महिलाओं का विकास रुकते ही दुनिया का विकास ठहर जाता है; वानप्रस्थ में गोष्ठी

अजीत सिंह

हिसार। मार्च 11 –  महिला दिवस के उपलक्ष्य में वानप्रस्थ संस्था द्वारा सीनियर सिटीजन क्लब में आयोजित चर्चा में महिला सदस्यों ने उन सभी मुद्दों पर दिल खोलकर बात की जो कहीं गहरे में उन्हें चुभन देते हैं। जिन मुद्दों की पहचान कर उनके समाधान की बात की गई उनमें माता पिता और समाज द्वारा बेटा बेटी में फर्क, दहेज़ का मसला, संपत्ति में हक, झूठे सम्मान के लिए युवाओं की हत्या,   समान वेतन, बाल विवाह, सास बहू के झगड़े, राजनीति में हिस्सेदारी व महिलाओं के लिए स्कूल कॉलेजों व दफ्तरों में शौचालय जैसी सुविधाओं के अभाव के मुद्दे शामिल थे। इस बात पर सब एकमत थे कि महिला सशक्तिकरण का मूलाधार शिक्षा और सुरक्षा में है।

चर्चा की शुरुआत करते हुए प्रो सुनीता श्योकंद ने विश्व स्तर तथा राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं के साथ भेदभाव के आंकड़े पेश करते हुए कहा कि  महिलाओं के लिए सुरक्षा और पोषण के मुद्दे महिला सशक्तिकरण के मार्ग में आज भी बाधा बने हुए हैं हालांकि कानून के हिसाब से उन्हें पुरुषों के बराबर अधिकार प्राप्त हैं। इसके लिए समाज की सोच बदलने की आवश्यकता है। उन्होंने ने कहा कि जहां महिलाओं का विकास रुक जाता है, वहीं दुनिया का विकास भी रुक जाता है।   

प्रो पुष्पा खरब का कहना था कि लड़कियों और महिलाओं के साथ किस तरह का व्यवहार किया जाना चाहिए, इस बारे में परिवार द्वारा लड़कों को संस्कार दिए जाने चाहिएं। उन्होंने कहा कि समाज में बेटे की चाहत इतनी प्रबल हो गई है कि बेटियों के पिता को बेऔलादा समझा जाता है।  

प्रो पुष्पा सतीजा का कहना था कि गर्भ में लिंग का पता लगाने की तकनीक के आने से कन्या भ्रूण हत्या का चलन बढ़ गया है । इससे लड़के लड़कियों का अनुपात बिगड़ रहा है, बहुत से लड़कों के रिश्ते नहीं हो रहे हैं और समाज में महिलाओं के प्रति अपराध बढ़ रहे हैं। 

प्रो सुनीता जैन का कहना था कि कामकाजी महिलाओं के पतियों को घर के काम काज में उनका हाथ बटाना चाहिए जैसा कि पश्चिमी देशों के समाज में होता है।

मांओं को बेटियों की तरह बेटों को भी घर का काम सिखाना चाहिए ताकि वे बड़े होकर ये काम करते हुए शर्म या झिझक महसूस न करें।  

वीना अग्रवाल का कहना था कि यह बड़ी विडंबना है कि ढाबे या होटल का रसोइया घर आकर अपना खाना नहीं बनाता, बीवी से ही बनवाता है। 

पूर्व बैंक मैनेजर संतोष डांग ने कहा कि नौकरी करने वाली महिलाएं भी अपने वेतन को स्वयं खर्च नहीं करती, पति ही करते हैं। उनका सुझाव था कि हर पति को अपनी जायदाद, बैंक खातों व बीमा आदि की पूरी जानकारी पत्नी को देनी चाहिए ताकि पति की मृत्यु की स्थिति में वह इसका लाभ उठा सके। उन्होंने बताया कि बैंकों में हजारों करोड़ रूपये पड़े हैं जिनका कोई दावेदार ही नहीं है।  

प्रो स्वराज कुमारी का कहना था कि पुरुषों द्वारा महिलाओं को नीचा दिखाने के चुटकले व किस्से बंद होने चाहिएं।सभ्य समाज में ऐसा करना अनुचित है।  

प्रो राज गर्ग ने अपनी बात एक कविता के माध्यम से रखते हुए कहा कि वे पुरुषों की ज्यादतियां सहने वाली नारियों को अपना आदर्श न मानते हुए केवल अपने जैसी ही बनेंगी और अपनी आज़ादी और अपने अधिकारों पर आंच नहीं आने देंगी।    

“मैं गाँधारी नहीं बनूंगी
नेत्रहीन पति की आँखे बनूंगी
अपनी आँखे मूंद लूं
अंधेरों को चूम लूं
ऐसा अर्थहीन त्याग
मै नहीं करूंगी
मेरी आँखो से वो देखे
ऐसे प्रयत्न करती रहूँगी
मैं गाँधारी नहीं बनूँगी।

मैं, मैं हूँ ।
मैं ही रहूँगी……..”    

महिला वक्ताओं के इलावा वानप्रस्थ के पुरुष सदस्यों ने भी महिला अधिकारों पर अपने विचार रखे। दूरदर्शन के पूर्व समाचार निदेशक अजीत सिंह का कहना था कि आजकल बच्चों को संस्कार या दुराचार सिखाने का काम टेलीविजन और स्मार्ट फोन से हो रहा है क्योंकि परिवारों में माता पिता और बच्चों के बीच संवाद का सिलसिला बहुत ही कमज़ोर हो चुका है और यह गंभीर चिंता का विषय है।   

लगभग अढ़ाई घंटे चली गोष्ठी में प्रो एम पी गुप्ता, प्रो बी के सिंह, प्रो नरेश बंसल, डॉ मनवीर, प्रो सुरजीत जैन, प्रो जे के डांग, प्रो एस के अग्रवाल, एस एस लाठर, उम्मेद सिंह व अन्य ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

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