हकृवि को विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, हरियाणा से मिला 30 लाख का प्रोजेक्ट

हिसार: 21 नवंबर – चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय को फसल अवशेष प्रबंधन के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, पंचकुला द्वारा तीन साल की अवधि के लिए 30 लाख की अनुसंधान परियोजना प्राप्त हुई है। परियोजना का विषय जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के लिए कृषि औद्योगिक अपशिष्ट से तरल उर्वरक का विकास है। इस परियोजना के तहत फसल अवशेष, बायोगैस सलरी, ट्रीटेड सीवरेज वॉटर व शीरा को मिला कर तरल उर्वरक बनाया जाएगा जिसका हाइड्रोपोनिक खेती में इस्तेमाल किया जाएगा।

विश्वविद्यालय के  कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने प्रगतिशील माइक्रोबायोलॉजी विभाग को किसानों के लाभ के लिए उच्च गुणवत्ता वाले अनुसंधान परियोजना पारित होने पर बधाई  देते हुए कहा कि विश्वविद्यालय फसल अवशेष जलाने की समस्या  को हल करने के लिए वैकल्पिक प्रबंधन करने के लिए निरंतर प्रयासरत है। प्रस्तावित परियोजना एक विकल्प प्रदान करेगी, जहां बायोगैस सलरी, सीवेज पानी और शीरा जैसे औद्योगिक कचरे के साथ कृषि अवशेषों को माइक्रोबियल अपघटन और किण्वन तकनीकों को उपयोग करके तरल उर्वरक का उत्पादन किया जाएगा। इस परियोजना से उत्पन्न तरल उर्वरक पर्यावरण को लाभ पहुंचाने के साथ-साथ हाइड्रोपोनिक खेती की औसत उपज को बढ़ाने में भी सहायक होगा। इसके अतिरिक्त इस परियोजना से मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर रासायनिक उर्वरकों से जुड़े जोखिमों के साथ-साथ कृषि निवेश के रूप में रसायनिक उर्वरकों की कुल लागत में भी कमी आएगी।

यह परियोजना माइक्रोबायोलॉजी विभाग की सहायक प्रोफेसर, डॉ. सीमा सांगवान, विभागाध्यक्ष डॉ. लीला वती एवं हार्टिकल्चर के सहायक प्रोफेसर डॉ. अरविंद मलिक द्वारा अनुसंधान निदेशक डॉ. जीत राम शर्मा और मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. नीरज कुमार के दिशानिर्देश में तैयार की गई थी। डॉ. नीरज कुमार ने बताया कि फसल अवशेष जलाने से न केवल पर्यावरण प्रदुषित होता है बल्कि भूमि की उर्वरक क्षमता भी कम होती है। मौजूदा कृषि अवशेष आधारित प्रौद्योगिकियां जैसे खाद बनाना, मशरूम की खेती, कार्डबोर्ड बनाना और बिजली उत्पादन के लिए भस्मीकरण करना इस समस्या को हल करने में आंशिक रूप से प्रभावी है। हाइड्रोपोनिक तकनीक में रसायनिक उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है जिसका मानव स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ता है। तरल उर्वरक प्रयोग करने से इस दुष्प्रभाव से बचने के साथ-साथ रसायनिक उर्वरकों के खर्च को भी कम किया जा सकेगा। इस तरल उर्वरक का उपयोग हाइड्रोपोनिक तकनीक द्वारा पत्तेदार सब्जियों के उत्पादन में प्रयोग किया जाएगा।