मूल्य केवल कहने से नहीं बल्कि चिंतन से जागृत होते हैं – जस्टिस सर्वेश गुप्ता

26 दिसम्बर 2022, गुरुग्राम – मूल्य केवल कहने मात्र से नहीं बल्कि चिंतन से जागृत होते हैं। इसके लिए लम्बे समय तक सत्संग की आवश्यकता है। उक्त विचार उत्तराखण्ड, उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश सर्वेश गुप्ता ने व्यक्त किए। जस्टिस गुप्ता, ब्रह्माकुमारीज के गुरुग्राम स्थित ओम शांति रिट्रीट सेंटर में न्यायविदों के लिए आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में बतौर मुख्य अतिथि सम्मिलित हुए। कार्यक्रम के समापन सत्र में विधि व्यवसाय में मूल्यों का समावेश विषय पर उन्होंने सभा को संबोधित किया। जस्टिस गुप्ता ने कहा कि भौतिकवादी सोच के कारण बुद्धि आज जड़ हो गई है।

  • आध्यात्मिक चिंतन से ही बौद्धिक चेतना की जागृति

आध्यात्मिक चिंतन ही बुद्धि की चेतना को जगा सकता है। वास्तव में दुःख और सुख मानव के अपने कर्मों पर निर्भर है। कानून का असली कार्य सुधारवादी होना चाहिए न कि मात्र सजा देना। दया और करुणा का भाव तभी आता है, जब हम ईश्वर से जुड़ते हैं। चिंतन ही मनुष्य को बनाता और बिगाड़ता है। जस्टिस गुप्ता ने न्यायालय से संबंधित अपने अनुभव भी साझा किए।

  • आत्मिक भाव से होगा शांति और प्रेम का संचार

सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट अशोक शर्मा ने कहा कि कानून भी समाज में शांति और प्रेम स्थापित करने के लिए ही बनते हैं। लॉ शब्द भी कहीं न कहीं लव से ही शुरू हुआ है। प्रेम का सच्चा भाव ईश्वर द्वारा प्राप्त होता है। जबकि लॉ मनुष्यों ने बनाए हैं। अगर हम ईश्वर के बनाए नियमों पर चलें तो लॉ बनाने की आवश्यकता भी नहीं पड़ेंगी। उन्होंने कहा कि वो काफी समय से ब्रह्माकुमारीज से संबद्ध है। यहां पर सिखाए जाने वाले राजयोग से उनके जीवन में एक अभूतपूर्व परिवर्तन आया। जहां सबके प्रति समभाव होगा वहां स्वतः ही शांति और प्रेम भाव का संचार होगा।

  • न्यायविदों का मूल्यनिष्ठ होना बहुत जरूरी

झालावाड़, लॉ कॉलेज के पूर्व प्राचार्य बाबूलाल यादव ने कहा कि आध्यात्मिकता के बगैर विश्व परिवर्तन संभव नहीं है। दुनिया के पतन का मूल कारण नैतिक मूल्यों का ह्रास है। कानून बनाने से समस्याएं हल नहीं हो सकती। न्यायिक क्षेत्र में परिवर्तन के लिए न्यायविदों का मूल्यनिष्ठ होना जरूरी है। आध्यात्मिक व्यक्तित्व के आधार से ही हम न्याय को बेहतर बना सकते हैं। मूल्य हमारे आचरण से दिखाई देते हैं।

  • आत्मिक स्वरूप के अनुभव से ही आते हैं दया और करुणा के भाव

ब्रह्माकुमारीज के अतिरिक्त महासचिव बीके बृजमोहन ने कहा कि हम सब परमपिता परमात्मा के बच्चे हैं। परमात्मा दया और करुणा के सागर हैं। तो उनके बच्चे भी मास्टर सागर होने चाहिए। लेकिन कलयुग के प्रभाव के कारण आज वो मूल्य नजर नहीं आते। उन्होंने कहा कि पुनः परमात्मा के साथ बौद्धिक योग से हम वैसा बन सकते हैं। परमात्मा ही हमें कर्मों की गहन गति समझाते हैं। गीता वास्तव में परमात्मा द्वारा दिए गए ज्ञान का यादगार है। आत्मिक स्वरूप के अनुभव से ही हम दया और करुणामय हो सकते हैं।

कार्यक्रम में ज्यूरिस्ट विंग की उपाध्यक्ष बीके पुष्पा, माउंट आबू से बीके लता एवं दिल्ली से सीनियर एडवोकेट मुकेश आहूजा ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

भरतपुर से बीके प्रवीणा ने सभी को राजयोग का अभ्यास कराया। कार्यक्रम का संचालन बीके मनीष ने किया। कार्यक्रम में देश के विभिन्न प्रांतों से आए न्यायविदों हिस्सा लिया।