भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। हरियाणा में निकाय चुनाव अंतिम चरण की ओर अग्रसर हो चुके हैं और अब तक कहीं भी स्थिति साफ नजर नहीं आ रही। भाजपा की फूट उजागर हो रही है। निर्दलीय अपना दम दिखा रहे हैं। भाजपा और जजपा में दूरियां नजर आ रही हैं। ऐसी स्थिति में निकाय चुनाव में भाजपा के लिए विजय पाना मुश्किल नजर आ रहा है परंतु भाजपा के पास सुपरमैन की तरह मनोहर लाल खट्टर हैं। देखना यह है कि क्या राज्यसभा चुनाव की तरह अब भी कोई करिश्मा दिखा पाएंगे?

निकाय चुनाव आरंभ से ही भाजपा के लिए समस्या बनते रहे हैं।  शायद इसीलिए भाजपा-जजपा दोनों साथ चुनाव लडऩे की बात कर रहे थे। फिर प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ का ब्यान आया कि हम अकेले लड़ेंगे लेकिन राज्यसभा चुनाव की घोषणा दूसरे उम्मीदवार के रूप में कार्तिकेय का उतरना शायद इन बातों के असर से घोषणा हुई कि साथ मिलकर लड़ेंगे। परंतु फिर भी सिंबल पर केवल चेयरमैन ही लड़ेंगे। वार्डों में प्रत्याशी बिना सिंबल के लड़ रहे हैं।

परिस्थितियों को देखकर ऐसा लगता है कि भाजपा के साथ हरियाणा की कहावत चरितार्थ हो रही है— ‘कानी के ब्याह में सौ जोखिम। पहले तो रोहतक में संत कबीर की जयंती के कार्यक्रम में मुख्यमंत्री का विरोध हुआ और सांसद अरविंद शर्मा प्रेस गैलरी में जा बैठे। मुख्यमंत्री ने उस रैली में अपने मुख्यमंत्री निवास का नाम संत कबीर कुटीर करने का ऐलान किया लेकिन लाभ कुछ होते नजर आए नहीं।

कुछ आवाजें ब्राह्मणों की तरफ से उठ रही हैं कि भाजपा का विरोध करो। कुछ मुख्यमंत्री ने जो सोचा होगा कि उनकी मुख्यमंत्री आवास को संत कबीर कुटीर नाम देने से पिछड़े दलित वर्ग का साथ मिल जाएगा लेकिन वैसा कुछ होता नजर आ नहीं रहा। शायद यह कार्य लोगों को पसंद नहीं आया, जिसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि भाजपा में रीति-नीति है कि मुख्यमंत्री जो भी करें, उसकी प्रशंसा अनेक मंत्री, विधायक और पार्टी के नेता करते हैं लेकिन इस घोषणा के बारे में किसी का कोई ब्यान नहीं आया। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री का यह कदम विपक्ष की बात तो छोड़ों, भाजपाईयों को भी पसंद नहीं आया। 

मुसीबतों हैं कि साथ ही नहीं छोड़ती। निकाय चुनाव के अंतिम चरण में राहुल गांधी से ईडी की पूछताछ और उससे ऊपर अग्निवीर योजना आ गई। और अग्निवीर योजना से प्रदेश के अधिकांश लोग खुश नजर नहीं आ रहे। जगह-जगह प्रदर्शन भी हो रहे हैं। ये घटनाएं अच्छी तो नहीं कह सकते भाजपा के लिए। अत: यह माना जा सकता है कि इनका असर इन निकाय चुनाव पर अवश्य पड़ेगा।

मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर 2014 से मुख्यमंत्री पद संभालने के पश्चात अनेक दुरूह परिस्थितियों से निकलकर आए हैं और कह सकते हैं कि उनका आत्मविश्वास अपनी कार्यशैली के प्रति चरम पर है। ऐसी स्थिति में अनुमान लगाया जा सकता है कि वह निकाय चुनाव के लिए भी सुपरमैन की तरह कोई न कोई तरीका निकाल विजय प्राप्त करेंगे।

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