बंजर जमीन पर निजी संघर्ष के दम पर लड़कियां ला रही है सोना*
बधाई देने वालों में भाजपा के लोग गायब

अशोक कुमार कौशिक 

नारनौल। हरियाणा में भाजपा जजपा गठबंधन सरकार अपनी खेल नीतियों को लेकर लंबे-लंबे दावे करती है। पर उनके दावे धरातल पर धराशाई दिखाई देते हैं। प्रदेश में बाल – बालिकाओं ने भले ही कुश्ती, तीरंदाजी, क्रिकेट, हॉकी, दौड़ जैसे खेलों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया हो, अधिकतर ने बगैर किसी सरकारी प्रोत्साहन के निजी स्तर पर ही हासिल किया है। ऐसा ही इतिहास दक्षिणी हरियाणा के पिछड़े क्षेत्र नांगल चौधरी के नायन गांव की बंजर भूमि पर एक बच्ची मीना गुर्जर ने निजी संघर्ष से सोना हासिल करके सरकार के दावों पर एक तमाचा मारा है। अति पिछड़े क्षेत्र में शुमार जिला महेंद्रगढ़ का नांगल चौधरी विधानसभा क्षेत्र सरकार की खेल नर्सरीयो खोले जाने व स्टेडियमों को लेकर जताए जा रे रहे आंकड़ों को झूठला रहा है। 

हरियाणा के करनाल जिले के कर्ण स्टेडियम में पिछले तीन दिवसीय 33वीं नॉर्थ जोन जूनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप प्रतियोगिता का रविवार चार सितंबर को समापन हुआ । दो दिन तक चली प्रतियोगिता में हरियाणा के 207 खिलाड़ीयों ने हिस्सा लिया, जिनमें 110 लड़के और 97 लड़कियां शामिल थी। पिछले दो दिन से दौड में हरियाणा की बेटियां अव्वल रही हैं। सभी राज्यों के खिलाड़ियों को मात देकर प्रतियोगिता में अपना लोहा मनवाया हैं। प्रदेश के खिलाड़ियों ने प्रतियोगिता में शानदार प्रदर्शन किया है।

इसी क्रम में महेंद्रगढ़ जिले के नांगल चौधरी विधानसभा क्षेत्र के गुर्जर बाहुल्य गांव नायन की मीना ने नेशनल मे गोल्ड मेडल जीत कर परिजनों, नांगल चौधरी विधानसभा क्षेत्र के साथ-साथ प्रदेश का नाम भी रोशन किया है। बालिका मीना ने केवल अपने और परिवार के बलबूते पर शानदार उपलब्धि हासिल करके सरकार व क्षेत्र के प्रतिनिधि के सभी दावों की हवा निकाल दी। नांगल चौधरी विधानसभा क्षेत्र से विधायक को विकास पुरुष की संज्ञा दी जाती है। अब उनके क्षेत्र में कितना विकास है इसका सहज अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि नायन गांव की जिस बच्ची ने स्वर्ण हासिल करके क्षेत्र का रुतबा बढ़ाया है वहां बच्ची के दौड़ने के लिए ट्रैक भी नहीं है, कोच होना तो बहुत दूर की बात है। सरकार दावे करती है कि बड़े गांव में स्टेडियम बनाए जा रहे हैं उसका यह दावा भी यहां धरातल पर धराशाई दिखाई दे रहा है। गांव में किसी भी प्रकार का कोई खेल ग्राउंड नहीं है और ना ही संशाघन। बावजूद इसके मीना ने हार नहीं मानी और खेल की तैयारी के लिए हिसार पहुंची। इससे पहले भी स्टेट लेवल पर मेडल जीत चुकी है। खेल ग्राउंड ना बावजूद अपने दादाजी के साथ मिलकर सुबह 4:00 बजे रोजाना नियमित संघर्ष किया, और व्यक्तिगत तैयारी कर नेशनल में गोल्ड मेडल जीत कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। मीना को खेल के लिए उसके बड़े भाई ने भी प्रोत्साहित किया। वह उत्तर प्रदेश पुलिस का जवान है।

