– बोले विजिलैंस का ज़ोर घोटाले के असली मगरमच्छों को सजा की बजाय बचाने पर

– जाँच के नाम पर सिर्फ लीपा पोती और पाखंड जारी

चंडीगढ़, 4 अगस्त – कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव एवं राज्यसभा सांसद, श्री रणदीप सिंह सुरजेवाला ने प्रदेश के बहुचर्चित एचसीएस/डेंटल सर्जन भर्ती घोटाले की जाँच पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के पदेन मुख्य न्यायाधीश की निगरानी में कराए जाने की माँग की है।

सुरजेवाला ने मामले की जाँच के नाम पर पाखंड कर रही विजिलेंस पर घोटाले में शामिल बड़े मगरमच्छों को बचाने का आरोप लगाया है। उन्होंने आरोप लगाया कि इस घोटाले में जितनी बड़ी मछलियां शामिल थीं, विजिलेंस जाँच के नाम पर खट्टर सरकार ने उन सभी को बचा लिया है।

सुरजेवाला ने कहा कि इस घोटाले में जितने बड़े-बड़े नाम निकल कर आ रहे थे, उनकी जाँच करना विजिलेंस के बूते से बाहर की बात है। यही कारण है कि मुख्य विपक्षी दल के रूप में कांग्रेस पार्टी की शुरू से ही यह मांग रही है कि इस घोटाले की जाँच विजिलेंस से लेकर माननीय उच्च न्यायालय के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश से करवाई जाए।

उन्होंने कहा कि अभी तक की जाँच के आधार पर यह निष्कर्ष बिल्कुल साफ़ है कि विजिलेंस केवल अनिल नागर जैसे छोटे स्तर के अधिकारी को मोहरा बनाकर एचपीएससी के सदस्यों तथा सरकार से जुड़े लोगों को बचा रही है। खट्टर सरकार ने तमाम नैतिकताओं को ताक पर रखते हुए विजिलेंस जाँच के नाम पर सभी घोटाले बाजों को क्लीन चिट देकर मुक्त कर दिया।

सुरजेवाला ने सवाल किया कि एचपीएससी के चेयरमैन आलोक वर्मा को अब तक भी जाँच में क्यों नहीं शामिल किया गया?

उन्होंने कहा कि इस भर्ती घोटाले की प्रारंभिक जाँच में एचपीएससी के चेयरमैन आलोक वर्मा की संलिप्तता के प्रारंभिक सबूत सामने आने के बावजूद भी आलोक वर्मा को विजिलेंस ने जाँच में शामिल नहीं किया। सभी लोग जानते हैं कि एचपीएससी के चेयरमैन आलोक वर्मा सीएमओ से एचपीएससी में आए हैं तथा उनकी गिनती मुख्यमंत्री खट्टर के बेहद करीबी लोगों में होती आई है।

उन्होंने पूछा कि कहीं खट्टर साहब को यह डर तो नहीं सता रहा कि यदि आलोक वर्मा को जाँच के दायरे में लाया गया तो इस घोटाले की जाँच की आँच उनके अपने सीएमओ तक भी पहुंच सकती है?

यह जाँच का विषय है कि खट्टर साहब ने अपने सीएमओ के लोगों को बचाने के लिए ही कहीं आलोक वर्मा को भी जाँच के दायरे से बाहर तो नहीं करवा दिया?

सुरजेवाला ने कहा कि इस मामले में अनिल नागर को बलि का बकरा तो बना दिया गया, लेकिन जाँच तो उसकी भी नहीं की गई। उन्होंने आरोप लगाया कि विजिलेंस ने पहले तो सारा घोटाला एचपीएससी के उस समय के डिप्टी सेक्रेटरी अनिल नागर के सिर पर थोप दिया, ताकि बड़ी मछलियों को बचाया जा सके, और फिर अनिल नागर की भी ठीक से जाँच नहीं की।

विजिलेंस ने अनिल नागर को यह कहकर 4 दिन के पुलिस रिमांड पर लिया था कि उसे रोहतक तथा रोहतक जिले में अनिल नागर के मामा के घर पर ले जाकर कुछ सबूत बरामद करने हैं, लेकिन 4 दिन की पुलिस रिमांड के बावजूद खट्टर साहब की विजिलेंस अनिल नागर को पंचकुला से बाहर लेकर नहीं गई। विजिलेंस ने जिस जाँच के नाम पर अनिल नागर को रिमांड पर लिया था, वह जाँच कभी की ही नहीं गई तथा पुलिस रिमांड पूरा होने के तुरंत बाद अनिल नागर को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।

सुरजेवाला ने कहा कि इस मामले में माननीय न्यायालय की टिप्पणियां अपने आप में यह प्रमाणित करती हैं कि खट्टर साहब की विजिलेंस अनिल नागर की जाँच के प्रति गंभीर नहीं थी और जाँच के नाम पर अब तक केवल खानापूर्ति ही होती आई है।

सुरजेवाला ने सवाल किया कि 17 नवंबर, 2021 की एफआईआर में सेफडॉट ई- सो ल्यूशंस प्रा लिमिटेड का मालिक जसबीर बल्हारा भी नामजद था लेकिन, खट्टर साहब की विजिलेंस ने कभी इसको जांच ही नहीं की।

जसबीर बल्हारा को जांच से बाहर क्यों रखा गया ये तो खट्टर साहब ही बता सकते हैं।

उन्होंने कहा कि खट्टर साहब की विजिलेंस ने इतने बड़े घोटाले को 15 एचसीएस और 13 डेंटल सर्जन की ओएमआर तक सीमित कर दिया। उन्होंने पूछा कि जब खुल्ले आम ओएमआर सीट भरी जा रही थी तो क्या विजिलेंस चीफ ये शपथ पत्र दे सकते हैं कि इसके अलावा किसी और ओएमआर सीट में गड़बड़ नही है?

रणदीप ने कहा कि जब साढ़े तीन करोड़ की नकदी पकड़ी जा चुकी थी तो विजिलेंस ने कभी भी नकदी देने वालों को हिरासत में लेकर पूछताछ क्यों नहीं की? सीधे सीएम पर निशाना साधते हुए उन्होंने सीधा सवाल किया कि खट्टर साहब ने इस घोटाले की जांच करवाई है या दबवाई है?

उन्होंने आरोप लगाया कि खट्टर साहब की विजिलेंस की जांच ने सवालों के उत्तर नही ढूंढे बल्कि और नए सवाल खड़े कर दिए हैं।

ये पूरी जांच रिपोर्ट ये सिद्ध करती है कि ये केवल दाल में काला नही बल्कि पूरी दाल ही काली है।

सुरजेवाला ने कहा कि सरकार की इस जांच रिपोर्ट को रद्दी की टोकरी में डालकर माननीय उच्च न्यायालय से इस अटैची कांड की जांच करवाई जानी चाहिए ताकि दोषियों को उनके कुकर्मों की सजा व प्रदेश के लाखों शिक्षित युवाओं को न्याय दिलवाया जा सके।

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