भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। आजादी के अमृत महोत्सव पर जनता वर्तमान राजनीतिज्ञों से मायूस होती नजर आ रही है। न सत्ता पक्ष, न विपक्ष उनकी स्थिति सुनने और समझने का प्रयास भी नहीं करते। सभी अपनी-अपनी पार्टी में अपने वर्चस्व की लड़ाई या आर्थिक लाभ में प्रयासरत हैं।

याद आ रही हैं वरिष्ठ साहित्यकार स्व. रामानंद आनंद की पंक्तियां— किसको नमन करूं, किसको झुकाऊं शीश। एक नागनाथ है और एक सांप नाथ है।

यह पंक्तियां वर्तमान परिपेक्ष में खरा उतर रही हैं। सत्ता पक्ष तो अपने गीत गाने में मस्त है। चाहे उनका सच्चाई से वास्ता हो या न हो और विपक्ष अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। और उसमें भी सत्तारूढ़ दल की तरह अपने ही दल में वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहा है।

समाज, देश और प्रदेश के उत्थान की जिम्मेदारी सत्ता पक्ष की होती है और सत्ता पक्ष जनता से विमुख होता नजर आ रहा है। प्रजातंत्र की बात करें तो हरियाणा में 22 फरवरी 2021 से पंचायतों के चुनाव नहीं हुए हैं। प्रजातंत्र की सबसे छोटी ईकाई में प्रजातंत्र नहीं तो कैसा अमृत महोत्सव?

सत्ता पक्ष अपने मद में चूर अपने ही गुणगान गाए जाता है और अपनी मर्जी करे जाता है, आम जनता की बात सुनने-समझने का उनके पास समय नहीं है। कहावत है कि

हाथी अपनी मस्ती में चलता जाए और पीछे कुत्ते भौंकते जाएं

और दूसरी कहावत है कि

कबूतर बिल्ली को देखकर आंख बंद कर लेता है।

अब यहां कौन-सी कहावत सटीक बैठती है या नहीं बैठती है, इसका निर्णय तो पाठक करें लेकिन यदि कोई सटीक बैठती है तो दोनों ही स्थिति प्रजातंत्र के लिए भयाभव हैं।

प्रजातंत्र की परिभाषा में प्रमुख है कि प्रजा द्वारा और प्रजा के लिए ही होता है परंतु यहां प्रजा की सुनवाई नहीं, सत्ता पक्ष अपनी मर्जी कर रहा है। 

दूसरी स्थिति यह भी हो सकती है कि सत्ता पक्ष को यह दिखाई दे रहा है कि जनता शासन से नाराज है। ऐसी स्थिति में उन्हें लगता हो कि हम जनता को प्रसन्न तो कर नहीं सकते, क्योंकि जनता का हर वर्ग ही धरना-प्रदर्शन में संलग्न है। अत: अपना समय पूर्ण करो और आगे राम संभालेंगे। देखने में आ रहा है कि विपक्ष खुद धरना-प्रदर्शन करने की बजाय धरना-प्रदर्शन करने वालों को सहयोग देकर अपना अस्तित्व बचाने की चेष्टा में है।

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