-कमलेश भारतीय

कभी कबीर ने लिखा था -जाति न पूछो साधु की, बूझ लीजै ज्ञान
मोल करो तलवार का
पड़ी रहने दो म्यान !

लेकिन आज चौ रणजीत चौटाला के बयान से लगा कि कहूं कि जाति ही पूछो मुख्यमंत्री की ! वैसे वे तो ईमानदारी से कह रहे हैं कि जाति देखकर सीएम नहीं बनाये जाते ! वे हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को बदले जाने पर बात कर रहे थे । उन्होंने कहा कि यह अफवाह मात्र है और कोरी बकवास है । ब्राह्मण होने के चलते रोहतक के सांसद अरविंद शर्मा को मुख्यमंत्री बनाये जाने संबंधी सवाल पर रणजीत चौटाला ने यह जवाब दिया । उन्होंने कहा कि किसी भी पार्टी में जाति या बिरादरी देखकर मुख्यमंत्री का नाम तय नहीं किया जाता । इसका फैसला विधायक और पार्टी हाईकमान ही करती है । उन्होंने कहा कि इस बात का कोई आधार नहीं है कि मुख्यमंत्री को बदले जाने वाले हैं ।

खैर ! आप सयाने हो रणजीत चौटाला जी ! बुद्धिमान हो । विचारवान , सूझवान भी हो । लेकिन आप बताइए हरियाणा में पंडित भगवद दयाल शर्मा के बाद किस जाति से संबधित मुख्यमंत्री बनते आ रहे हैं ! पंडित रामबिलास शर्मा मुख्यमंत्री पद की आस लगाये रहे लेकिन सफलता नहीं मिली । चौ भजनलाल के नाम पर गैर जाट की राजनीति का नारा क्यों लगाया जाता रहा ? कौन जाट और कौन गैर जाट ? सब मानस की जात , एक ही क्यों नहीं पहचानवो? अफसोस हमारे देश में जाति ही रिजेक्ट की धुरी है । सभी दलों की राजनीति सिर्फ और सिर्फ जाति और एक सीमित सीमा तक धर्म पर आधारित है । यहां तक कि मंत्रिमंडल मे जगह भी जाति के आधार पर मितली है ताकि समीकरण संतुलन बनाया जा सके ! फिर झूठ क्यों ?इसका ताजा ताजा उदाहरण हिमाचल का है , जहां ठाकुर सुखविंद्र सूक्खु को तरजीह दी गयी और ब्राह्मण व पत्रकार मुकेश अग्निहोत्री को उपमुख्यमंत्री बन कर ही संतोष करना पड़ा जबकि पांच साल तक वे सदन में नेता प्रतिपक्ष रहे ।

पंजाब में जब कांग्रेस में नवजोत सिद्धू ने कैप्टन अमरेंद्र सिंह के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बजाया तब सुनील जाखड़ को मुख्यमंत्री बनाया जाने लगा तो कांग्रेस की पंजाब से नेत्री अम्बिका सोनी ने सोनिया गांधी को सलाह दे डाली कि पंजाब में यह प्रयोग ठीक नहीं रहेगा और इस तरह सुनील का पत्ता कट गया और याद कीजिए कि कामरेड रामकिशन के बाद कौन मुख्यमंत्री बनते गये और किस वजह से ? बताइए जाति ही पूछोगे कि नहीं मुख्यमंत्री की ? उत्तर प्रदेश में यादव परिवार से ही मुख्यमंत्री बनते हैं कि नहीं ? कोई और जाति नहीं वहां ? जाति के आधार पर ही तो दलित नेता कहलाते हैं और प्राथमिकता पाते हैं कि नहीं ? मायावती एक समाज की ही नेत्री क्यों बन कर रह गयीं और फिर बहुजन समाज पार्टी को ब्राह्मण सम्मेलन क्यों करवाने पड़े?

यह सब हमारी भारतीय राजनीति के कमजोर आधार हैं । इससे आप इंकार नहीं कर सकते , मुंह नहीं फेर सकते हैं ? शायद चाहकर भी नहीं । उदाहरण अन्य राज्यों से भी दिये जा सकते हैं जैसे उत्तराखंड या महाराष्ट्र । पर बात इतनी सी ही है कि जाति ही पूछो मुख्यमंत्री की फाॅर्मूला चल रहा है । कोई तो आये जो इस जादू या दुष्चक्र को तोड़कर नये धरातल पर सोचे और नया सोचे !
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।

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