स्लिप ऑफ टंग के जरिये किसी का मज़ाक बनाना दरअसल संदर्भ को सामने न आने देने की कवायद है विपक्ष का मतलब कांग्रेस और राजद नहीं होता है, विपक्ष का मतलब होता है जनता अशोक कुमार कौशिक कमाल की बात है, स्लिप ऑफ टँग की वजह से आटे का भाव लीटर में मुंह से निकल गया तो सबकी समझ में आ गया लेकिन आटे का दाम 22 से 40 रुपये पहुंच गया । पेट्रोल 60 से 100 रुपये पर पहुंच गया। गैस सिलेंडर 400 से 1100 पर पहुंच गया, ये किसी की समझ में नहीं आ रहा । यही देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है । स्पीच के दौरान स्लिप ऑफ टँग होना बहुत ही नॉर्मल सी बात है । लगभग हर पार्टी का हर नेता स्लिप ऑफ टँग का पब्लिकली शिकार हो चुका है । हाल ही में हरियाणा के सीएम खट्टर इसका एक उदाहरण हैं । मोदी से लेकर अमित शाह तक के साथ कई बार हो चुका है । जबकि राहुल ने तो अगले ही पल उसको सुधार भी लिया । जुबान की फिसलन उतनी महत्त्वपूर्ण नहीं है, जितना कि उसको तुरंत ठीक कर ले जाना और उससे भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण है वक्ता की विषयवस्तु क्या है! वक्ता बोल क्या रहा है, यह ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। ऐसा प्रायः हो ही जाता है कि भावुकता की स्थिति में मुंह से कुछ का कुछ निकल जाए लेकिन बोलने वाला ध्यान आने पर या याद दिलाए जाने पर तुरंत अपने को ठीक भी कर लेता है। न ठीक करना जड़ व्यक्ति की निशानी है। सारे प्रसंग को, सारी विषयवस्तु को उपेक्षित कर स्लिप ऑफ टंग के जरिये किसी का मज़ाक बनाना दरअसल संदर्भ को सामने न आने देने की कवायद है। यहां पर मूल बात है कि वह तथ्यात्मक रूप से या प्रसंग के तौर पर कितना सही या गलत है। आज राहुल के स्लिप आफ टंग का मजाक तो बनाया जा रहा है लेकिन उन्होंने जिस तरह तुरंत अपने को दुरुस्त किया, उसे काट दिया गया बिलकुल वैसे ही जैसे आलू से सोना बनाए जाने वाले स्टेटमेंट में हुआ था। दूसरे का वक्तव्य (आलू से सोना वाला) राहुल के नाम से प्रचारित कर दिया गया। उनके द्वारा उठाए गए महत्वपूर्ण सवालों जो कि जन सरोकारों से जुड़े हैं, से बचना मानसिक गुलामी को दर्शाता है। आश्चर्य है कि मजाक बनाने वाले लोग तक्षशिला के बिहार में होने पर संदेह व्यक्त नहीं करते, ये नानक, कबीर और गुरु गोरखनाथ के बीच संवाद होने पर, भले ही वे अलग-अलग कालखंड में जन्मे हों, संदेह व्यक्त नहीं करते, ये राम द्वारा भरत को रावण से शिक्षा लेने भेजे जाने पर भी संदेह व्यक्त नहीं करते हैं और यही नहीं ये सावरकर के बुलबुल की सवारी किए जाने पर भी संदेह व्यक्त नहीं करते, लेकिन विरोधी नेताओं के चरित्रहनन की झूठी कहानियों के रचना विधान को ऐतिहासिक घटना की तरह सच मान खूब चटखारे लेकर आगे बढाते हैं। पहले के नेताओं से भी बोलने में गलतियां होती रहती थीं पर तब ये मुख्य चर्चा का विषय