागत बेमेल होती है जिससे किसान स्वयं को ठगा हुआ पाता है इसी तरह का सिलसिला अंडरग्राउंड सिंचाई के पाईपों को लेकर भी है। इस व्यवस्था में सुधार होना चाहिए।  

प्रो श्रीवास्तव ने कहा कि किसानों को लेकर एम एस स्वामीनाथन कमेटी रिपोर्ट, भूपेन्द्र सिंह हुडा कमेटी रिपोर्ट और डॉ आर एस परोदा कमेटी रिपोर्ट सहित कई महत्वपूर्ण रिपोर्टस आई हैं पर पूरी तरह अमल किसी पर नहीं हुआ। ये सभी रिपोर्ट्स किसान केन्द्रित व छोटे किसानों के हितों को ध्यान में रखकर तैयार की गई हैं। अधिकतर किसानों और कृषि वैज्ञानिकों को अंग्रेजी में लिखी इन रिपोर्टों की सही जानकारी भी नहीं है। इसीलिए प्रो श्रीवास्तव ने सरल हिंदी में छोटे वीडियो तैयार किए हैं जिन्हें वे किसानों व कृषि से जुड़ी संस्थाओं को भेजते रहते हैं।    

कृषि संबंधी तीन कानूनों की वापसी का जिक्र करते हुए प्रो श्रीवास्तव ने कहा कि असल में सरकार किसानों को इनका सही महत्व नहीं समझा सकी और इसीलिए इन्हें वापिस लेना पड़ा।   

उन्होंने कहा कि भारत गेहूं और चावल के मामले में जरूरत से बहुत ज्यादा उत्पादन कर रहा है पर हमारा निर्यात आशातीत नहीं हो पा रहा है क्योंकि विश्व मार्केट में क्वालिटी की मांग है। ऑस्ट्रेलिया फार्टीफाइड और धूल रहित गेहूं लेकर आ गया है जबकि हमारे गेहूं में पेस्टीसाइड मिलता है। मिलावट के कारण चावल की कई खेप वापिस आ गई थीं। हम चीनी समय पर निर्यात नहीं कर सके, इसलिए ऑर्डर रद्द हो गए। डा० श्रीवास्तव ने खुशी जाहिर की कि हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के गेहूं विभाग ने भी फार्टीफाइड, हीट टालरैंट व अधिक पैदावार देने वाली किस्मों के विकास पर बहुत सराहनीय काम किया है।

देश में बंदरगाहों व बाजारों तक माल ढुलाई के लिए रेलवे के दो डैडीकेटिड फ्रैट कोरीडोर्स, एक्सप्रेसवेज व जलमार्ग बनने तथा दादरी, रेवाड़ी व अन्य अनेकों स्थानों पर लॉजिस्टिक हब बनने से कृषि व अन्य निर्यात को बढ़ावा मिलेगा , रोजगार बढ़ेंगे, स्किल्ड मानव संसाधनों की मांग बढ़ेगी। अत: किसानों व युवाओं को उसी दिशा में सोचने व पहल करने की आवश्यकता है

वानप्रस्थ की गोष्ठी में शामिल कृषि विश्वविद्यालय के कई पूर्व प्रोफेसरों ने भी भाग लिया। इनमें डॉ राणा, प्रो खरब, प्रो जे के डांग, प्रो सुदामा अग्रवाल के इलावा दक्षिण हरियाणा बिजली वितरण निगम के पूर्व चीफ कम्युनिकेशन ऑफिसर डी पी ढुल तथा दूरदर्शन के पूर्व समाचार निदेशक अजीत सिंह शामिल थे।

error: Content is protected !!