-राजपूत एकता फाउंडेशन के स्थापना दिवस पर कही यह बात
-समाज के अग्रणी लोगों को विधायक ने किया सम्मानित

गुरुग्राम। गुरुग्राम के विधायक सुधीर सिंगला ने राजूपतों के शौर्य और पराक्रमी बताते हुए कहा कि इतिहास में राजपूतों ने अपनी एक अलग पहचान कायम की है। राजा हर्षवर्धन सिंह, पृथ्वीराज चौहान, जोधा बाई, मीराबाई, महाराणा प्रताप जैसे राजपूत शासकों की वीरता की कहानी स्वर्णिम अक्षरों में इतिहास के पन्नों पर लिखी हुई हैं। यह बात उन्होंंने यहां राजपूत एकता फाउंडेशन के स्थापना दिवस समारोह में बोलते हुए कही।

समारोह में जहां राजपूत समाज के लोगों ने विधायक का भव्य स्वागत किया, वहीं विधायक सुधीर सिंगला ने समाज के अग्रणी, समाजसेवी लोगों को प्रशंसा पत्र देकर सम्मानित भी किया। इस अवसर पर पार्षद सुभाष सिंगला, राजपूत समाज के अध्यक्ष नरसिंह सिंह, उपाध्यक्ष तिलक राज, वीरेंद्र राय, संतोष ठाकुर, सत्येंद्र सिंह, अशोक चौहान समेत अनेक लोग मौजूद रहे।
विधायक सुधीर सिंगला ने अपने संबोधन में राजपूतों को साहसी, पराक्रमी बताते हुए कहा कि अपने धर्म के लिए समर्पित माने जाने वाले राजपूतों का इतिहास काफी महत्वपूर्ण और दिलचस्प है। उन्होंने कहा कि राजपूत राजकुल में पैदा होने से नहीं, बल्कि राजा जैसे गुण रखने और सभी के हित के बारे में सोचने, सभी की रक्षा करने एवं अपने धर्म के प्रति समर्पित रहने के लिए राजपूत कहलाए। अंग्रेजी शासन के दौरान राजपूतों को राजपूताना भी कहा जाता था। कवि चंदबरदाई के कथा के मुताबिक राजपूतों को 36 जातियों में वगीकृत किया गया था, जबकि राजपूतों के प्रमुख गोत्र राठौड़, कुशवाहा, दहिया, पंवार, चौहान, सिसौदिया, जादों आदि हैं।

जाहिर है कि राजूपतों को उनके अद्भुत साहस और अस्त्र-शस्त्र विद्या में निपुण, युद्ध कौशल से पारंगत आदि गुणों के लिए जाना जाता है। भारतीय इतिहास भी राजपूत शासकों की वीरता की कहानियों से भरा पड़ा है। राजपूत युद्ध में हमेशा ही अपनी पारंपरिक और पुरानी युद्ध नीतियां अपनाते थे। वे कभी मुगलों की तरह कूटनीति एवं षडयंत्र के साथ युद्ध नहीं लड़ते थे। राजपूत अपने उसूलों के पक्के होते थे और एक बार जो प्रतिज्ञा कर लेते थे और उसी पर अमल रहते थे। युद्ध में राजपूत निहत्थे पर वार नहीं करते थे।

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