विचार के साथ लोचन भी खुली रखिए तभी मिलेगी सफलता : लीलाधर जगूड़ीएक्टर यशपाल शर्मा ने प्रदान किये स्वयंसिद्धा सम्मान –कमलेश भारतीय प्रसिद्ध एक्टर यशपाल शर्मा ने देहरादून की संस्था कविकुंभ की ओर से शिमला के गेयटी थियेटर में आयोजित शब्दोत्सव के समारोह में पच्चीस प्रतिभाशाली महिलाओं को स्वयंसिद्धा सम्मान प्रदान किये । इनमें इनकी धर्मपत्नी व एक्ट्रेस प्रतिभा सुमन भी एक थीं । यशपाल ने इस कार्यक्रम और संस्था के प्रयास की भूरि भूरि प्रशंसा की । वे विशेष रूप से लद्दाख से शूटिंग के बीच में से आए थे । इनकी धर्मपत्नी मुम्बई से आईं । इससे पूर्व उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए प्रसिद्ध कवि लीलाधर जगूडी ने कहा कि जो लेखक अस्वीकृति का दंश नहीं झेलते वे कभी सफल लेखक नहीं बन पाते । उनका संकेत सोशल मीडिया के लेखकों की ओर था क्योंकि सोशल मीडिया पर कोई संपादक या प्रूफ रीडर तक नहीं होता और कुछेक तारीफों के नोटीफिकेशन से वे अपने आपको महान कवि समझने की भूल कर बैठते हैं । आलोचना शब्द संस्कृत में नहीं है । आलोचना शब्द कबीर के निंदक नियरे से आया है और जहां निंदा करनी होती है , वहां आलोचना शब्द का प्रचलन हो गया है । विचार और लोचन का साथ जरूर है क्योंकि खुली आखों ही साहित्य को देखना चाहिए । चाहे कविता हो , शायरी हो या कहानी सबके आधार में जीवन की ही कहानी छिपी है । साहित्यकारिता और पत्रकारिता विषय पर अपने विचार रखते हुए श्री जगूड़ी ने कहा कि साहित्य और पत्रकारिता अलग अलग हैं । इन्हें एक मानने की भूल न करें । वैसे सभी विधाओं का आपस में संबंध है । उन्होंने कविता और कवि की बड़ी रोचक व्याख्या करते कहा कि कला का कथन होती है कविता । कविता में कवि की तार्किकता भी होती है । कविता में प्रकृति का रंग होता है और पहले जैसे बारिश की एक दो बूंदें आती हैं , फिर पूरी तरह भिगो देती हैं पाठक को ! सत्र के प्रारम्भ में संस्था की अध्यक्षा रंजीता सिंह ने संस्था का परिचय देते बताया कि इस समारोह में पच्चीस महिलाओं को स्वयंसिद्धा सम्मान से सम्मानित किया गया जिन्होंने समाज के विभिन्न क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है । इनमें प्रसिद्ध एक्टर यशपाल शर्मा की पत्नी प्रतिभा सुमन को जो खुद एक्ट्रेस हैं , सम्मानित किया गया । इनके साथ पाखी पत्रिका की डिजीटल संपादिका शोभा अक्षर व देवकन्या ठाकुर सहित अन्य महिलायें शामिल रहीं । कविकुंभ पत्रिका के अंक का विमोचन भी किया गया जोकि उपेंद्र राय पर केंद्रित है और इसमें यशपाल शर्मा पर भी विशेष सामग्री प्रकाशित की गयी है । हिमाचल के भाषा व संस्कृति विभाग के निदेशक पंकज ललित मुख्यातिथि थे और उन्होंने बताया कि मार्च माह से इसी गेयटी थियेटर में किताबघर बनाया गया है जिसमें हिमाचल के लेखकों की अब तक तीन चार लाख रुपये की किताबें पाठकों ने हाथों हाथ खरीदी हैं । कौन कहता है कि पाठक नहीं हैं ? यहां नि:शुल्क गोष्ठियों का भी अवसर प्रदान किया जा रहा है । यहीं पर थियेटर फेस्टिवल भी आयोजित किया जायेगा । प्रारम्भ में हिमाचल के डाॅ हेमराज कौशिक ने बीज वक्तव्य के रूप में साहित्यिक पत्रकारिता की शुरूआत और इसके अब तक अनेक पड़ावों की बात की । राजेंद्र राजन् ने अखबार , रेडियो , दूरदर्शन आदि माध्यमों में सामान्य के गायब होने जाने पर गहरी चिंता व्यक्त की । सामाजिक और साहित्यिक पत्रकारिता की स्पेस लगातार कम होते जाने पर चिंता जताई । हिसार से आये हरियाणा ग्रंथ अकादमी के पूर्व उपाध्यक्ष कमलेश भारतीय ने साहित्यिक पत्रकारिता -कल , आज और कल पर बात कहते हुए निर्मल वर्मा , अज्ञेय , मोहन राकेश , मणि मधुकर , कुबेर दत्त आदि के साहित्यिक पत्रकारिता में योगदान का उल्लेख करते साहित्य के पन्नों के बंजर होते जाने पर चिंता व्यक्त की । सुदर्शन वाशिष्ठ ने कहा कि अब साधन व संसाधन घट रहे हैं और साहित्यिक पृष्ठ सिमटते जा रहे हैं । पाठक भी कह हुए हैं । लघुपत्रिकाओं का प्रचार प्रसार बहुत कम है । सोशल मीडिया से रचनाएं ली जा रही हैं । प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट इरफान ने कहा कि यह विषय काफी रोचक भी है और विचारोत्तेजक भी । ये दोनों चीज़ें अलग हैं और इन्हें एक दूसरे के खिलाफ खड़ा करना गलत है । पत्रों के साहित्यिक परिशिष्ट बंद हो रहे हैं । बाजार और पूंजीवाद ने इस पर बहुत असर डाला । संचालन पर चर्चित कवि आत्मा रंजन ने बहुत सफलतापूर्वक किया । बाद में कवि गोष्ठी भी हुई । इसका संचालन जगदीश बाली ने किया । इस शब्दोत्सव में प्रमुख तौर पर हिमाचल के चर्चित कथाकार एस आर हरनोट, पंजाब से सुरजीत जज , सुरजीत सिरसा , झारखंड से डाॅ अंजुला मुर्मू ,शिमला से दीप्ति सारस्वत , गुप्तेश्वर नाथ उपाध्याय , नरेश दयोग, कुलराजीव पंत , विमल , अजय विचलित , हिसार से रश्मि व नीलम और जोधपुर से रमेश शर्मा , इवा सिंह, कस्तूरिका और कोलकाता से यतींश आदि की गरिमामयी उपस्थिति रही । Post navigation भारत जोड़ो या भारत देखो ,,,? 12 सितंबर – दादा-दादी दिवस…….दादा-दादी की भव्यता को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है।