डॉ मीरा सिंह

वर्तमान समय में डिजिटलाइजेशन के कारण रोजगार के अवसरों तथा काम के स्वरूप में भी काफी बदलाव आ गया है, जिसके फ़लस्वरूप एक नई वैश्विक अर्थव्यवस्था ‘गिग इकोनामी’ का उदय हुआ है। गिग इकॉनमी एक मुक्त बाज़ार प्रणाली है जिसमें अस्थायी अनुबंध होता है और कंपनिया अल्पकालिक जुड़ाव के लिये स्वतंत्र श्रमिकों के साथ अनुबंध करती हैं। एक ऐसी अर्थव्यवस्था जो फ्रीलान्स और कॉन्ट्रैक्ट आधारित नौकरियों के आधार पर विकसित हो, उसे गिग अर्थव्यवस्था कहा जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो अनुबंध आधारित अस्थायी नौकरियाँ गिग अर्थव्यवस्था के दायरे में आती हैं। 

भारत में गिग इकोनॉमी स्टार्टअप और टेक्नोलॉजी आधारित  कंपनियों के कारण जोर पकड़ रही है। इनके जरिए बड़ी तादाद में कौशल युवाओं को रोजगार प्राप्त हुआ है। ये लोग  उबर, ओला, स्विगी, जोमैटो, फ्लिपकार्ट, अमेजन, शॉपक्लूज, इबे और अलीबाबा जैसी ई-कॉमर्स  कंपनियों में नौकरियां कर रहे हैं। आज के समय इंटरनेट, एक व्यापक स्तर पर मजबूत व्यापार का मंच होने के कारण, यह गिग अर्थव्यवस्था के विस्तार में भी काफी मददगार साबित हुआ  है और गिग इकोनॉमी भारतीय रोजगार में एक अहम भूमिका निभा रही है  देश में 10 मिलियन से भी ज्यादा लोग फ्रीलांसर के तौर पर काम कर रहे हैं।

वैसे तो ‘गिग’ शब्द कोई नया नहीं है, इस शब्द का उदय संगीत जगत में हुआ, जहां अभिनेताओं को प्रति फिल्म या गाने आदि के आधार पर भुगतान किया जाता है,आज के दिन इस शब्द का प्रयोग अनुबंध आधारित अस्थाई नौकरियों में भी हो रहा है अमेरिका जैसे विकसित देशों में इस तरह का कांसेप्ट बहुत पहले से प्रचलित है। गिग इकोनामी एक ऐसी मुक्त बाजार व्यवस्था है जहां पूर्णकालिक रोजगार की जगह अस्थायी रोजगार का प्रचलन है। इसके तहत कंपनियां अपनी लघु अवधि या विशेष जरूरतों को पूरा करने के लिए फ्रीलांसर या स्वतंत्र श्रमिकों के साथ अनुबंध करती हैं।

भारत में गिग इकोनामी के विकास के कारणों की बात करें तो सबसे बड़ी वजह तेजी से बढ़ता डिजिटलीकरण और गिग इकनोमी को अपनाने से फर्मों की परिचालन लागत का कम होना है क्योंकि गिग वर्करस को  कंपनियां पेंशन और अन्य सामाजिक सुरक्षा लाभों का भुगतान करने के लिए बाध्य नहीं होती। एक अन्य कारण है गिग वर्क,कौशल युवाओ को जरूरी फ्लैक्सिबिलिटी उपलब्ध कराता है जिसमें वे बार-बार नौकरी बदल सकते हैं और मनमुताबिक काम चुन सकते हैं। दरअसल, गिग इकॉनमी में प्रोजेक्ट आधारित रोज़गार शामिल होने से यहां युवा अपनी सहूलियत व सुविधा अनुसार  काम कर सकते हैं। गिग इकोनॉमी एक कर्मचारी को वे न्यूनतम सुविधाएं देती है जैसे कि फ्लेक्सिबिलिटी,पसंदीदा काम, वर्क-लाइफ बैलेंस और अच्छी कमाई। 

जिस तरह से एक सिक्के के दो पहलू होते हैं ठीक उसी प्रकार गिग अर्थव्यवस्था के फायदे के साथ कुछ नुकसान भी हैं।  गिग इकोनामी से प्राप्त होने वाले लाभ की बात करें तो इस अनुबंध प्रणाली में  कर्मचारियों और रोजगार प्रदाताओं दोनों का ही फायदा है। एक ओर इस व्यवस्था के अंतर्गत कंपनियां कम लागत पर योग्य कर्मचारियों को नियुक्त कर अपना काम करवा पा रही तो दूसरी तरफ बेरोजगार दक्ष युवाओं को मन मुताबिक काम मिल रहा है इसके अलावा ऐसे कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा को  लेकर “सामाजिक सुरक्षा लोकसभा विधेयक 2019” के अंतर्गत भारत में पहली बार उनकी सुरक्षा देने का प्रस्ताव आया।

आमतौर पर ये कंपनियां ऐसे  लोगों को गिग कर्मचारी नियुक्त करती है जो किसी विशेष क्षेत्र में दक्ष हों। हमारे देश की बड़ी आबादी में से दक्ष  पेशेवरों  की तादाद काफी कम है।  इस व्यवस्था को और व्यापक बनाने के लिए बेरोजगार युवाओं को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ड्रोन और रोबोटिक्स आदि से जुड़े कामों के लिए कौशल- प्रशिक्षण दिया जाए और इस कौशल की जिम्मेदारी सरकार के साथ गिग कंपनियां भी ले और इसके अलावा श्रम कानूनों में संशोधन कर उनमें फ्रीलांसिंग आदि को भी शामिल किया जाना चाहिए। इससे न केवल गिग इकोनामी ओर तेज रफ्तार पकड़ेगी बल्कि देश में रोजगार सृजन की संभावनाएं भी काफी बढ़ जाएंगी जिससे हमारे देश की अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी।

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