दूसरों से बदला लेते लेते हम समाज में बदलाव लाना भूल गये : रमेश शर्मा

-कमलेश भारतीय

दूसरों से बदला लेने लेते हम समाज में , देश में बदलाव लाना ही भूल गये । हम प्रकृति से , समाज से और देश से बदला लेने में ही व्यस्त हो चुके हैं । यह कहना है गांधीवादी चिंतक रमेश शर्मा का । वे सर्वोदय भवन में आयोजित दादा गणेशी लाल पुण्यतिथि पर व्याख्यान के लिए आमंत्रित थे । इस कार्यक्रम की अध्यक्षता आनंद शरण ने की , जो पट्टी कल्याणा से विशेष रूप से आए थे जबकि वरिष्ठ अधिवक्ता पी के संधीर का सान्निध्य रहा । प्रारम्भ में प्रो महेंद्र विवेक ने दादा गणेशी लाल के जीवन के कुछ महत्त्वपूर्ण पहलुओं की जानकारी दी । संचालन सत्यपाल शर्मा ने किया । पी के संधीर ने दोनों अतिथियों को सम्मानित किया ।

रमेश शर्मा ने व्याख्यान को बढ़ते प्रदूषण पर गहरी चिंता के साथ शुरु किया कि कैसे आज हमारी पवित्र नदियों गंगा व यमुना का पानी पीने तो क्या आचमन के योग्य भी नहीं रह गया । दिल्ली आज सबसे बड़ा नर्क बन चुकी है बढ़ते प्रदूषण के चलते । फिर वे मतभेद और मतभेद पर आए और दुख व्यक्त किया कि मतभेद बढ़ते जा रहे हैं । इसी से संकट बढ़ते जा रहे हैं समाज में । दूरियां बन रही हैं आपस में । क्या यही समाज महात्मा गांधी या बिनोवा भावे बनाना चाहते थे ? हमारा समाज कैसा बनता जा रहा है ? हमें अपने-आपको समझना होगा । हम एक दूसरे से बदला लेते लेते समाज में बदलाव लाना भूल गये हैं । भूल गये हम प्रकृति की रक्षा व संरक्षण करना । भूल गये हम समाज के प्रति अपने कर्त्तव्य । हम तो पूरे देश से बदला ले रहे हैं बस । हम तो देश को आग में झोंक रहे हैं जबकि यह आग समाज को बदलने की होनी चाहिए । युवाओं की आग देश के कल्याण के लिए होनी चाहिए जैसे शहीद भगत सिंह , राजगुरु व सुखदेव की ।

रमेश शर्मा ने युवाओं में नशे के चलन पर भी गहरी चिंता व्यक्त करते नशा मुक्त समाज बनाने का आह्वान किया । रमेश शर्मा ने कहा कि दुख की बात कि समाज का फिक्र करने वालों की संख्या तेजी से घट रही है । और गीत में भी कहा :
तू खुद को बदल
तब तो जमाना बदल जायेगा ,,,,

शुरूआत अपने-आपको बदलने से करो । शब्द शक्ति पर भी कहा कि पहले शब्द ब्रह्म होते थे , अब सिर्फ भरम रह गये ।
गांधी जी की महिमा का बखान करते कहा कि महात्मा ने समाज को और आमजन को निर्भय बनाया । महिलाएं तक उनके आह्वान पर स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ने घरों से निकल आईं , यह बहुत बड़ा काम किया । अंत दुष्यंत कुमार की गजल के मधुर गायन से किया :
हो गयी है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए ।

इस विचार गोष्ठी में जगदीप भार्गव , धर्मवीर शर्मा , राजेश जाखड़ एडवोकेट , शैलेंद्र वर्मा , डाॅ इंद्रजीत , प्रो करतार सिंह सहित बड़ी संख्या में बुद्धिजीवी मौजूद थे ।

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