जैसे ही मीना के सोना जीतने की खबर क्षेत्र के लोगों को मिली तो उसको बधाइयां देने वालों का तांता लग गया। गोल्ड मेडल जीतने के बाद आज ग्रामीणों के द्वारा जोरदार स्वागत किया गया। आप को बता दे की मीना ने बाधा दौड़ मे गोल्ड मैडल जीता है। आप तथा कांग्रेस के स्थानीय नेता तो बधाई देने वह प्रोत्साहित करने के लिए उपस्थित थे, वही सत्ताधारी दलों  भाजपा व जजपा से कोई नहीं था। बताया तो यहां तक भी गया कि विकास पुरुष की तरफ से किसी प्रकार का संदेश बच्ची या उसके परिवार वालों के पास नहीं आया। क्षेत्र की पूर्व सांसद श्रुति चौधरी ने फोन पर उसे बधाई अवश्य दी। गुर्जर समाज की ओर से तथा विपक्षी दलों की ओर से बच्ची को अवश्य प्रोत्साहित किया गया।

 मीना के पिता सुभाष तथा माता शकुन्तला ने बताया कि जिला प्रशासन व हरियाणा सरकार की तरफ से भी किसी प्रकार की कोई मदद आज तक मीना को नहीं मिली। न तो हरियाणा सरकार की तरफ से आज तक खेल ग्राउंड का निर्माण गांव में हो पाया और ना ही स्थानीय विधायक के द्वारा किसी प्रकार की कोई भी प्रोत्साहन। 

वही बंजर भूमि मैदान में अकेले निजी संघर्ष की लड़ाई लड़ते हुए गोल्ड मेडल पर मीना ने कब्जा किया। उसके गांव में ट्रैक की जगह न होने के बावजूद 2 किलोमीटर दूर पड़ोस के गांव में युवाओं के द्वारा बनाया गया उबड़ खाबड़ ट्रैक पर उसने अभ्यास किया। ठेठ ग्रामीण परिवेश में पली बच्ची ने अपने परिवार और अपने हम उम्र साथियों की बदौलत अपना हौसले को कायम रखते हुए इस बुलंदी को छुआ है जो काबिले तारीफ है। गरीब परिवार में जन्मी बच्ची ने आज यह साबित करके दिखाया है कि अगर इरादे मजबूत हो तो किसी भी आयाम को छुआ जा सकता है ।

रविवार शाम को जब मीना गुर्जर से हमने बात की तो उसका दर्द जुबां पर छलक आया। एक तरफ हरियाणा की मनोहर सरकार खिलाड़ियों को हर संभव सहायता व आर्थिक मदद प्रदान करने का बड़े बड़े दावे जताती है, पर हकीकत में वह जमीन पर कहीं दिखाई नहीं देते। विकास के दावों को लेकर उसके चेहरे पर पीड़ा साफ झलकती है। बड़ी मासूमियत और भोलेपन के साथ वह धरातल पर सामने आने वाली समस्याओं के प्रति बेबस व लाचार तो थी पर अपने इरादों में कहीं भी कमजोर नजर नहीं आई। भोले-भाले ग्रामीण भी सरकार के दावों को झुठलाते हैं। उनका कहना था की सरकार किसी खिलाड़ी की उपलब्धि हासिल करने के बाद तो उसको प्रोत्साहित करती है पर उसका ध्यान उस समय नहीं होता जब उसको प्राथमिकता स्तर पर बुनियादी ढांचे वह मदद की सख्त आवश्यकता होती है। 

अगर समय रहते इस तरह बच्चों पर ध्यान दिया जाए और गांव में स्टेडियम के साथ प्रशिक्षित कोच मुहैया करवाए जाएं तो दक्षिण हरियाणा में भी एक से एक प्रतिभावान बच्चे गोल्ड पर कब्जा कर सकते हैं। इससे युवाओं में अपराध और नशों के प्रति बढ़ती प्रवृत्ति पर भी रोकथाम लग सकती है। वैसे यह हरियाणा का इतिहास रहा है कि जिन खिलाड़ियों ने कोई पदक या उपलब्धि हासिल की तो वह अपने और अपने परिवार के बलबूते पर ही हासिल की। सरकार ने उपलब्धि हासिल करने के बाद  प्रोत्साहित किया। यहां सवाल यह खड़ा होता है कि सरकार स्कूली स्तर पर इस तरफ ध्यान क्यों नहीं देती? इसको लेकर मीणा गुर्जर के कोच ने प्रशासनिक अमले में फैले व्याप्त भ्रष्टाचार को मुख्य समस्या बताया।

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