रितु वर्मा जिस इतिहास में नारी को एक शक्ति का रूप माना गया है वह नारी आज रिश्तों की मर्यादा में इतनी बेबस ओर लाचार हो चुकी है जिसे बार बार बलि चढ़ना पड़ता है आखिर क्यों ? क्या उसका कसूर सिर्फ यह है कि उसने जो सँस्कार अपने परिवार से पाये ओर वही सँस्कार वो अपने ससुराल में रिश्तों को निभाते निभाते इतनी टूट जाती है कि महज अपने गम को अकेले बैठ आंसुओ से धोने के इलावा कुछ नजर नही आता । कहते है रिश्तों के संजोग ऊपर से लिखे जाते हैं तो तलाक , नारी के शोषण के इतने केस न्यायालय में क्यो विचाराधीन पड़े हैं । समाज मे नारी को शक्ति बताने वाले क्यों नारी की लुटती असमत उसके होते शोषण का तमाशा देखते रहते हैं । आखिर नारी का कसूर क्या है ? अपने माता पिता के संस्कारों अपने रिश्तों की मर्यादा को बचाते बचाते घुट घुट कर जीना क्या ये है इतिहास की नारी शक्ति ? अपनी आवाज उठाये तो समाज के ताने ना उठाये तो कमजोर आखिर नारी अपने अस्तित्व में जिये तो जिये कैसे ? जब तक रिश्तों की मर्यादा में बलि चढ़ी नारी को समझने के लिये समाज नारी का सम्मान नही करेगा तब तक शक्ति का रूप कहलाये जाने वाली नारी समाज मे अपना अस्तित्व नही कायम कर पायेगी । नारी कमजोर नही बल्कि रिश्तों की मर्यादा में फंसी है । जिस दिन नारी ने अपने अस्तित्व को कायम करने के लिये अपने रिश्तों की मर्यादा तोड़ दी उस दिन नारी को सम्भालना मुश्किल हो जाएगा। Post navigation निगाहें चुरा कर ओ जाने वाले मुनासिब नही ये सितम चलते चलते ………. प्रीति धारा हरियाणा को मिली 2366 करोड़ रुपये की विकास परियोजनाओं की सौगात