नहीं बनती थीं। अटल जी भी प्रवाह में आकर विषयांतर कर जाते थे लेकिन तब यह कोई मुद्दा नहीं बनता था। दरअसल यह प्रवृत्ति इधर पालतू आईटी सेल और क्रीत मीडिया को दिए गए दिशानिर्देशों पर बढ़ी है। इस प्रवृत्ति ने तो चरित्रहनन के लिए झूठी कहानियां तक गढ़ी। जनमानस का एक बड़ा वर्ग भी 24 घण्टे वही कीर्तन सुनते-सुनते सुनी गई बातों के आधार पर चीजों को देखने का अभ्यस्त हो चला है। रामलीला मैदान में कांग्रेस की रैली थी। महंगाई के ख़िलाफ़ हल्ला बोल रैली। इस पर वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार का कहना है कि इस नाम से चैनलों में प्रोग्राम चलते हैं मगर हल्ला बोलने के नाम से होने वाली रैली कवर न हों, इसके लिए पहले से ही गोदी पत्रकार अफ़वाहें उड़ा रहे थे कि कांग्रेस की रैली को लेकर ट्विट करने वाले पत्रकारों को पैसे दिए गए हैं। रैली से पहले ही कुछ पत्रकारों ने इस तरह के ट्विट कर दिए। गोदी पत्रकारों को अच्छी तरह पता है कि विपक्ष को कवरेज नहीं मिलेगा। अख़बारों में भी भीतर के पन्ने पर कहीं होगा और राहुल गांधी ने मीडिया को लेकर जो कहा है, वह तो छपने से रहा। वैसे आप कल का अख़बार देख लीजिएगा और आज चैनलों को देख लीजिएगा। कितना छपता है, कितना दिखता है। बच गया सोशल मीडिया तो वहाँ भी कवर न हो इसके लिए पहले से ही पत्रकारों को ताना मार कर डराया जाने लगा।जो निर्लज्जता से गोदी मीडिया बने हुए हैं वो कांग्रेस की रैली पर ट्विट करने वालों को निष्पक्षता के नाम पर ताना मार रहे हैं। जो ख़ुद सत्ता पक्ष में समाहित हो चुका है, वह निष्पक्षता पर ताना तो मारेगा ही।मोहल्ले के बदमाश लोग कभी नहीं चाहते कि पढ़ने वाले शरीफ़ छात्र की घर-घर तारीफ़ हो। रामलीला मैदान में राहुल गांधी ने मीडिया को लेकर विस्तार से बात की। राहुल ने कहा कि देश में मीडिया नहीं है। मीडिया अब केवल दो उद्योगपतियों के हाथ में चला गया है। इन दो उद्योगपतियों का सारा मीडिया मोदी जी के लिए काम करता है और मोदी जी इन दो उद्योगपतियों के लिए काम करते हैं। मीडिया अब जनता की आवाज़ नहीं उठाता। विपक्ष की आवाज़ नहीं दिखाता। इसलिए कांग्रेस और विपक्ष को जनता के बीच जाना होगा। कई महीनों से राहुल के हर भाषण के केंद्र में मीडिया होता है। बिना मीडिया को उजागर किए उनका कोई भाषण पूरा नहीं होता है। उन्हें इस बारे में और विस्तार से बात करना चाहिए। कार्यकर्ताओं को बताना चाहिए कि उन्हें गोदी मीडिया से लड़ने के लिए क्या करना चाहिए।