बेहतर विकल्प, अब इसमें देरी नहीं होनी चाहिए
कांग्रेस को अब उभरने का समय आ गया है।
कांग्रेस जमीन पर उतरने जा रही है,अब जो यहां से संगठन तैयार होगा वो नई कांग्रेस होगी
राहुल गांधी की पदयात्रा कांग्रेस के लिए एनर्जी का काम करेगी
पिछले 7 सालों में उन्होंने अपने आप को साबित किया है
राहुल के विरुद्ध भाजपा ने बड़ा प्रोपेगेंडा खड़ा कर उन्हें नाक़ाबिल बताने की कोशिश की
अकेले ही बिना डरे मैदान में डटकर मोदी सरकार का विरोध कर रहे हैं।

अशोक कुमार कौशिक 

कांग्रेस जमीन पर उतरने जा रही है,अब जो यहां से संगठन तैयार होगा वो नई कांग्रेस होगी। राहुल गांधी की ये पदयात्रा कांग्रेस के लिए एक एनर्जी का काम करेगी।

देर से ही सही, राहुल दुरुस्त होकर आये हैं। अब जो कांग्रेस यहां से सड़कों पर दिखेगी वो राहुल गांधी की नई कांग्रेस होगी ये पदयात्रा पूरी तरह से सफल भी होगी। रोड़ शो नहीं करना है,पैदल यात्रा करनी है। राहुल गांधी खुद रोज 20 किलोमीटर चलेंगे। छोटे बड़े कस्बों और क्षेत्रों, जिलों में जनसभाएं होगी।

और हां ये पदयात्रा कांग्रेस को इतना तेजी से खड़ा करेगी,की पूछिये मत। तंगहाली से परेशान,भूख से परेशान,न्याय से परेशान जनता कांग्रेस की इस पदयात्रा में घी डालने का काम करेगी।

देश की हकीकत आज भी आम लोगों को नहीं पता, क्योंकि प्रोपोगेंडा का जो जाल बुना गया है। वो बहुत मजबूत है, मीडिया, आईटी सेल दोनों उनके स्तंभ हैं।

आम लोगों के घर में टीवी तो है मगर उसमें दिखाई जाने वाली खबरें सच्ची नहीं है। लोगों के पास मोबाइल भी है। लेकिन आईटी सेल इतनी मसलिया बन गई है कि जब तक आपका लिखा सच घर से बाहर निकलता है। तब तक ये सेल का झूठ दुनिया में अपने कदम रख चुका होता है।

संगठन में वे पहले उपाध्यक्ष बने, फिर अध्यक्ष बने। इस बीच कांग्रेस पार्टी जय और पराजय का मिला जुला स्वाद चखती रही। 2019 की लोकसभा के लिए पार्टी की पराजय की जिम्मेदारी राहुल गांधी ने ली और पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ दिया। उनका आग्रह था कि पार्टी उनके परिवार के बाहर से पार्टी अध्यक्ष चुने पर पार्टी ऐसा करने की हिम्मत न जुटा सकी।

आज भी पार्टी के सामने अध्यक्ष पद के लिए नेहरू गांधी परिवार के बाहर कोई एक नाम सामने नहीं है। राहुल गांधी ने कभी किसी पद की चाह नहीं रखी। आज भी वह अपने आप को प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में नहीं पेश कर रहे हैं। 

अध्यक्ष पद भी अब अशोक गहलोत के हाथों में कमान सौंपने जा रही है। इसलिए कांग्रेस को अब उभरने का समय आ गया है। अशोक गहलोत अनुभवी है। राजीव गांधी, नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह सरकार में काम कर चुके है। तीन बार के मुख्यमंत्री है। गांधी परिवार के करीबी है, जी-23 से भी अच्छे संबंध है। उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस को पिछड़े वर्ग का नया प्रतिनिधित्व मिलेगा, उत्तर भारत में विपक्ष को मजबूती मिलेगी, सचिन पायलट को राजस्थान मिलेगा और कांग्रेस अपने रिवाइवल फेज को दुरुस्त कर पाएगी। राहुल गांधी संगठन में ऊर्जा खपाने की बजाए निश्चिंत होकर पद यात्रा करेंगे। यही सबसे बेहतर विकल्प है, अब इसमें देरी नहीं होनी चाहिए।

कांग्रेस और राहुल गांधी से बहुत लोग निराश हैं। राहुल गांधी में वह आक्रामकता नहीं दिखाई देती जिससे वे बीजेपी का मुकाबला कर सकें । बीजेपी को अपदस्थ करने के लिए किसी आक्रामक नेता और पार्टी का समर्थन करने के लिए लोग इच्छुक दिखते हैं। स्वाभाविक है ऐसा सोचना। मेरा अपना निजी आकलन है कि राहुल गांधी सचमुच गर्म मिजाज के नेता नहीं है,ना उनमें नाटकीयता अथवा चातुर्य का समावेश है। वे बिना भेदभाव के सारे देशवासियों से अथाह स्नेह रखते हैं, अपनत्व रखते हैं।

