क्या अकेले चुनाव लड़ने की भाजपा कार्यकर्ताओं के विचार को फिर रख पाएंगे पार्टी के सामने।

धर्मपाल वर्मा

चंडीगढ़। हरियाणा में पंचायती राज व्यवस्था के चुनाव का डंका बजने वाला है चुनाव आयोग ने साफ कर दिया है कि यह चुनाव आगामी 30 तक करा दिए जाएंगे। अब चुनाव की तारीख तय होनी बाकी है लेकिन यह फैसला भी होना बाकी है कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी इस चुनाव को जननायक जनता पार्टी के साथ मिलकर लड़ेगी या अकेले। वैसे ज्यादा संभावनाएं इस बात की है कि दोनों दल मिलकर ही चुनाव लड़ेंगे। इस मामले में पिछले दिनों उप मुख्यमंत्री और बीजेपी के नेता दुष्यंत चौटाला का ध्यान कुछ इस तरह से आया था कि उनका यह मानना है कि दोनों दल पंचायतों के अलावा आगामी संसदीय और विधानसभा चुनाव भी मिलकर लड़ेंगे।

जहां तक भारतीय जनता पार्टी उसके हितों और कार्यकर्ताओं के दूध धान का मामला है लोग यह सवाल करने लगे हैं कि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ अब इस मामले में चुप्पी साध कर चलेंगे या एक बार फिर यह कहना चाहेंगे कि भाजपा कार्यकर्ता और समर्थक यह चाहते हैं की पंचायती राज व्यवस्था के चुनाव भाजपा अपने दम पर और अकेले लड़े। देखा जाए तो पिछले दिनों लोकल बॉडीज के चुनाव के समय ओमप्रकाश धनखड़ की के प्रयासों से ही यह फैसला हुआ था कि भारतीय जनता पार्टी इन चुनाव में अकेले लड़ेगी परंतु इस फैसले को तीन-चार दिन में ही पलट दिया गया इसे ओमप्रकाश धनखड़ सहित भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश के नेताओं की हार और बीजेपी नेताओं की जीत बताया गया।

पिछले दिनों दुष्यंत चौटाला ने यह बयान देकर भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को नया और बड़ा संदेश दे दिया है की गठबंधन रहे या टूटे उन्हें कोई चिंता नहीं है। मतलब कोई फर्क नहीं पड़ता जहां तक पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव का सवाल है यहां बीजेपी के नेता इसी मुद्रा में है की गठबंधन हो तो ठीक ना हो तो ठीक क्योंकि देहात में उनका पक्ष बीजेपी से मजबूत इसलिए माना जा रहा है कि गांव में बीजेपी के मतदाता तो हैं परंतु उनका मजबूती से नेतृत्व करने वाले लोग मजबूत नहीं है। खास तौर पर एस्से जैसे कि जेजेपी के पास हैं। भाजपा और जेजेपी कठे चुनाव लड़ेंगे भी तो सीटों का बंटवारा मतलब कौन कहां से लड़े वाले मुद्दे पर भी बड़ा गतिरोध देखने को मिलेगा। दोनों दोनों का यह गतिरोध चर्चा का विषय भी बन सकता है।

पंचायती चुनाव मुद्दों की बजाए जाति पति गोत्र अन्य पानो और ठोलों के आधार पर भी लड़ा जाता है ।इस मामले में देहात में कई जगह जे जे पी का नेटवर्क बीजेपी से ज्यादा मजबूत है। जेजेपी के नेता इस चुनाव के माध्यम से अपना जनाधार मजबूत करने की कोशिश में नजर आ रही है।

ओमप्रकाश धनखड़ पर देहात के बीजेपी समर्थकों का अब भी यही दबाव है कि वह पार्टी पर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला लेने के लिए दबाव बनाएं परंतु अब यह संभव नहीं लगता कि इस मुद्दे पर ओमप्रकाश धनखड़ दूसरी बार फिर कोई कोशिश करने की हिम्मत कर पाएंगे।

जहां तक कांग्रेस का सवाल है उसकी स्थिति सांप छछूंदर की नजर आ रही है ।जिस पार्टी में नगर परिषद और नगर पालिकाओं के चुनाव यह कहकर चिन्ह पर नहीं लड़े कि पार्टी केवल नगर निगम के चुनाव अपने चिन्ह पर लड़ती है, तो वह पंचायती चुनाव चिन्ह पर लड़ने की हिम्मत नहीं कर पाएगी ।वैसे अभी कांग्रेस ने इस बारे में कोई अंतिम फैसला नहीं लिया है। देखा जाए तो राजनीतिक पर्यवेक्षक यह राय रखते हैं कि सत्तारूढ़ दल को इस तरह के चुनाव चिन्ह पर नहीं लड़ने चाहिए और विपक्षी दलों को ऐसे चुनाव पार्टी चिन्ह पर लड़ने से चूकना नहीं चाहिए। हो उल्टा रहा है। बेशक आम आदमी पार्टी ने नगर पालिका और नगर परिषदों के चुनाव चिन्ह पर लड़े हैं परंतु वह पंचायती चुनाव में यह रिस्क लेने को तैयार नजर नहीं आ रही।