सरकार 19 से पहले ही निकाले किसान हित में ठोस समाधान
3 दिन पहले भी धरना स्थल पर किसानों द्वारा विरोध प्रदर्शन
मानेसर तहसील के सामने किसानों का धरना 177 वे दिन पहुंचा
एमएलए जरावता प्रभावितों को सीएम से कई बार मिलवा चुके
लेकिन समस्या, नो दिन चले और ढाई कोस पर ही अटकी हुई
लुढ़कते तापमान में किसानों का प्रतिदिन पारा हो रहा है गरम

अंतिम मुलाकात में 15 दिन के समाधान करने का का समय बीता

फतह सिंह उजाला

मानेसर/पटौदी।    दिल्ली जयपुर नेशनल हाईवे के बगल में मौजूद और गुरुग्राम शहर के दूसरे नगर निगम सहित सबडिवीजन एवं देश और दुनिया में औद्योगिक नगरी के रूप में पहचान बना चुके मानेसर क्षेत्र के किसान अपनी जमीन के उचित मुआवजा या फिर जमीन को रिलीज करने के मुद्दे को लेकर बीते करीब 180 दिनों से अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे हुए हैं। हालांकि इस दौरान कई बार बड़े ही राजनीतिक घटनाक्रम और मोड भी दिखाई देने के लिए मिले हैं । यह ऐसा मौका रहा है जब भी सीएम मनोहर लाल खट्टर गुरुग्राम आए या फिर अन्य सरकार का मंत्री पहुंचा तो ऐसे में मानेसर क्षेत्र के प्रभावित 18 10 एकड़ जमीन के किसानों और जमींदारों के प्रतिनिधि मंडल की राजनीतिक नेतृत्व में दिल खोलकर मुलाकात और बातचीत भी करवाई गई । इस दौरान प्रभावित परिवारों और किसानों के द्वारा अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल आरंभ कर दी गई और पटौदी के एमएलए एडवोकेट सत्य प्रकाश जरावता ने स्वयं धरना स्थल पर पहुंचकर इस भूख हड़ताल को भी समाप्त करवाया।

यह बात कहने में कोई गुरेज नहीं है कि 18 10 एकड़ जमीन का मामला पटोदी के एमएलए एडवोकेट प्रकाश के द्वारा विधानसभा में उठाते हुए हरियाणा सरकार और सीएम मनोहर लाल खट्टर का ध्यान इस समस्या के समाधान की तरफ कई बार आकर्षित किया जा चुका है । लेकिन अभी तक की जो भी दौड़-धूप बातचीत या अन्य एक्सरसाइज की गई , उसका परिणाम नो दिन चले ढाई कोस ही निकल कर आया है । मानेसर क्षेत्र की 18 10 एकड़ जमीन के प्रभावितों में शामिल सत्यदेव सरपंच, भूपेंद्र ,बंटी, नंबरदार ,कासन, राजू यादव कासन ,राजेंद्र सिंह, सहरावण, मुकेश जांगड़ा, चंदन हवलदार, मंटू पंडित ,इमरत पहलवान, धर्मपाल प्रजापत ,सुरेंद्र शर्मा, ओंकार, सुंदर चौहान ,अजीत पार्षद ,राजवीर मानेसर, मोती, ईश्वर ,संजय, पन्नालाल ,वीरेंद्र यादव ,महिपाल इत्यादि का साफ-साफ कहना है कि इस बार किसान और प्रभावित लोग अपनी मांग मनवाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं । किसान बचाओ जमीन बचाओ संघर्ष समिति के द्वारा सरकार को आगाह किया गया है कि 19 दिसंबर तक उनकी मानेसर की इस विवादित जमीन का ठोस और निर्णायक फैसला करते हुए समाधान किया जाए । यदि सरकार और एचएसआईडीसी 19 दिसंबर तक इस मामले में कोई भी समाधान निकालने में नाकाम रहती है, तो फिर किसान और प्रभावित परिवार के सदस्य महिलाओं बच्चों बुजुर्गों के साथ मानेसर में ही इतना जबरदस्त तरीके से जाम लगाएंगे । जिसकी कल्पना शासन प्रशासन सहित सरकार को भी नहीं होगी ? कथित रूप से 19 दिसंबर को अपने इस जमीन बचाओ आंदोलन के लिए प्रभावित किसानों और लोगों के द्वारा बनाई गई रणनीति का खुलासा भी नहीं किया जा रहा है ।

गौरतलब है कि मानेसर क्षेत्र में कासन सहित करीब आधा दर्जन गांवों के ग्रामीण उनकी जमीन अधिग्रहण किया जाने का पहले दिन से ही विरोध करते चले आ रहे हैं । इस बीच सरकार के द्वारा अपनी तमाम प्रक्रियाएं पूरी करते हुए जमीन को कथित रूप से एचएसआईडीसी के हवाले कर दिया गया या फिर सरकार ने इस जमीन पर अपना कब्जा लेते हुए प्रभावित किसानों को मुआवजा भुगतान की घोषणा भी कर दी। इस दौरान किसान बचाओ जमीन बचाओ संघर्ष समिति देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, पीएम नरेंद्र मोदी , हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर ,हरियाणा के डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला व अन्य अनेक राजनेताओं और अधिकारियों को अनेकों बार ज्ञापन भी सौंपा चुके हैं । प्रभावित किसानों की साफ-साफ मांग है कि सरकार इस अधिग्रहण की गई जमीन को अधिग्रहण के दायरे से पूरी तरह मुक्त कर दे , यदि सरकार के सामने जमीन की इतनी ही अधिक जरूरत है तो फिर अधिग्रहण की गई जमीन का आज के मार्केट रेट के मुताबिक प्रति एकड़ 15 करोड़ के हिसाब से भुगतान किया जाए ।
किसान बचाओ जमीन बचाओ संघर्ष समिति का कहना है कि इस मांग के अलावा अन्य कोई भी बात अब प्रभावित किसानों को स्वीकार्य नहीं है।

प्रभावित किसानों और लोगों का यह भी कहना है कि जमीन बचाने के लिए पुलिस की लाठियां भी खानी पड़ी और बिना कारण पुलिस हिरासत में या फिर एक प्रकार से जेल में भी रहना पड़ा है । क्या इस क्षेत्र के किसानों का यही दोष है कि वह छोटे-छोटे रकबे के किसान हैं और इसी छोटे-छोटे रकबे में अपना गुजर-बसर करने के लिए खेती-बाड़ी का भी काम करते आ रहे हैं । महंगाई के इस दौर में सरकार के द्वारा 40 से- 50 लाख का जो भुगतान का झुनझुना प्रभावित किसानों को दिखाया जा रहा है ? उतनी रकम में तो मानेसर जैसे क्षेत्र में एक सौ गज का खाली प्लाट भी नोटों का बोरा भरकर तलाशते हुए खरीदने के लिए मिलना दिन में चांद सितारे तोड़ने के बराबर है । अब देखना यह है कि किसान बचाओ जमीन बचाओ संघर्ष समिति के द्वारा 19 दिसंबर को जो चेतावनी दिल्ली जयपुर नेशनल हाईवे को जाम करने की दी गई है , उस मामले में कड़ाके की सर्दी में किसानों की रणनीति सफल रहती है ? या फिर शासन प्रशासन सहित हरियाणा सरकार और पुलिस प्रशासन किसानों को ऐसा करने से पहले ही कोई ऐसी रणनीति बनाकर इस पूरे आंदोलन की हवा निकालने का भी प्रयास कर सकता है।

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