सप्तक कल्चरल सोसाइटी…. घर फूँक थियेटर फेस्टिवल में नाटक ‘हाशिया’ का हुआ मंचन

रोहतक, 7 जून। ‘हाशिये पर रहने वाले आम लोग हमेशा केंद्र में पहुंचने, यानी खास बनने का सपना देखते रहते हैं और तमाम उम्र इस सपने को पूरा करने की कोशिशों में लगे रहते हैं। जो बिरले लोग किसी तरह केंद्र में पहुंच जाते हैं, वे सत्ता के केंद्र में बने रहने तथा दूसरों को वहां आने से रोकने की जद्दोजहद में खप जाते हैं। परन्तु जीवन के आखिरी पड़ाव में जब वे अपनी इस सफलता का विश्लेषण करते हैं, तो उन्हें पता चलता है कि हाशिये से केंद्र में आने और यहां बने रहने के चक्कर में उन्होंने कितनी बेशकीमती चीजें खो दी हैं। उन्हें ऐहसास होता है कि इस अंधी दौड़ में वे ज़िन्दगी की खूबसूरती को देखना और उसका आनंद लेना ही भूल गए तथा एक नीरस, कुंठाग्रस्त व अहम से भरा अर्थहीन मशीनी जीवन जीते रहे।’ जीवन के इसी दार्शनिक पहलू को मंच पर साकार किया सप्तक रंगमंडल और पठानिया वर्ल्ड कैंपस द्वारा आयोजित घरफूंक थियेटर फेस्टिवल में मंचित इस बार के नाटक “हाशिया” ने। लगभग एक घंटे तक चली इस एकल प्रस्तुति में केवल एक अभिनेता ‘नरेन्द्र आहूजा’ ही मंच पर रहे, लेकिन उन्होंने इस मुश्किल कथानक को इतने बेहतरीन व सहज तरीके से पेश किया कि दर्शक एक पल के लिए भी इधर-उधर नहीं हो पाए।

कंवल नयन कपूर द्वारा लिखित और मशहूर अभिनेता जावेद खान सरोहा द्वारा निर्देशित इस नाटक की शुरुआत में नरेंद्र आहूजा हाशिये पर रह रहे लोगों की मनोदशा को दिखाते हुए उनके भीतर केंद्र में पहुंचने की लालसा को प्रदर्शित करते हैं। इसके बाद वे सत्ता के केंद्र में पहुंचने की यात्रा को दिखाते हैं। उन्होंने दिखाया कि कि इसके लिए इंसान को कैसी-कैसी चालें चलनी पड़ती हैं और कितनी बार असफलता व अपमान की पीड़ा से गुजरना पड़ता है। दर्पण थियेटर ग्रुप रुड़की द्वारा प्रस्तुत इस नाटक के तीसरे चरण में व्यक्ति के सत्ता के केंद्र में पहुंचने व वहां बने रहने की तिकड़मबाजियों से रूबरू करवाने के साथ-साथ सुरा, सुंदरी और धन-वैभव को ही वास्तविक जीवन मान लेने की मनःस्थिति को दिखाया गया। जबकि नाटक के अंत में अभिनेता दर्शकों को उस जीवन के खोखलेपन, वहां की हताशा-निराशा तथा इंसान के अमानुष बनने व जीवन के वास्तविक सुख से वंचित रहने की टीस के ऐहसास तक ले जाता है।

नाटक में हाशिये से केंद्र में पहुंचने की यात्रा को दिखाने के लिए एकलव्य सहित अनेक पौराणिक पात्रों के उदाहरण प्रस्तुत किए गए। एकलव्य की कहानी एक आम व्यक्ति के हाशिये से केंद्र में पहुंचने का ही प्रयास था, जबकि गुरु द्रोण ने केन्द्र में पहुंचने से रोकने के लिए ही उसका अंगूठा कटवा दिया, जिसके लिए उन्हें हमेशा आलोचना झेलनी पड़ी। नाटक में संगीत विक्रांत जैन का रहा और ध्वनि एवं प्रकाश व्यवस्था दीपक वर्मा की रही। नाटक का संयोजन यतिन वधवा ने तथा मंच संचालन रिंकी बतरा ने किया। नाटक के अंत में विशिष्ट अतिथि यशपाल छाबड़ा ने नाटक के दार्शनिक पक्ष पर प्रकाश डाला और इतनी मुश्किल प्रस्तुति को इतने बेहतरीन एवं प्रभावी ढंग से करने के लिए निर्देशक व अभिनेता सहित पूरी नाटक टीम को बधाई दी। श्रीभगवान शर्मा व निर्देशक जावेद खान ने भी अपने विचार रखे।

इस अवसर पर सप्तक के अध्यक्ष विश्वदीपक त्रिखा, राघवेंद्र मलिक, गुलशन बतरा, मुकेश मुसाफिर, अनंत, वीरेन्द्र फोगाट, अनंत, विष्णु मित्र सैनी, शक्ति सरोवर, गुलाब सिंह खांडेवाल, तरुण पुष्प त्रिखा, ज्योति बतरा, विकास रोहिल्ला, राहुल हुड्डा एवं अविनाश सैनी सहित शहर के अनेक गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।

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