भारतीय राष्ट्र ध्वज हर भारतीय के दिल में बसता है और भारतीय नागरिक तिरंगे के सम्मान, रक्षा के लिए हर जगह बलिदान देता रहा है और आगे भी देता रहेगा। विद्रोही
26 जनवरी 2001 को आरएसएस मुख्यालय नागपुर में तीन युवको विजय रमेश केलवे, उत्तम जंगलुकी मेडेे, दिलीप गोपीचंद छतनाली ने तिरंगा फहराने का प्रयास किया था तो धारा 147, 148, 448, 322, 504, 506बी व 149 के तहत संघीयों ने ही उनके खिलाफ नागपुर थाने में एफआईआर नम्बर 176/2001 दर्ज करवाई थी : विद्रोही

4 अगस्त 2022 – स्वयंसेवी संस्था ग्रामीण भारत के अध्यक्ष एवं हरियाणा प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता वेदप्रकाश विद्रोही ने कहा कि भारतीय राष्ट्र ध्वज हर भारतीय के दिल में बसता है और भारतीय नागरिक तिरंगे के सम्मान, रक्षा के लिए हर जगह बलिदान देता रहा है और आगे भी देता रहेगा। विद्रोही ने आरोप लगाया कि तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज न मानने वाले व आजादी के बाद 52 वर्षो तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मुख्यालय नागपुर में तिरंगा न फहराने वाले संघी आज सत्ता बल पर घर-घर तिरंगा फहराने का राग अलापकर आजादी आंदोलन में अंग्रेजों के मुखबिर, दलाल होने का पाप छुपाने व तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज न मानने के पाप को धोने के लिए लम्बी-चौडे दमगज्जे मार रहे है। लेकिन संघी न भूले जब 26 जनवरी 2001 को आरएसएस मुख्यालय नागपुर में तीन युवको विजय रमेश केलवे, उत्तम जंगलुकी मेडेे, दिलीप गोपीचंद छतनाली ने तिरंगा फहराने का प्रयास किया था तो धारा 147, 148, 448, 322, 504, 506बी व 149 के तहत संघीयों ने ही उनके खिलाफ नागपुर थाने में एफआईआर नम्बर 176/2001 दर्ज करवाई थी और संघ मुख्यालय पर तिरंगा फहराने का प्रयास करने वाले युवक 12 साल तक नागपुर जिला अदालत में मुदकमा झेलते रहे और 6 अगस्त 2013 को नागपुर के न्याय दंडाधिकारी प्रथम श्रेणी आरआर लोहिया की कोर्ट नं0 8 ने उनको बाईज्जत बरी किया। 

विद्रोही ने सवाल किया कि संघ मुख्यालय पर तिरंगा फहराने का प्रयास करने वाले युवकों के खिलाफ खुद संघीयों का मुकदमा व उन्हे जेल सजा दिलवाने का कुप्रयास खुद संघीयां के तिरंगे के प्रति कथित प्रेम की पोल खोल रहा है और जो संघी तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज मानने से भी इनकार करते रहे है, आज आजादी के 75 वर्ष बाद राष्ट्रीय ध्वज के अलम्बदार बनकर किसे ठगना चाहते है? विद्रोही ने कहा कि इतना ही नही 30 नवम्बर 1949 को संघीयों ने तो अम्बेडकर को जातिगत गालिया देकर भारत के वर्तमान संविधना की जगह मनुस्मृति को भारत के संविधान बनाने की बेतुकी मांग की थी।

आरएसएस के मुखपत्र आर्गेनाईजर ने संपादकीय लिखकर संविधान की जगह मनुस्मृति लागू करने की मांग की थी। वहीं 11 दिसम्बर 1949 को दिल्ली के रामलीला मैदान में आरएसएस व हिन्दू महासभा, रामराज्य परिषद ने संविधान व हिन्दू कोड बिल को पूरी तरह से हिन्दू विरोधी बताते हुए संविधान निर्माता डा0 भीमराव अम्बेडकर को सार्वजनिक रूप से जातिगत गालिया देकर कहा था कि एक अछूत अम्बेडकर को ब्राहा्रणों के आरक्षित अधिकारों में हस्ताक्षेप से बचना चाहिए। आरएसएस ने 1 जनवरी 1993 को संविधान को हिन्दू विरोधी बताते हुए इसका विरोध किया था। जो संघी न तो भारत के संविधान को मानते थे और न ही तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज मानने को तैयार थे, वे पांखडी आज किस मुंह से तिरंगे व संविधान पर देश के नागरिकों को उपदेश झाड़ रहे है और तिरंगे को लेकर विपक्ष पर तंज कसने की बेशर्मी कर रहे है। 

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