राज्यसभा चुनाव से मई में गरमाएगी हरियाणा की राजनीति

भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। आज राज्यसभा चुनाव की घोषणा हो गई। तारीख रखी गई 10 जून और नामांकन की तारीख 31 मई है। इससे हरियाणा में भाजपा और कांग्रेस दोनों की राजनीति में बड़ी हलचल मचेगी। हालांकि हरियाणा से केवल दो ही राज्यसभा मैंबर जाने हैं। मोटे-मोटे तौर पर कहें तो एक भाजपा से और एक कांग्रेस से जाएगा। 6 साल पहले हुए चुनाव में भाजपा प्रत्याशी सुभाष चंद्रा जिस प्रकार चुने गए थे, वैसा कोई नाटक हुआ तो दोनों भाजपा के भी जा सकते हैं।

हरियाणा में दोनों राज्यसभा मैंबर का कार्यकाल 01 अगस्त तक है परंतु चुनाव आयोग ने चुनाव की घोषणा कर दी है। अब जून में चुने हुए सदस्य राज्यसभा में शपथ शायद अगस्त में ही लेंगे परंतु नाम 31 मई तक भरने होंगे। अत: जो भी फैसला होना है, वह मई में ही होना है। राज्यसभा चुनाव तो बहुत सम्मान के तौर पर देखा जाता है, इसलिए इसमें पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता को चुनकर उसको सम्मान दिया जाता है। वर्तमान में यह सब बातें कागजी हैं। वास्तव में होता है यह है कि जो सैटिंग से हाईकमान को अपना नाम पहुंचा देता है, वही उम्मीदवार बन जाता है।

भाजपा

:भाजपा में पिछले काफी समय से कई शीर्ष नेता अपने सम्मान की गुहार लगा रहे हैं। 2019 के चुनाव में भाजपा के कई दिग्गज मंत्री चुनाव नहीं जीत पाए, जिनका पार्टी के उत्थान में बहुत योगदान रहा है, उनमें वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु और कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड़, शिक्षा मंत्री रामबिलास शर्मा आदि के नाम उल्लेखनीय है। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला को मुख्यमंत्री ने सार्वजनिक उपक्रम ब्यूरो का चेयरमैन बनाकर सम्मान दिया। तात्पर्य यह कि सभी पुराने कार्यकर्ता यह चाहते हैं कि हमें सम्मान मिल जाए और विशेष रूप से जो अधिक उम्र वाले हो जाते हैं, वह चाहते हैं कि हमारी विदाई सम्मानपूर्वक हो। ये तो हैं ही, इनके अतिरिक्त भी बहुत से लोग राज्यसभा पद के लिए अपने-अपने जुगाड़ लगाने में लगे हैं।

हरियाणा में भाजपा की राजनीति में पिछले काफी समय से अंदरूनी खिंचाव चल रहा है। अनिल विज के खट्टर से विवाद के चर्चे आम होते रहते हैं। राव इंद्रजीत और मुख्यमंत्री के बारे में तो कुछ कहने की आवश्यकता नहीं। इसी प्रकार प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री के बीच भी खिंचाव की बातें आम होती ही रहती हैं। भाजपा के आंतरिक सूत्रों की यदि मानें तो केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव जो हरियाणा में रूचि ले रहे हैं, उनका लक्ष्य न तो राव इंद्रजीत की जगह लेना है और न ही मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की। विश्वस्त सूत्रों के अनुसार वह तो इसलिए हरियाणा की स्थिति का अध्यन कर रहे हैं कि किस प्रकार भाजपा जो जनाधार खो रही है, वह पुन: जनाधार प्राप्त कर सके। इस कार्य में माना जाता है कि वह कुछ राजनैतिक बदलाव भी कर सकते हैं। जैसे मुख्यमंत्री के मंत्रीमंडल विस्तार में कमल गुप्ता उनकी और संघ की पसंद बताए जाते हैं। तात्पर्य यह कि इस समय हरियाणा में जो नाम तय करना है या मुख्यमंत्री बदलना है, उसके बारे में प्रधानमंत्री को अपना परामर्श यही देंगे। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इनके परामर्श पर विश्वास रखते हैं। 

कहीं भाजपा के सूत्र पिछले काफी समय से कह रहे हैं कि मुख्यमंत्री का बदलाव होना है लेकिन सभी बातें अभी तक मुंगेरी लाल के हसीन सपनों की तरह धराशाही होती रही हैं और अब फिर बातें कुछ पुष्ट-अपुष्ट सूत्रों से मिल रही हैं, वह यह कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल को राज्यसभा में भेजा जाए और वहां प्रधानमंत्री अपने मंत्रीमंडल में उन्हें कोई स्थान देंगे और हरियाणा के मुख्यमंत्री के लिए गहन मंथन चल रहा है, जिसमें गृहमंत्री अनिल विज, प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़, कैप्टन अभिमन्यु और प्रो. रामबिलास शर्मा आदि के नाम विचार में हैं।