जनता को बेसब्री है ,वह तुरत निर्णय चाहती है। ऐसे घबराने से कुछ हल नहीं निकलने वाला। राहुल गांधी में सचमुच गांधीवादी विचारधारा है। मैं लगातार वर्षों से उनका अध्ययन कर रहा हूं। उनमें परिपक्वता है। यदि देश को इस विषम परिस्थितियों से कोई उबार सकता है तो वह राहुल गांधी ही हैं। जो महात्मा गांधी को समझते हैं वही राहुल को समझ पाएंगे। शुरू में मैं भी वंशवाद को लेकर उनके प्रति असहमति रखता था मगर पिछले 7 सालों में उन्होंने अपने आप को साबित किया है। आज मैं राहुल से पूरी तरह सहमत हूं। वह भारत का नेतृत्व करने को डिजर्व करते हैं।

राहुल गांधी 2004 में मनमोहन सिंह सरकार में सहज रूप से मंत्री पद पा सकते थे। वे 2009 में प्रधानमंत्री भी बन सकते थे। मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया। सरकार के ऊपर उन्होंने संगठन को प्राथमिकता दी।

राहुल गांधी के विरुद्ध भाजपा ने एक बड़ा प्रोपेगेंडा खड़ा कर उन्हें नाक़ाबिल बताने की कोशिश की है। आज भी भाजपा के लोग यह कह कर राहुल गांधी को ख़ारिज कर देते हैं कि उनका अध्यक्ष बनना भाजपा को लाभ पहुचायेगा। आज भी भाजपा अपने उस प्रोपेगेंडा पर यकीन कर रही है।

भारत की जनता विलक्षण प्रकृति की है। उसके मन और मिज़ाज को समझना आसान नहीं है। 1971 में महानायक बन कर उभरी इंदिरा गांधी अगला आम चुनाव बुरी तरह हार कर सत्ता से बाहर हो जाती हैं और तीन साल के भीतर ही मध्यावधि चुनाव से शानदार वापसी करती हैं।

1984 में सबसे बडे़ बहुमत से सरकार बनाने वाले राजीव गांधी अगला आम चुनाव हार कर सत्ता से बाहर हो जाते हैं और दो साल में ही उनकी पार्टी फिर सत्ता में वापसी कर लेती है। 2004 में 6 साल और 3 बार के प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई शाइनिंग इंडिया के नारे के बाबजूद हारकर सत्ता से बाहर हो जाते हैं।

हालांकि, इन राजनीतिक उतार चढ़ावो की अपनी वजह रही हैं मगर यह भारतीय मतदाता की राजनीतिक चाल को कुछ हद तक तो समझाती ही हैं। राहुल गांधी ने इतना तो किया ही है कि भाजपा के लिये मैदान खाली नहीं छोड़ा है। एक अकेले ही बिना डरे वह मैदान में डटकर मोदी सरकार का विरोध कर रहे हैं। राजनीति संभावनाओं का खेल होती हैं और मुझे राहुल गांधी में सम्भावनाए नजर आ रही हैं। 

मैं जब राहुल गांधी को सुनता हूँ तो अक्सर मुझे इंदिरा,नेहरू, गांधी, लोहिया, जेपी, मार्क्स, लेनिन, मंडेला  के आवाज की प्रतिध्वनियां सुनाई देती हैं। लोहिया ने कहा था जिंदा कौमें पांच साल इंतजार नही करती, राहुल गांधी की अकेली आंख उस पांच साल के इंतजार के खिलाफ बार बार लड़ाई लड़ते नजर आती है। 

मैं जब राहुल गांधी को देखता हूँ तो कांग्रेस को भूल जाता हूँ। लोग कहते थे इंदिरा ही कांग्रेस है। मुझे लगता है राहुल केवल कांग्रेस नही हैं वो चाहते जरूर हैं कि कांग्रेस उनके जैसी हो। राहुल भविष्य है, राहुल ही राजनीति है, राहुल ही इस देश की अभिव्यक्ति है। 

मैं साफ कहता हूं कांग्रेस में तमाम खामियां हैं संगठन से जुड़ी तमाम विपदाएं हैं, घात हैं, प्रतिघात हैं । लेकिन कांग्रेस के पास एक ऐसी चीज है जो किसी अन्य राजनैतिक दल के पास नही है कांग्रेस के पास राहुल गांधी है।

अजीब आदमी है राहुल गांधी बीच चुनाव में जब पक्ष विपक्ष का  एक एक बयान जीत हार को तय करने का कर रहा हो उन्होंने कमलनाथ की बखिया उधेड़ दी। कौन कर सकता है ऐसा साहस?  कौन है जो अपने ही सरकार के खिलाफ प्रेस कांफ्रेंस कर दे? कानून का ड्राफ्ट फाड़ दे? कोई एक नाम बताओ। कोई तो होगा। कांग्रेसी राहुल गांधी को देश का प्रधानमंत्री बनते देखना चाहते हैं। मैं भी चाहता हूं! लेकिन राहुल के लिए  पीएम पद छोटा है बेहद छोटा, यकीन मानिए मुझे राहुल में गांधी ज्यादा दिखते हैं।

मेरा बस चले तो राहुल गांधी से कहूं मत लेना कभी पीएम का पद। इस देश के युवाओं को बताना तुमने इस देश को कितना जाना। इस देश के लिए नई पीढ़ी के नेता तैयार करना , नए शक्ति केंद्रों की नींव रखना। बताना तुम्हारे सपनों का देश कैसा है? बताना इस देश को कैसे बेहतर बनाया जा सकता है। युवाओं से कहता जाओ बैठो इस व्यक्ति के पास और देखो इसकी आंखों से हिंदुस्तान कैसा दिखता है। 

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