क्रेशर संचालकों को सर्वोच्च न्यायालय ने दोबारा एनजीटी के समक्ष जाने को कहा
पिछले 5 वर्ष से लड़ाई लड़ रहे इंजीo तेजपाल यादव की कानूनी रणनीति के आगे क्रेशर संचालकों व हरियाणा सरकार के गठजोड़ की औंधे मुंह गिर रही सभी चालें
अकेले महेंद्रगढ़ जिले में वायु जनित जानलेवा बीमारियों से लगभग प्रति वर्ष 42 हजार लोग बीमार
भारत सारथी/ कौशिक
नारनौल। इंजीनियर तेजपाल यादव की याचिका पर हाल ही में इसी साल गत 18 जनवरी को माननीय एनजीटी के द्वारा महेंद्रगढ़ व चरखी दादरी जिले के 343 स्टोन क्रेशर पर न्यूनतम 70 करोड का जुर्माना ठोका था। उसके खिलाफ में स्टोन क्रेशर संचालक सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए थे जिस पर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने 24 फरवरी 2023 शुक्रवार को हुई सुनवाई (जिसका आदेश सुप्रीम कोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट पर 28 फरवरी को अपलोड हुआ), में जस्टिस एम.आर.शाह व जस्टिस सी.टी. रवि कुमार की बेंच ने आदेश देते हुए मामले को सुप्रीम कोर्ट में चलाने से मना करते हुए कहा कि आप वापस एनजीटी जाएं और अपने मामले को एनजीटी से ही अवगत कराएं।
क्या थी क्रेशर संचालकों की माननीय सुप्रीम कोर्ट से मांग
हाल ही में 18 जनवरी 2023 को एनजीटी के द्वारा महेंद्रगढ़ व चरखी दादरी जिले के 343 स्टोन क्रेशरों पर न्यूनतम 70 करोड जुर्माने के बाद क्रेशर संचालक बौखला गए थे । इसके उपरांत 64 स्टोन क्रेशर संचालकों ने सुप्रीम कोर्ट में रिट दायर कर यह अपील की थी कि एनजीटी के हाल ही के हुए आदेश को स्टे किया जाए व हमारी बात को सुप्रीम कोर्ट में सुनते हुए केस को सुप्रीम कोर्ट में चलाया जाए। क्योंकि इसके पीछे उनकी मंशा इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में ही लंबे समय तक लटकाए रखने की और एनजीटी के आदेश को स्टे करवाने की थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने सिरे से खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने किस आधार पर इस केस को वापस भेजा एनजीटी
सुप्रीम कोर्ट में दर्जनों स्टोन क्रशर की तरफ से उपस्थिति लगभग 33 वकीलों ने लगभग 40 मिनट तक चली लंबी सुनवाई व बहस मे, एनजीटी के खिलाफ में व क्रेशरों के पक्ष में बिना वजह के तर्क व फर्जी दलीलें गढ़ने की सुप्रीम कोर्ट के सामने भरसक कोशिश की, लेकिन याचिकाकर्ता इंजीनियर तेजपाल यादव की तरफ से पैरवी कर रहे देश के प्रसिद्ध वकील प्रशांत भूषण जी ने सारे तर्कों को एक बात कहकर सिरे से खारिज कर दिया कि क्रेशर संचालक पहले भी सुप्रीम कोर्ट में एनजीटी के विगत फैसलों के खिलाफ में आ चुके हैं ।बार-बार एनजीटी के फैसलों के खिलाफ में सुप्रीम कोर्ट पहुंचकर समय को व्यर्थ करने व केस को लंबे समय तक लटकाए रखने की मंशा से पहुंच जाते हैं। जिससे न्यायालय के कामों पर और पर्यावरणीय न्याय पर बुरा असर पड़ता है।
अपने तर्कों को साबित करने के लिए वकील प्रशांत भूषण ने विगत 24 जुलाई 2019 को माननीय एनजीटी द्वारा इंजीनियर तेजपाल यादव की याचिका पर महेंद्रगढ़ जिले के 72 स्टोन क्रेशरों के बंद करने के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि जब 24 जुलाई 2019 को 72 स्टोन क्रेशरों के तुरंत बंद करने के आदेश हुए थे तब भी सुप्रीम कोर्ट में काफी क्रेशर संचालक पहुँच गए थे। 15 महीने तक सुप्रीम कोर्ट में मामला चलने के बाद 2 नवंबर 2020 को माननीय सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को वापस एनजीटी में भेजा था। उसके उपरांत फिर एनजीटी से बहुत सारे ऐतिहासिक फैसले भी हुए।
श्री भूषण की दलील थी कि अगर ऐसे ही एनजीटी के फैसलों पर बार-बार क्रेशर संचालक सुप्रीम कोर्ट आते रहे तो सिर्फ पर्यावरण मामलों के लिए कुछ साल पहले 2010 में गठित हुई एनजीटी कोर्ट की स्वतंत्रता में एक बड़ा हस्तक्षेप होगा। इससे एनजीटी के खिलाफ बार-बार सुप्रीम कोर्ट में मामला पहुंचने से पर्यावरण मामलों के त्वरित व जल्द मामला निपटारे हेतु गठित की गई एनजीटी की कार्यप्रणाली पर बुरा असर पड़ेगा।
पूरे घटनाक्रम पर क्या कहा इंजीनियर तेजपाल यादव ने
स्टोन क्रशर संचालकों को हमारी एक ही नसीहत है कि इस क्षेत्र को छोड़कर चले जाएं, इसी में उनका और इस इलाके की जनता का भला होगा क्योंकि उन्हें मालूम होना चाहिए कि हमने पर्यावरण संघर्ष की शुरुआत ही गांधी, भगत सिंह, जयप्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया के विचारों से प्रभावित व प्रेरित होकर शुरू की है। उन्होंने जिला प्रशासन से मांग है कि वह कोर्ट के आदेश उपरांत अपनी कार्यवाहियों के लचीलेपन को तुरंत छोड़ें व इनमें तेजी लाएं अन्यथा अधिकारियों के खिलाफ कानून सम्मत कार्रवाई का जो परिणाम होगा उसे सभी सबंधित अधिकारी भुगतने के लिए तैयार रहें।
सत्ता पक्ष के राजनीतिक नुमाइंदों की निष्क्रियता व इस मुद्दे पर कमजोर राजनीतिक इच्छाशक्ति की भेंट चढ़ रहा इलाके की जनता का स्वास्थ्य
इंजीनियर तेजपाल यादव ने कहा कि विगत में एनजीटी को जिला प्रशासन द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट से पता चलता है कि अकेले महेंद्रगढ़ जिले में सिर्फ वायु जनित जानलेवा बीमारियों से ही लगभग प्रति वर्ष 42000 (42 हजार) लोग बीमार पड़ रहे हैं, अगर यही हालात रहे तो इस बात में कोई दो राय नहीं कि जिस तरह से कोरोनावायरस के दौरान लोग ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए तरस रहे थे, हमें लगता है कि नांगल चौधरी क्षेत्र के लोगों को तो हर समय ऑक्सिजन सिलेंडर के मार्फत अपनी जिंदगी बितानी पड़ेगी क्योंकि हवा में तो जहर घुल चुका है।