हुजूर कंवर साहेब महाराज ने कहा: भक्ति किसी जाति, स्थान, प्रदेश की मोहताज नहीं, भक्ति तो केवल सेवा और प्रेम मांगती हैं

— बड़े बुजुर्गो की सेवा में सब देवताओं की पूजा है : कंवर साहेब
कर्म ही इंसान को बनाता है और कर्म ही गिराता है, कर्म अच्छा नही है उसको जगत में भी कष्ट होता है और अगत में भी : कंवर साहेब 
— संतो का एक ही संदेश होता है और वो है मानव कल्याण: संत किसी एक जाति-धर्म के नही अपितु सतं सर्वसमाजी हैं : परमसंत कंवर साहेब महाराज जी
परमात्मा की याद और इंसान की अंतर शक्तियों का एहसास करवाने ही संत देह धार इस जगत में आते हैं

चरखी दादरी-सिवानी जयवीर फौगाट,

06 फरवरी, समाज उन्नत होगा तो देश उन्नत होगा और समाज उन्नत तब होगा जब इंसान उन्नत होगा। उन्नति की सारी शक्तियां इंसान के अंतर में ही मौजूद है लेकिन हम उन शक्तियों को भुला बैठे है क्योंकि हम परमात्मा को भूल गए हैं। परमात्मा को याद करवाने और इंसान की अंतर शक्तियों का एहसास करवाने के लिए ही संत देह धारण कर इस जगत में आते हैं। जब सन्त सतगुरु महात्मा इस धरा पर आते हैं तो तीन ताप से दुखी जीवो को बड़ी शांति मिलती है। इसी परमार्थ के लिए संत रविदास जी भी इस जगत में आए थे और आज हम उन्हीं संत शिरोमणि रविदास जी की जयंती मना रहे हैं। यह सत्संग वचन परमसंत सतगुरु हुजूर कंवर साहेब जी महाराज ने सिवानी में स्थित राधास्वामी आश्रम में फरमाए।

हुजूर ने कहा की संतो का एक ही संदेश होता है और वो है मानव कल्याण। संत ना किसी एक जाति है ना किसी एक धर्म के। संत तो सर्वसमाजी हैं। वे तो आदि अनादि के भेदी हैं। गुरु जी ने कहा कि यदि कोई दुर्बल विचार वाले को अगर कोई दुर्बल विचार वाला ही मिल जाए तो वह और दुर्बल हो जाता है लेकिन यदि उसे कोई सबल मिल जाता है तो ना सिर्फ उसके दुर्बल विचार मार जाते हैं बल्कि वे औरों को भी सबल बना देते हैं। उन्होंने कहा कि सतगुरु से बढ़कर और कोन सबल हो सकता है। उन्होंने कहा कि मुक्ति के लिए तो सब लालायित हैं लेकिन सतगुरु के पर्चे के बिना जाओगे कहां। हुजूर ने कहा कि बाहर खोजने से किसी को कुछ नहीं मिला जिसको मिला उसको अपने अंदर ही मिला। भक्ति किसी जाति, स्थान, प्रदेश की मोहताज नहीं है, भक्ति तो केवल सेवा और प्रेम मांगती हैं। उन्होंने कहा कि अंधेरे में रहकर आप कुछ नहीं पा सकते। कुछ पाने के लिए आपको अपने अंतर में प्रकाश खोजना होगा। जब प्रकाश पा लोगे तो सब गंगा तीर्थ डेरे भी अपने अंतर में ही पा लोगे। ऐसा ही संत शिरोमणि रविदास ने किया था। उन्होंने प्रसंग सुनाते हुए कहा कि संत रविदास जी की भक्ति की दीप्ति इतनी तेज थी कि उन्होंने तो अपनी कठौती में ही गंगा को हाजिर कर लिया था।

सतगुरु को भुला कर हम कुछ हासिल नहीं कर सकते

हुजूर महाराज जी ने कहा कि सतगुरु को भुला कर हम कुछ हासिल नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि सतगुरु यदि माथे से उतर गया तो समझो आप काल के दायरे में आ गए। उन्होंने कहा कि परमात्मा को आप चाहे सुख में याद करो या दुख में लेकिन करो क्योंकि जो बीज भूमि में गिर जाता है वो पैदा जरूर होगा चाहे वो टेढ़ा गिरे या सीधा। गुरू जी ने कहा कि गुरु की शरणाई आपको गलत कर्म करने से डराती है। उन्होंने कहा कि सुख से तो दुख भला जो आपको परमात्मा की याद दिलाता है। गुरु जी ने कहा कि जा की रही भावना जैसी प्रभु मूरत तित देखी वैसी। सब कुछ आपकी वृति पर निर्भर करता है। नकारात्मक और सकारत्मक दोनो शक्तियां आपके अंदर ही है अब ये आप पर निर्भर करता है कि आप कोन सी शक्ति को जागृत करते हैं। हुजूर ने कहा कि काया का रोग कर्म का भोग है इनसे क्या घबराना। उन्होंने कहा कि संत दयालु होते हैं वो अपने साथ दुष्टता करने वाले के साथ भी दयालुता करते हैं। संतो से तो लेने वाला होना चाहिए। ऐसे ही दयालु संत थे रविदास जी थे। वे मानते थे कि जाति पाती पूछे ना कोई हरि का भजे सो हरि का होई।

गुरु जी ने कहा कि रविदास जी ने पूरा जीवन जाति और धर्म का भेद मिटाने में लगा दिया। उन्होंने कहा कि किसी का आदर सिर्फ इसीलिए नहीं करना चाहिए क्योंकि वह किसी ऊंचे पद पर है बल्कि आदर तो गुणों का होना चाहिए चाहे वो नीची जाति के व्यक्ति में ही क्यों ना हो। उन्होंने कहा कि कर्मेंद्रियों से शुभ कर्म करो और ज्ञानेंद्रियों से सतज्ञान लो। गुरु जी ने कहा कि अभ्यास करने से ही गुणवान बनोगे लेकिन अभ्यास तो क्या हम तो परमात्मा को याद तक नहीं करते। उन्होंने कहा कि वेद शास्त्र भी यही कहते हैं मन के सच्चे हो जाओ आपको भक्ति करने की भी आवश्यकता नहीं है। गुरु जी ने कहा कि जिस प्रकार शासक के सिपाही मात्र से भी चोर डर कर छुप जाते हैं वैसे ही परमात्मा के तो सच्चे साधक मात्र से भी काल और माया रूपी चोर छुपते फिरते हैं। उन्होंने कहा कि कर्म ही इंसान को बनाता है और कर्म ही गिराता है। कर्म ही आपका पूजवाता है और कर्म ही आपका सजा दिलाता है। गुरु जी ने कहा कि जिसका कर्म अच्छा नही है उसको जगत में भी कष्ट होता है और अगत में भी। उन्होंने कहा कि प्रकृति संतुलन पर टिकी है। अति हर चीज की बुरी है। घर गृहस्थी के सारे काम करते हुए परमात्मा का सुमिरन करो। बड़े बुजुर्गो की सेवा में सब देवताओं की पूजा है। किसी को कटु वचन मत बोलो। अपने आचरण से दुसरो को प्रेरणा दो। जाति पाती धर्म की नहीं सद्गुणों की पूजा करो। यदि अपने अंदर इन गुणों को ले आए तो समझो कि आपने संत रविदास जी के जीवन को अपना लिया।

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