रोहतक, 15 दिसम्बर। सांस तो मैं 24 घंटे लेता हूँ, पर जीता वही दो घण्टे हूं, जब मंच पर होता हूं…और …मैं नाटकों को क्या संभालूंगा, मुझे ही नाटक ने संभाल रखा है। नाटक मेरी ज़िंदगी में न होते तो शायद मैं भी न होता।’ ये संवाद हैं रंगमंच के प्रचार प्रसार हेतू समर्पित स्थानीय सांस्कृतिक संस्था ‘सप्तक’ द्वारा आयोजित घरफूंक थियेटर फेस्टिवल में हुए नाटक ‘दिग्दर्शक’ के। पठानिया वर्ल्ड कैंपस और स्वतंत्र मंच के संयुक्त तत्वावधान में हुए इस नाटक की प्रस्तुति पतासो हवेली, किशनपुरा के समीप स्थित स्वतंत्र मंच पर की गई।

गुजराती नाटककार प्रियम जानी द्वारा लिखित इस नाटक में एक अभिनेता और उसे सफलता के मुकाम तक पहुंचाने वाले निर्देशक के संघर्ष को दिखाया गया। नाटक ने दिखाया कि एक कलाकार जीवनभर कला की साधना करता है और इसके लिए अपना ही नहीं, अपने बच्चों का भविष्य भी दांव पर लगा देता है। लेकिन उसकी इस साधना को कोई नहीं देख पाता और अंत में वह नितांत अकेला हो जाता है। नाटक में एक डायरेक्टर द्वारा एक्टर को बनाने की प्रक्रिया पर प्रकाश डाला गया। दिल्ली की नाट्य संस्था ‘भाव आर्ट्स प्रोडक्शन’ के कलाकारों द्वारा मंचित इस नाटक का निर्देशन विरल आर्य ने किया।

नाटक में एक नाट्य गुरु के पास एक नया लड़का नाटक सीखने आता है, जिसे तराश कर वह एक कुशल अभिनेता बना देता है। लेकिन जब वह अभिनेता एक्टिंग की बारीकियां सीख जाता है तो अचानक उसे छोड़ कर फिल्मों में चला जाता है और बड़ा स्टार बन जाता है। करीब 15 साल बाद वह अपने गुरु से मिलने आता है और उससे पूछता है कि वे उससे नाराज़ क्यो हैं। तब गुरु भी पूछता है कि वह अचानक उसे छोड़ कर क्यो गया। तब भेद खुलता है कि नाटक के प्रति समर्पित होने के कारण निर्देशक का बेटा खुद को उपेक्षित महसूस करता है। वही अभिनेता से नाटक ग्रुप छोड़ने का आग्रह करता है, ताकि उसके पिता उसके करीब आ सकें। नाटक में नाट्य गुरु की भूमिका विकास, शिष्य की भूमिका साहिल राज तिग्गा गुरु के बेटे विजय की भूमिका आशुतोष सिंह ने निभाई। प्रकाश व्यवस्था और संगीत विरल आर्य का रहा। मंच संचालन ऋतु श्योराण ने किया।

कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्यातिथि कृष्ण कुमार, संजय राठी, विश्वदीपक त्रिखा, विरल आर्य, अविनाश सैनी ने दीप प्रज्वलन से किया। अपने संबोधन में कृष्ण कुमार ने रंगमंच के प्रति त्रिखा के समर्पण को रेखांकित करते हुए कहा कि कलाकार बनना आसान काम नहीं है। इसके लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करना पड़ता है। सप्तक के अध्यक्ष एवं रंग प्रसारक विश्वदीपक त्रिखा ने बताया कि हर हफ्ते होने वाले घरफूंक थियेटर फेस्टिवल के स्वरूप में बदलाव किया गया है। अब इसके तहत नाट्यकर्मियों तथा दर्शकों की मांग और सुविधा के अनुसार नाटकों का मंचन किया जाएगा। स्थान का चुनाव भी प्रस्तुति की ज़रूरत, संसाधनों व दर्शकों की सुविधा को देखते हुए करेंगे। दर्शकों का प्रवेश पहले की तरह पूर्णतः निःशुल्क रहेगा।

नाट्य संध्या में विश्वदीपक त्रिखा, यशपाल छाबड़ा, इंदरजीत भ्याना, सुभाष नगाड़ा, शक्ति सरोवर त्रिखा, अविनाश सैनी, विकास रोहिल्ला, डॉ. हरीश वशिष्ठ, अजय मित्र, मनीष कुमार, दीपक, अमित सहित अनेक गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।

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