कैसा जमाना-कैसी रीत, कल तक था जो बेगाना-वही बना प्रीत

भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। वर्तमान समय राजनीति में एक अजीब दौर से गुजर रहा है। यहां आदमी की योग्यता की कोई परख नहीं। परख है तो केवल इस बात की कि उस व्यक्ति के पास ऐसी कितनी योग्यता है, जो वह अपने उच्चाधिकारियों को प्रसन्न कर सके और देखा गया है कि जो कार्यकर्ता चमचागिरी करने में पारंगत हो जाता है, वही उतना बड़ा पद पा जाता है। इससे आगे एक बात और देखने में नजर आई कि व्यक्ति का सम्मान उसके व्यवहार, सौम्यता, कार्यशैली आदि पर निर्भर नहीं करता। सम्मान निर्भर करता है कि उस व्यक्ति के पास सामथ्र्य कितनी है, जो वह आपके काम आ सके और जब किसी व्यक्ति के पास ऐसी सामथ्र्य हो तो फिर उसका सम्मान करने वालों की गिनती गिनी ही नहीं जा पाती।

उपरोक्त कथन मेरे अपने नहीं हैं, ये मस्तिष्क में आए हैं 17 तारीख दोपहर दो बजे के बाद गुरुग्राम भाजपा में नेताओं की कार्यशैली देखकर। 

17 तारीख को जब यह समाचार आया कि पूर्व सांसद डॉ. सुधा यादव को भाजपा की संसदीय समिति में शामिल कर लिया गया है और साथ ही भाजपा की चुनाव समिति का सदस्य भी बनाया गया है। उसके पश्चात से सैक्टर-10 स्थित उनके निवास पर बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ है, जबकि इससे पूर्व कभी उसके निवास पर ऐसा नहीं देखा गया। ऐसा नहीं कि सुधा यादव किसी से मिलने से इंकार करती थीं, वह प्राचीन सभ्यता के अनुसार आगंतुक को अतिथि की तरह सम्मान देती थीं लेकिन फिर भी लगभग एकांतवास ही भोगना पड़ रहा था।

अभी गुरुग्राम में नगर निगम के चुनाव होने हैं। बहुत से भाजपाइयों के मुंह से यह सुना जा रहा था कि बहन सुधा यादव मेयर की टिकट पाने की दौड़ में हैं, जबकि पाठकों को याद होगा कि भारत सारथी ने उनसे बात कर लिखा भी था कि उन्होंने कहा कि प्रश्न ही नहीं उठता कि मैं इस बारे में सोचूं भी लेकिन फिर भी नेताओं का कहना था कि हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और।

यह विचारनीय विषय है कि यही आज की राजनीति है कि संबंध लाभ के लिए बनाए जाते हैं। सम्मान स्वार्थ के लिए किया जाता है। जब यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है तो ऐसे में आम जनता को अनुमान लगाना चाहिए कि वे ऐसे व्यक्ति आम जनता के कितने हितैषी हो सकते हैं?

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