-कमलेश भारतीय

जैसे जैसे मौसम थोड़ा बदलता है वैसे वैसे महाविद्यालयों में पहले क्षेत्रीय युवा महोत्सवों का आयोजन होता है , बाद में विश्वविद्यालय स्तरीय और फिर राष्ट्रीय स्तरीय युवा महोत्सव विवेकानंद जयंती के आसपास आयोजित किये जाते हैं । युवाओं को मंच प्रदान करने , प्रतिभा को निखारने और अपने अपने प्रदेश की सांस्कृतिक परम्परा , भाषा , बोली से जोड़ने का यह अनूठा मंच है । कितने ही बड़े बड़े कलाकार इसी मंच से निकले हैं । पंजाब के प्रसिद्ध गायक गुरदास मान , रवि दीप, विक्की यानी रौनकी राम , पुनीत सहगल , हरियाणा के यशपाल शर्मा , राजीव भाटिया , गिरीश धमीजा, मेघना मलिक, जगबीर राठी , संध्या शर्मा , निधि चौधरी जैसे कितने ही कराकारों को इस मंच ने ही निखारा । कितने और निखरेंगे , निकलेंगे ! जगबीर राठी तो खुद आजकल महर्षि दयानंद विश्विद्यालय के युवा कल्याण निदेशक हैं और अनेक वर्षों तक प्रसिद्ध रंगकर्मी अनूप लाठ भी कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय के युवा सांस्कृतिक विभाग के निदेशक रहे और रत्नावली जैसा उत्सव भी दिया । अब डाॅ महासिंह पूनिया इस परंपरा को बढ़ा रहे हैं ।

कोरोना काल ने इन मंचों पर गहरा असर डाला और जैसे अन्य गतिविधियां ठप्प हो गयीं , वैसे ही युवा महोत्सव भी ठप होकर रह गये थे । अब जाकर जब कोरोना से निकले तब फिर से विश्वविद्यालयों ने युवा महोत्सवों के आयोजन शुरू किये । संयोगवश कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय, गुरु जम्भेश्वर विश्विद्यालय और महर्षि दयानंद विश्विद्यालय के युवा महोत्सवों में निर्णायक के तौर पर भागीदार बनने का कुछ वर्षों बाद अवसर मिला और देखा कि युवाओं में इसे लेकर कितना उत्साह था , जोश और उमंग थी । तभी तो कहते हैं कि युवाओं के बीच रहो , आप भी युवा रहोगे ! खूब धमाल , कितने प्रदेशों के समूह नृत्य जो अप्रत्यक्ष रूप से भारत की विविधता में अनेकता के संदेश और बीज युवाओं में बो देते हैं । कहीं भ॔गड़ा, कहीं गिद्धा तो कहीं बरसाने की होली और कृष्ण राधा के मनमोहक रूप ! कहीं यातायात के नियमों की ओर ध्यान दिलाने के लिये हास्य व्यंग्य से विवेक जगाने की कोशिश तो कहीं मोबाइल फोन के दुरूपयोग व डिजिटलाइजेशन पर वाद विवाद ! कितने ही मंच और कितने ही युवा ! कहीं बांसुरी की मधुर धुन तो कहीं सार॔गीवादन !

इसके बावजूद युवाओं द्वारा किलकी से प्रदर्शन पर प्रभाव डालने , कहीं मंच पर कब्जा जमा कर अपनी मांग मनवाने के लिये दबाब डालने तो कहीं सभागार में तोड़ फोड़कर अपनी ही संस्था को लाखों लाखों के नुकसान पहुंचाने और हर जगह मंच पर पटाखे छोड़ने कहां तक सही कदम माने जा सकते हैं ? इससे क्या संदेश जाता है ? ये युवा समारोह छात्रों के लिये ही आयोजित किये जाते है और वही इसके आयोजन के वालंटियर भी होते है , फिर अपने ही आयोजन के रंग में भंग क्यों ? ये युवा समारोह छात्रों के लिये ही हैं और स्वामी विवेकानंद जयंती पर इनका समेकन होता है और राष्ट्रीय एकता व विविधता का संदेश देते हैं और आप यह क्या और कैसे संदेश दे रहे हैं ? जरा सोचिये !
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।

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