अब सवाल यह खड़ा होता है कि हरियाणा में जाट को मुख्यमंत्री बनाया जाए तो ओमप्रकाश धनखड़ और कैप्टन अभिमन्यु में से किसी का नंबर आ सकता है, क्योंकि दोनों जाट हैं लेकिन यह बात भी विचारनीय है कि बहुत लंबे समय से ये भाजपा में हैं। इनके अतिरिक्त भी सुभाष बराला, सोमबीर सांगवान, जयप्रकाश दलाल आदि-आदि अनेक जाट नेता हैं भाजपा के पास परंतु जाटों ने धरातल पर फिर भी भाजपा को अपना नहीं माना। जाटों के लिए चौ. ओमप्रकाश चौटाला का परिवार रहा या फिर भूपेंद्र सिंह हुड्डा का परिवार लेकिन वर्तमान में चौ. ओमप्रकाश चौटाला का परिवार पारिवारिक कलह के चलते जाटों में अपनी स्वीकार्यता को कम कर रहा है और इसका लाभ भूपेंद्र सिंह हुड्डा को मिल रहा है किंतु देखना यह होगा कि वह जाट की तरफ जाएंगे या फिर गैर जाट की तरफ देखेंगे।

वैसे पुराने समय से भाजपा ब्राह्मण-बनियों की पार्टी कहलाई जाती है लेकिन जबसे मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने मुख्यमंत्री का पद संभाला है, उसके पश्चात से भाजपा की ब्राह्मण-बनियों में स्वीकार्यता घट रही है। तो अपने पुराने जनाधार को मजबूत करने के लिए पार्टी संघ से जुड़े वर्तमान में मंत्री पद पाए कमल गुप्ता पर भी दांव खेल सकती है या फिर हरियाणा की रग-रग को पहचानने वाले तीन बार प्रदेश अध्यक्ष के पद का निर्वहन करने वाले और भाजपा को सत्ता में लाने वाले पं. रामबिलास शर्मा की ओर भी सोच सकती है, क्योंकि माना जाता है कि ब्राह्मण 36 बिरादरी को साथ लेकर चलता है और रामबिलास शर्मा तो भाजपा के लगभग सभी वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को व्यक्तिगत रूप से जानते हैं और स्वभाव भी मिलनसार है। कयास हैं, पत्रकार का काम है लगाना सो लगा रहे हैं।

भाजपा में यह बात निश्चित है कि जो भी राज्यसभा में जाएगा, वह प्रधानमंत्री का अति विश्वास पात्र होगा और यदि मुख्यमंत्री राज्यसभा में जाते हैं तो मुख्यमंत्री पद पर विराजित होने वाला भी प्रधानमंत्री का पुराना परखा हुआ व्यक्ति ही होगा। भाजपा में तालमेल बिठाने का सिलसिला बड़ी तेजी से चलेगा। इसमें संभव है कि कुछ नेताओं की छुपी बात भी सामने आ जाएं।

कांग्रेस :

अब कांग्रेस की बात करते हैं। कांग्रेस के 31 विधायक हैं और विधायक दल के नेता हैं भूपेंद्र सिंह हुड्डा। वर्तमान में भूपेंद्र सिंह हुड्डा को कांग्रेस ने अघोषित रूप से पार्टी की पूर्ण कमान भी दे दी है लेकिन अब राज्यसभा पद के लिए वह खुद तो राज्यसभा में जाने से रहे। उनका पुत्र तो पहले से ही राज्यसभा में मैंबर है। हां, जी-23 के सदस्य और पूर्व हरियाणा प्रभारी गुलाम नबी आजाद को जरूर भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने राज्यसभा भेजने को कहा था। ऐसी बातें सामने आ रही हैं। कुमारी शैलजा ने प्रदेश अध्यक्ष पद से कांग्रेस की भलाई के लिए त्याग पत्र दे दिया तो चर्चाएं भी सुनी जा रही हैं और उनकी योग्यता और उनके मान की भी बात है कि वह राज्यसभा भेजी जा सकती हैं।

अब दूसरा नाम लें रणदीप सुरजेवाला तो रणदीप सुरजेवाला वैसे तो केंद्र की राजनीति में कार्य कर रहे हैं परंतु हरियाणा पर उनका विशेष ध्यान रहता है। अब उसका कारण यह भी हो सकता है कि वह हरियाणा की भूमि पर पैदा हुए हैं और दूसरा यह भी हो सकता है कि वह हरियाणा की राजनीति करना चाहते हों। जो भी है वही बेहतर समझ सकते हैं और पार्टी को निर्णय भी लेना ही होगा इन बातों को सोचकर।

इधर श्रुति चौधरी भी हरियाणा की राजनीति में अपने पिता और दादा की वजह से महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं और पिछला चुनाव वह हार गईं तो दावेदारी तो उनकी भी बनती है।

चौ. बंसीलाल के नाम के साथ याद आया चौ. भजन लाल का नाम। भजन लाल मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उनका ज्येष्ठ पुत्र चंद्रमोहन हरियाणा का उप मुख्यमंत्री रह चुका है और कुलदीप बिश्नोई यहां विधायक हैं। कुलदीप बिश्नोई का पुत्र भव्य बिश्नोई भी चुनाव हार गया था। तो जिस प्रकार पिछले दिनों रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि उदयभान से अच्छा अध्यक्ष तो कुलदीप बिश्नोई होता तो यह भी चर्चा की जा सकती है कि भव्य बिश्नोई की भी दावेदारी हो।

हमने कुमारी शैलजा, गुलाम नबी आजाद, श्रुति चौधरी, रणदीप सुरजेवाला, भव्य बिश्नोई के नाम तो लिए लेकिन यह राजनीति है और आजकल राजनीति में अनेक ऐसे खेल खेले जाते हैं, जिनको सीधी नजर में समझना नामुमकिन होता है। तो अब आने वाला समय ही बताएगा कि क्या निकलकर आता है लेकिन फैसला तो मई में ही करना होगा।

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