उसके कार्यक्रम क्या होने चाहिए। अख़बारों और चैनलों को लेकर कैसे जनता के बीच जाना चाहिए। उनका भाषण मुद्दों को रेखांकित तो करता है मगर विस्तार नहीं देता। जिस तरह से महंगाई का डिटेल दिया उसी तरह राहुल गांधी को अब नाम लेकर बोलना होगा, अपने अध्ययन के साथ बोलना होगा तभी उनके कार्यकर्ता को पता चलेगा कि जनता को क्या बताना है। विपक्ष गोदी मीडिया की आलोचना तो कर रहा है मगर अभी भी उसकी आलोचना में तैयारी की कमी दिखती है। यह एक असंभव लड़ाई है और इसकी तैयारी आधे-अधूरे तरीक़े से नहीं की जा सकती है। मैं हमेशा से मानता रहा हूँ कि जब तक विपक्ष जनता के बीच गोदी मीडिया को उजागर नहीं करेगा, लोकतंत्र की कोई भी लड़ाई पास टाइम है। हर नागरिक को इस गोदी मीडिया से लड़ना पड़ेगा। कांग्रेस के लिए नहीं, अपने लिए। गोदी मीडिया से लड़ाई बीजेपी के ख़िलाफ़ लड़ाई नहीं है। गोदी मीडिया से लड़ाई नागरिकों के आज़ाद अस्तित्व और स्वाभिमान के लिए है। उसे अपने लिए गोदी मीडिया से लड़ना होगा और विपक्ष को जनता की मदद करनी होगी।जनता को अंदाज़ा नहीं है कि उस पर किस तरह का गोला गिरने वाला है। उसकी चीख पुकार उसके भीतर ही दब कर रह जाएगी। इस समय जनता मीडिया से लड़ रही है मगर पूरी तैयारी के साथ नहीं। कभी वह अपने मुद्दों को लेकर ट्विटर पर ट्रेंड कराती है तो कभी लोकल चैनल के पास जाती है। वहाँ कवर नहीं होता है तो राष्ट्रीय चैनलों के पास जाती है।अख़बार भीतर के पन्नों पर जनता की ख़बरें छाप देते हैं। जनता महसूस कर रही है लेकिन वह गोदी मीडिया के ख़तरों को ठीक से नहीं समझ रही है। अख़बारों और चैनलों से थक-हार कर आप यू-ट्यूबर के पास जाते हैं। एक दिन वहाँ भी दरवाज़े बंद होने वाले हैं बल्कि बंद हो रहे हैं। सूचनाएँ कम हैं। विश्लेषण ही ज़्यादा है। गोदी मीडिया से लड़ने में राहुल गांधी ने देर कर दी लेकिन वे अब गोदी मीडिया के ख़िलाफ़ बोलने लगे हैं।2014 के पहले मीडिया विपक्ष की तरफ़ से सरकार से सवाल करता था,आज मीडिया ने विपक्ष को ही ग़ायब कर दिया है। तब बीजेपी की प्रेस कांफ्रेंस कांग्रेस से पहले कवर की जाती थी और बीजेपी के सवाल पर कांग्रेस से जवाब माँगा जाता था। आज कांग्रेस की बात रखने पर गोदी पत्रकार पत्रकारों को टार्गेट कर रहे हैं। याद रखना चाहिए। विपक्ष का मतलब कांग्रेस और राजद नहीं होता है। विपक्ष का मतलब होता है जनता। जनता को झूठ और भय के आधार पर डराया जा रहा है। जनता हर बार पहले से ज़्यादा पीछे हट रही है जब जनता ही नहीं बचेगी तो देश कैसे बचेगा। अंग्रेज़ों के शासन में जनता ग़ुलाम थी, इसलिए देश नहीं था। तब जनता ने तय किया कि भारत माता की बेड़ियों को तोड़ देंगे। देश बन गया। जिन्हें लगता है कि वे देश के लिए कुछ करना चाहते हैं। उन सभी को गोदी मीडिया से लड़ना चाहिए। यह सबसे आसान लड़ाई है लेकिन मुश्किल है कि इसके लिए पहले ख़ुद से लड़ना पड़ता है। ख़ुद को आज़ाद कराना पड़ता है, इसीलिए यह उतनी ही मुश्किल लड़ाई भी है। हल्के मुद्दों पर बड़े नेताओं की ट्रॉलिंग करके लोग अपना और अपने देश का ही नुकसान कर रहे हैं । Post navigation विकास पुरुष के क्षेत्र में स्टेडियम का टोटा एक शिक्षक, सैंकड़ों ड्यूटी, लाखों खाली पद, कैसे बदलेगी बच्चों की दुनिया?