भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। हरियाणा में वर्तमान में सभी पार्टियां अपने आप से ही जूझ रही हैं। ऐसे में पंचायत और निकाय चुनाव का सामना करना सभी पार्टियों के लिए आसान रहने वाला नहीं है। मेरी निजी राय के अनुसार कांग्रेस, भाजपा और आप पार्टियों में नेता अपने-अपने वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। जजपा और इनेलो लगता है अपना जनाधार खो चुके हैं। हालांकि जजपा सत्ता में होने से सत्ता में होने के कारण कहीं नजर आ जाती है परंतु वास्तव में स्थानीय संगठन में भी तालमेल और उत्साह नहीं दिखाई देता।

पंचायतों का शासन फरवरी 2021 से हरियाणा में नहीं है। अधिकारी ही देख रहे हैं। तात्पर्य यह है कि ग्रामीण क्षेत्र में सबसे छोटी पंचायत नदारद है अर्थात लोकतंत्र नदारद है। स्थानीय निकाय के चुनाव भी कहीं इंतजार कर रहे हैं कि कब सरकार से झंडी मिले। चुनाव आयोग ने भी कह दिया है कि हम तैयार हैं, सरकार के निर्देश चाहिएं।

वर्तमान में कांग्रेस और भाजपा गुट के शीर्ष नेता अपनी राज्यसभा की सीटों के लिए प्रयासरत हैं। कहने को तो भाजपा का बूथ स्तर पर संगठन तैयार है परंतु वास्तविक दृष्टि से देखें तो वर्तमान में भाजपा भी कांग्रेस की राह पर ही है। उसमें भी अलग खेमों की कमी नहीं है। अंतर केवल इतना है कि भाजपा के पास मोदी है और कांग्रेस के पास कोई मोदी जैसा नेता नहीं, इसलिए कांग्रेस की बातें चौराहों पर आ जाती हैं और भाजपा की घर के अंदर फुसफुसाहटों में दबी रहती हैं लेकिन देखा यह गया है कि चुनाव में मुखर विरोध का तो सामना करने के लिए तो रणनीति बन जाती है परंतु आंतरिक फुसफुसाहटों का विरोध पार्टी को घातक नुकसान पहुंचाता है।

आप पार्टी पंजाब में झंडा गाडऩे के बाद हरियाणा में बहुत उत्साह में दिखाई दे रही है और यदि कहें कि सोशल मीडिया का प्रयोग भी भाजपा की तर्ज पर कर रही है तो गलत नहीं होगा। जैसा कि भाजपा और कांग्रेस में अलग-अलग खेमे दिखाई दे जाते हैं, ऐसे ही आप पार्टी के गठन से पूर्व ही हर जगह अलग-अलग खेमे दिखाई दे रहे हैं। मुख्य रूप से पार्टी की बागडोर राज्यसभा सांसद सुशील गुप्ता संभाले हुए हैं। 

पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर भी तृणमूल कांग्रेस का सफर कर आप पार्टी में दिखाई दे रहे हैं परंतु ऐसा दिखाई नहीं दे रहा कि कहीं उनको वह सम्मान मिल रहा है, जिसके वह अधिकारी हैं। हो सकता है यह मेरा विचार हो परंतु पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नवीन जयहिंद बराबर गदा और फरसा सरकार को दिखाते रहते हैं, जबकि इस पर सुशील गुप्ता कहते हैं कि वह हमारे कार्यकर्ता है और उनके पास कोई पद नहीं। जबकि नवीन जयहिंद कहते हैं कि मेरा कोई पार्टी से कोई वास्ता नहीं। कह सकते हैं कि जिन कठिनाईयों से भाजपा और कांग्रेस जूझ रही हैं, उन्हीं कठिनाइयों को शैशवकाल में ही आप पार्टी भुगत रही है। कुछ विश्लेषकों का तो कहना है कि हरियाणा में आप की स्थिति वही रहने वाली है, जो पिछले आठ वर्ष से है। कुछ 19-21 का अंतर हो सकता है।

पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर भी तृणमूल कांग्रेस का सफर कर आप पार्टी में दिखाई दे रहे हैं परंतु ऐसा दिखाई नहीं दे रहा कि कहीं उनको वह सम्मान मिल रहा है, जिसके वह अधिकारी हैं। हो सकता है यह मेरा विचार हो परंतु पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नवीन जयहिंद बराबर गदा और फरसा सरकार को दिखाते रहते हैं, जबकि इस पर सुशील गुप्ता कहते हैं कि वह हमारे कार्यकर्ता है और उनके पास कोई पद नहीं। जबकि नवीन जयहिंद कहते हैं कि मेरा कोई पार्टी से कोई वास्ता नहीं। कह सकते हैं कि जिन कठिनाईयों से भाजपा और कांग्रेस जूझ रही हैं, उन्हीं कठिनाइयों को शैशवकाल में ही आप पार्टी भुगत रही है। कुछ विश्लेषकों का तो कहना है कि हरियाणा में आप की स्थिति वही रहने वाली है, जो पिछले आठ वर्ष से है। कुछ 19-21 का अंतर हो सकता है।

कह सकते हैं कि लोकतंत्र में जनता का रूख का अनुमान छोटी इकाई के चुनाव बेहतर दे सकते हैं। पंचायत चुनाव में जजपा की वास्तविकता का ज्ञान हो जाएगा, क्योंकि वह अपने आपको ग्रामीण पार्टी कहती है। निकाय चुनाव भाजपा को आइना दिखा देंगे और दोनों चुनाव कांग्रेस को उसकी स्थिति से अवगत करा देंगे कि उनकी आपसी फूट और वर्तमान में भूपेंद्र सिंह हुड्डा को दिए नेतृत्व को हरियाणा की जनता किस रूप में देख रही है।

जिस प्रकार आप पार्टी दावा कर रही है कि हरियाणा की जनता उनके साथ है और अगली सरकार हरियाणा में आप की होगी, इन चुनावों में सामने आ जाएगा कि खड़े कहां हैं?

तात्पर्य यह कि राजनैतिक दलों को यह चुनाव आइना दिखा देंगे। संभव है कि निर्दलीय उम्मीदवारों के जीतने की संख्या किसी भी पार्टी से अधिक हो। देखते हैं क्या होता है।

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