-कमलेश भारतीय पंजाबी के प्रसिद्ध गायक व कांग्रेस नेता सिद्धू मूसा की हत्या क्या पंजाब में आतंकवाद की वापसी का संकेत मानी जाए या फिर इसे गैंगवार का नतीजा कहा जाये ? ये दो बिंदु हैं , दो विचार हैं एकसाथ । वैसे तो सिद्धू मूसा से पहले भी ऐसी और घटनाएं हुई हैं जो आतंकवाद के काले दिनों की याद दिला रही हैं । क्या पंजाब के लोगों ने आप पार्टी को सत्ता सौंप कर आतंकवाद को न्योता दे दिया है या बहुत बड़ी भूल की है ? यह जनमत काफी भारी पड़ने वाला है क्या ? कैसा जनमत ? कैसे लोक लुभावन फैसले ? यदि आपने 424 लोगों की सुरक्षा हटाने के फैसला किया तो उन लोगों के नामों की सूची उजागर करने की क्या जरूरत थी ? इस वाहवाही से सिद्धू मूसा की जान दूसरे दिन ही ले ली । पहले भी रेकी की गयी लेकिन ए के 47 वाली सुरक्षा देखकर हौंसला नहीं हुआ लेकिन जैसे ही सुरक्षा हटी , दुर्घटना घटी । सुरक्षा चक्र टूटा और मूसे पर हमला हुआ । क्या अब आपको वाहवाही मिल रही है ? क्या अब आप अपने फैसले को सही ठहरा सकते हो ? क्या इसे सिर्फ लारेंस बिश्नोई गैंग के साथ पर डाल कर मुक्ति पाई जा सकती है ? याद आते हैं पंजाब के वे आतंकवाद के काले दिन । इसी तरह दिनदहाड़े बीच बाजार हत्यारे आते थे और अपने टार्गेट को मार कर चले जाते थे । अघोषित कर्फ्यू के दिन थे । माओं के बेटे , पत्नियों के सुहाग और बच्चों के सिर से पिता का साया छीना जा रहा था । कितने लोग इसके शिकार हुए ? कोई गिनती नहीं । कोई सर्वेक्षण नहीं । बेअंत सिह ने अपनी जान की परवाह न कर इस आतंकवाद को रोका था । प्रधानमंत्री राजीव गांधी से फ्री हैंड लेकर । ऐसी घटना का भी एक पत्रकार के रूप में चश्मदीद गवाह हूं , जब निकटवर्ती कस्बे राहों में आए मुख्यमंत्री दरबारा सिंह पर उस समय बम फेंका गया जब वे स्टेज की ओर बढ़ रहे थे । सौभाग्यवश वे तो बच गये लेकिन एक सरकारी फोटोग्राफर और तहसीलदार इसकी लपेट में आ गये । तहसीलदार की एक आंख गयी तो फोटोग्राफर की एक टांग और दोनों जिंदगी भर के लिए अपाहिज हो गये । यह आंखों देखी घटना है । ऐसी अनेक घटनाएं रोज पंजाब के अलग अलग शहरों में होती थीं और हमें एक रिपोर्टर के तौर पर तुरंत घटनास्थल पर पहुंच कर फोन पर ही रिपोर्ट देने के आदेश थे । एक अखबार तो आतंकवाद से हुई मौतों को ‘आज का स्कोर’ बता कर प्रस्तुत कर रहा था और आखिर इस अखबार के भी दो संपादक आतंकवादियों की गोलियों के निशाने पर आए तब परिवारजनों को महसूस हुआ कि आज का स्कोर क्या है ? कितना दर्द और इतनी बेदर्दी ? अब क्या पंजाब फिर से आतंकवाद के मुहाने पर बैठा है ? क्या केजरीवाल के बारे में कुमार विश्वास का बयान जाने अनजाने ही सच होने जा रहा है ? पंजाब की सरकार और मुख्यमंत्री भगवंत मान को कठपुतली की तरह मान कर कहीं पंजाब से खेल तो नहीं रहे केजरीवाल ? क्या एक सीमांत प्रांत की स्थिति का उन्हें जरा भी ज्ञान है ? क्या तीन जून वाले नीले तारे के दिन तो लौटने वाले नहीं ? बहुत गंभीर हुई है केंद्र सरकार । अब इसकी जरूरत भी है । भगवंत मान के भरोसे नहीं रहा जा सकता । यह तो दिन-प्रतिदिन सामने आ रहा है । केजरीवाल ने अब दिल्ली नहीं बुलाये उच्च पुलिस अधिकारी ? बुलाइये न और दीजिए अपना ज्ञान , अपना अनुभव बांटिये न ? आखिर कुछ तो सोचना पड़ेगा । ये वाहवाही वाले फैसलों से दूर होकर गंभीरता से काम करना होगा ,,,,बारूद के इक ढेर परन बिठाओ पंजाब को ,,,,-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी । Post navigation अच्छा साहित्य देश को नई दिशा दे सकता है : डीपी वत्स। उन्नत किस्मों के बीज किसानों तक पहुंचाने के लिए विश्वविद्यालय लगातार प्रयासरत: प्रो. बी.आर. काम्बोज