भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। आदमपुर उपचुनाव संपन्न हुआ और लगभग 74 प्रतिशत मतदान हुआ, परिणाम समय के गर्भ में हैं 6 तारीख को आपके सम्मुख आ जाएगा लेकिन इतना कह सकते हैं कि 22 उम्मीदवारों में चार मुख्य रहे भाजपा के भव्य बिश्नोई, कांग्रेस के जयप्रकाश, इनेलो कुरड़ा राम और आप के सतेन्द्र। इनमें नंबर एक और दो के लिए भव्य और जयप्रकाश में मुकाबला है तथा तीन-चार के लिए कुरड़ा राम और सतेन्द्र में।

हरियाणा विधानसभा में भाजपा पहले ही गठबंधन सरकार चला रही है। आदमपुर उपचुनाव जीतने से सत्ता पक्ष को सत्ता चलाने में कोई विशेष अंतर पडऩे वाला नहीं है और न ही विपक्ष को पडऩे वाला है लेकिन यह सम्मान की लड़ाई है और सम्मान में भाजपा और कांग्रेस ने सबकुछ दांव पर लगाया।

शायद मैं गलत लिख गया जयप्रकाश के लिए भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके पुत्र दीपेंद्र हुड्डा अनथक प्रयास किया, जबकि दूसरी ओर कुलदीप और भव्य के प्रयासों में कमी नहीं रही। तात्पर्य यह कि दोनों ही पार्टी इस चुनाव में संलिप्त नजर नहीं आई। कांग्रेस वालों ने तो हुड्डा से दूरी बनाई रखी, जबकि भाजपा वाले औपचारिकता निभाते नजर आए।

ऐसे में हम इनेलो का जिक्र न करें यह उचित नहीं। व्योवृद्ध ओमप्रकाश चौटाला ने खूब मीटिंगें कीं शायद 80-90 के बीच। कुरड़ा राम ने अपने अनुमान से कहता हूं कि अपने गांव से शायद विजयी होकर निकलेंगे, क्योंकि गांववालों ने इसे अपने सम्मान की लड़ाई बताया।

रही चौथी पार्टी आप की बात तो सतेंन्द्र जहां तक मुझे याद पड़ता है कि हरियाणा जनहित कांग्रेस (हजकां) की स्थापना में भी शामिल थे और अभी चुनाव के दौरान वह बोल भी गए कि भजन लाल की तीसरी पीढ़ी जयप्रकाश को हराएगी। इसके अर्थ आप स्वयं ही सोच लें कि खुद चुनाव लडऩे वाला उम्मीदवार दूसरे के जीतने की बात कर रहा है।

आरंभ भी भव्य बिश्नोई से हुआ था। सबसे पहले नामांकन भव्य ने ही किया था और उस समय लग रहा था कि भव्य के मुकाबले कोई नहीं लेकिन समय ने पलटा खाया जयप्रकाश मुकाबले पर आए। और जो आज आदमपुर से समाचार मिल रहे थे उनके अनुसार चुनाव केवल भव्य बिश्नोई को बनाना है या पाठ पढ़ाना है पर सिमट गया। ऐसे में परिणाम जो भी आए बाहरी उम्मीदवार जयप्रकाश का मुकाबले में आना याद रहेगा।

भाजपा की राजनीति पर असर :

भाजपा को इस चुनाव में अपने कार्यकर्ताओं के समन्वय की कमी स्पष्ट नजर आई। भव्य का बिजेंद्र-दुष्यंत आदि की चर्चा भी सुर्खियों में रही। उसके पश्चात ढके-छुपे ही सही प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री की दूरियां नजर आईं। ऐसे में भाजपा को अपने संगठन के बारे में सोचना पड़ेगा, क्योंकि केंद्र के चुनाव में अब अधिक समय बचा नहीं है। और जब भाजपा दिल्ली दरबार के अंवेक्षक अंवेक्षण करेंगे तो सब दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि किसका रूतबा बढ़ाया जाता है और किसका घटाया।

उपमुख्यमंत्री दुष्यंत की भूमिका और लोकसभा चुनाव में उसकी लाभ-हानि का ध्यान रख क्या गठबंधन को समाप्त किया जाता है या जारी रखा जाता है। ऐसे अनेक सवाल निकलकर आएंगे।

कांग्रेस की राजनीति पर असर :

कांग्रेस में एक तरफ राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा कर रहे हैं और दूसरी तरफ हरियाणा में कांग्रेस टूटती नजर आ रही है। आदमपुर उपचुनाव में भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके समर्थक ही दिखाई दे रहे थे। रणदीप सुरजेवाला, कुमारी शैलजा, किरण चौधरी, पार्टी कार्यकारी अध्यक्ष, स्टार प्रचारकों में शामिल चंद्रमोहन आदि कोई भी चुनाव में दिखाई नहीं दिया। इन सब बातों पर फैसला नए बने अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े को लेना होगा। वैसे उन्होंने एक बानगी दिखा दी है कि स्टैंडिंग कमेटी में भूपेंद्र या दीपेंद्र को स्थान नहीं मिला, कुमारी शैलजा और सुरजेवाला को स्थान मिला। ऐसे में काफी कुछ देखने को मिल सकता है।

इधर कुछ चर्चाएं सुनने को मिल रही हैं कि इनेलो और जजपा एक हो सकते हैं। क्या ऐसे समय में वे एक होकर अपना जनाधार बढ़ा पाएंगे? और क्या एक होने के बाद भी इनके वर्चस्व की जंग समाप्त हो जाएगी? प्रश्न इनेलो-जजपा के अस्तित्व का भी बन सकता है। यदि आप तीसरे नंबर पर आ गई तो।

आप पार्टी तो पंजाब चुनाव के बाद गुब्बारे की तरह फूलकर हरियाणा में छाने की बात कर रही थी। वह अपनी असलियत इस चुनाव में देख रही है। यहां तक कि आप के संस्थापक अरविंद केजरीवाल ने आदमपुर में रैली करने का कार्यक्रम बनाया था लेकिन मोरबी के नाम पर वह भी कैंसिल कर दिया। अब यह तो वही भली प्रकार जान सकते हैं कि वह मोरबी के नाम पर कैंसिल किया या अपनी पार्टी की स्थिति देख खुद का सम्मान बचाने के लिए।

इस प्रकार कह सकते हैं कि आने वाले समय में हरियाणा की राजनीति में कुछ अप्रत्याशित देखने को मिल सकता है। चुनाव परिणाम में चाहे भव्य जीते या हारें उन्हें भाजपा से सामंजस्य बनाने में बहुत मेहनत करनी पड़ेगी और इसी प्रकार भूपेंद्र सिंह हुड्डा के जयप्रकाश जीतें या हारें, पार्टी के सामने भूपेंद्र हुड्डा को यह तो बताना ही होगा कि उन्हें नेतृत्व क्यों सौंपा जाए, जब वह इस समय में भी पार्टी के कार्यकर्ताओं से समन्वय नहीं बना पाए।