-कमलेश भारतीय

राजनीति में महिलाओं की कितनी भूमिका है ? स्वतंत्रता आंदोलन से जाने नाम दुर्गा भाभी , इंदिरा प्रियदर्शिनी , सरोजिनी नायडू और सुचेता कृपलानी आदि । और भी नाम हो सकते हैं । दुर्गा भाभी ने शहीद भगत सिंह को लाहौर में सांडर्स की हत्या के बाद निकाला । सरोजिनी नायडू की भी भूमिका उल्लेखनीय रही तो इंदिरा प्रियदर्शिनी ही बाद में इंदिरा गांधी जैसी लौह महिला के रूप में सामने आईं । बेशक उन्हें लाने के पीछे सिंडीकेट का यह ख्याल था कि यह तो ‘गूंगी गुड़िया’ है और जैसा चाहेंगे , वैसा करवा लेंगे लेकिन इंदिरा गांधी ने यह सारी धारणाएं गलत साबित कर दीं और एक ऐसी प्रधानमंत्री बनीं जिन्हें आज तक याद किया जाता है । सिर्फ प्याज की बढ़ती कीमतों से ही एक लोकसभा चुनाव जीतने का करिश्मा कर दिखाया था जबकि आज कांग्रेस रसोई गैस की बढ़ती कीमत को भी कैश नहीं कर पा रही । कभी एक हजार से ऊपर रसोई गैस की कीमत से जायेगी ? सोचा न था । इसी प्रकार इंदिरा गांधी ने आत्मा की आवाज पर कांग्रेस के ही अधिकृत प्रत्याशी डाॅ संजीवा रेड्डी को हरवा कर वी वी गिरी को राष्ट्रपति बनवा दिया था और सारे दिग्गज देखते रहे गये थे । आज वैसी लौह महिला राजनीति में नहीं है ।

बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती एक समय प्रधानमंत्री पद की दावेदार मानी जाती थीं लेकिन पिछले पांच वर्षों में उत्तर प्रदेश की राजनीति में भी उनकी कोई छाप नहीं है । प्रधानमंत्री बनने की कौन कहे ! बिल्कुल सत्ता से सुर मिलाकर चल रही हैं । विरोध का दम नहीं दिखा रहीं ।

पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जिन्हें बंगाल की शेरनी कहा जाता है , उनकी दहाड़ भी अब सुनाई नहीं दे रही । वे पहले कांग्रेस में रहीं और ऐसा माना जाता है कि पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी उनके राजनितिक गुरु थे लेकिन जब उन्हें प्रत्याशी बनाया गया राष्ट्रपति पद का मुश्किल से समर्थन देने को मानी थीं । अकेली भिड़ गयी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से और पश्चिमी बंगाल का चुनाव भी जीता लेकिन अब सुर बदले बदले से हैं ।

हरियाणा की बात करें तो सुषमा स्वराज पहले लोकदल-भाजपा गठबंधन सरकार में मंत्री बनी । बहुत छोटी उम्र में । फिर दिल्ली की मुख्यमंत्री और बाद में केन्द्रीय सूचना व प्रसारण मंत्री और विदेश मंत्री भी रहीं और दोनों पदों पर अपने काम के लिए प्रशंसा बटोरी । अब भाजपा ने सुधा यादव को आगे बढाया है । देखें क्या छाप छोड़ती हैं !

क्या राजनीति में प्रियंका गांधी अपनी कोई छाप छोड़ पाने में सफल होंगी ? यह भी एक बहुत बड़ा सवाल है । शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले महाराष्ट्र तक सीमित है । राष्ट्रपति पद तक पहले प्रतिभा पाटिल और अब द्रौपदी मुर्मू पहुंची हैं । वैसे फिल्मी दुनिया से अनेक अभिनेत्रियां राजनीति में आईं लेकिन कोई छाप छोड़ने में सफल न हुईं क्योंकि पार्टियां इन्हें वोट कैश करने का ही एक चेहरा समझती हैं । यह कब तक चलेगा ? कब तक सिर्फ चेहरे पर वोट दिये जायेंगे ? यह सोचने की बात है ।
अभी हरियाणा की सोनाली फौगाट का दुखद अंत हुआ है और वे एक भी चुनाव जीत नहीं पाई थीं लेकिन अपने दूसरे कामों यानी एक्टिंग व सोशल मीडिया के कारण ज्यादा चर्चित रही ।

महिलाओं को पति इसलिए भी राजनीति में लाते हैं जब उनका क्षेत्र महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाता है । फिर घूंघट की ओट में ही ये राजनीति में आती हैं और बैठकों में इसके पतिदेव जाते हैं । इस स्थिति पर प्रसिद्ध लेखिका मैत्रेयी पुष्पा ने एक कहानी लिखी -वसुमति की चिट्ठी जो बहुत चर्चित हूई । यह कब तक चलेगा ? महिलायें स्वतंत्र रूप से कब राजनीति में अपने कदम रखेंगीं ?
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।

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