चट मंगनी, पट ब्याह…… हमारे पास आओ और टिकट लो

-कमलेश भारतीय

यह भी खूब रही । देखिए न मंडी आदमपुर उपचुनाव में क्या से क्या मजेदार बातें हो रही हैं । पहले आओ , पहले पाओ के सिद्धांत पर चल रही हैं पार्टियां ! भव्य बिश्नोई आये भाजपा में तो कर्ण सिंह रोनोलिया और सोनाली फौगाट की बहन को दरकिनार कर भव्य को भाजपा ने प्रत्याशी बनाने में देर नहीं लगाई । सतेंद्र सिंह भाजपा छोड़कर आप पार्टी में शामिल हुए और लो टिकट भी थमा दिया । उमेश रतन शर्मा और अन्य नेता देखते रह गये , इस करिश्मे को ! कमाल है न ! इधर आओ , उधर टिकट पाओ । अभी कमाल तो हुआ कुरड़ा राम नम्बरदार का ! कांग्रेस ने जैसे ही जयप्रकाश को प्रत्याशी घोषित किया , वैसे ही कुरड़ा राम नाराज हो गये । सुबह काग्रेस छोडने का ऐलान किया और अभय चौटाला तैयार खड़े थे कैच लपकनै को और लपक लिया ! लड्डू कैच यानी सबसे आसान कैच ! दो घंटे के भीतर इनेलो ज्वाइन की और तुरंत हाथों हाथ टिकट भी मिल गयी !

बुआ जाऊं जाऊं करे थी , फूफा लेण आ गया ! देखते रह गये राजेश गोदारा ! ऐसे चट मंगनी , पट ब्याह की तरह मिली और बांटीं हैं टिकटें ! अब कौन दरियां ही बिछाया करेगा पार्टी के लिए ? जब पार्टी ज्वाइन करते ही सौगात मिल जाये तो दरियां बिछाने की जरूरत ही क्या रही ? दलबदल को हर पार्टी प्रोत्साहन दे रही है । कहा जा रहा है कि मंडी आदमपुर के उपचुनाव के सभी प्रत्याशी पहले कांग्रेस में ही थे ! अभय चौटाला ने इसका खंडन करते कहा कि नहीं । जयप्रकाश पहले हमारी पार्टी में थे । बाद में चौ भजनलाल ही इसे कांग्रेस में लाये थे ! मुलाकात हुई थी रेलूराम पूनिया की बेटी की शादी में और दो दिल मिलते देर नहीं लगी ! फिर यही जयप्रकाश सन् 2009 में मंडी आदमपुर से चुनाव लड़े इनके ही प्रत्याशी के खिलाफ और मामला सिर्फ छह हजार वोट के अंतर का रह गया था ! बाल बाल बचे थे चौ भजनलाल के प्रत्याशी ! अब फिर जयप्रकाश प्रत्याशी हैं बेशक कभी काग्रेस छोड़कर चले गये थे । अब घर वापसी की है । जोरदार टक्कर की संभावना जताई जा रही है ।

जजपा को क्या करना है , यह जजना ही जाने ! दिल्ली में विचार मंथन के बीच भी गठबंधन धर्म निभाने का ही फैसला किया । वाह ! पोस्टरों पर हमारे चेहरे भी दिखा दो ! इस शर्त पर समझौता हो गया और अभय चौटाला ने चोट की कि जिस भजनलाल परिवार ने दो दो बार हमारे दादा चौ देवीलाल की सरकार न बनने दी , उसी के साथ समझौता किसलिए किया ? ये तो पच्चीस सितम्बर भी भूल गये और धीरे धीरे चौ देवीलाल की सोच से भी दूर होते जा रहे हैं !
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।

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