सरकारी विश्वविद्यालयों को सरकारी अनुदान की बजाय कर्ज, गरीबों के लिए उच्च शिक्षा के द्वार बंद करने की चाल : विद्रोही

सरकारी विश्वविद्यालयों में फीस इतनी भारी भरकम हो जायेगी जो गरीबों की पहुुंच से बाहर होगी : विद्रोही
जब सरकारी अनुदान बंद होगा तो स्वभाविक है कि छात्रों की फीस ही आय का एकमात्र साधन होगा छात्रों का शिक्षा लेना महंगा हो जायेगा : विद्रोही

6 मई 2022 – स्वयंसेवी संस्था ग्रामीण भारत के अध्यक्ष वेदप्रकाश विद्रोही ने आरोप लगाया कि भाजपा खट्टर सरकार ने हरियाणा के सभी दस सरकारी विश्वविद्यालयों को सरकारी अनुदान की बजाय कर्ज से चलाने का फैसला करके एक तरह से शिक्षा का व्यवसायिकरण करके आमजन व गरीबों के लिए उच्च शिक्षा के द्वार बंद करने की चाल चली है। विद्रोही ने कहा कि हरियाणा सरकार ने एक फैसले के अनुसार प्रदेश के सभी सरकारी विश्वविद्यालयों के लिए 147.75 करोड़ रूपये का कर्ज मंजूर करके एक तरह से भविष्य के लिए तय किया है कि सरकार यूनिवर्सिटियों को सरकारी ग्रांट नही देगी अपितु विश्वविद्यालयों को कर्ज लेकर अपना खर्च चलाना होगा। भाजपा खट्टर सरकार के इस फैसलेे से विश्वविद्यालयों में छात्रों का शिक्षा लेना महंगा हो जायेगा और फीस इतनी भारी भरकम हो जायेगी जो गरीबों की पहुुंच से बाहर होगी।

भाजपा सरकार ने 10 सरकारीे विश्वविद्यालयों के लिए जो कर्ज के लिए 147.75 करोड़ रूपये की पहली किस्त मंजूर की है, उसमें कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय के लिए सबसे अधिक 59 करोड़ रूपये व इंदिरा गांधी विश्वविद्यालय मीरपुर-रेवाड़ी के लिए सबसे कम 4.50 करोड़ रूपये कर्ज मंजूर किया है। एमडीयू रोहतक के लिए 23.75 करोड़ रूपये, भक्त फूलसिंह विश्वविद्यालय खानपुर को 12.50 करोड़ रूपये, चौ0 देवीलाल विश्वविद्यालय सिरसा व चौ0 बंसीलाल विश्वविद्यालय भिवानी को दस-दस करोड़ रूपये व गुरूग्राम यूनिवर्सिटी के लिए 6.50 करोड़े रूपये का कर्ज मंजूर किया है। 

विद्रोही ने कहा कि 10 सरकारी विश्वविद्यालयों को अपना खर्चा चलाने के लिए 147.75 करोड़ रूपये तो कर्ज की पहली किस्त है, आगे विश्वविद्यालयों को अपना खर्चा चलाने के लिए और कर्ज मिलेगा। साफ है कि यह कर्ज भी सम्बन्धित विश्वविद्यालयों को अपनी आय बढाकर खुद ही चुकाना होगा। विश्वविद्यालयों की आय साधन सरकारी अनुदान व छात्रों से मिलने वाली फीस के अलावा अन्य कोई आय का साधन नही होता। जब सरकारी अनुदान बंद होगा तो स्वभाविक है कि छात्रों की फीस ही आय का एकमात्र साधन होगा। इस कदम से छात्रों की फीस इतनी बढेगी कि आजमन अपने बच्चों को प्रतिभा होते हुए भी सरकारी विश्वविद्यालयों में शिक्षा दिलवाना एक सपना बनकर रह जायेगा। इसका सबसे ज्यादा विपरित प्रभाव पिछडे, दलित वर्ग के उन छात्रों पर पडेगा जो आरक्षण के कारण सरकारी विश्वविद्यालयों में प्रवेश पाकर सस्ते मेें उच्च शिक्षा अभी तक प्राप्त कर रहे है। 

विद्रोही ने कहा कि शिक्षा का व्यवसायिकरण व निजीकरण करके उसे महंगा करके गरीब व आमजन की पहुंच से दूर करना मोदीजी का यह कथित गुजरात माडल है जो सीएम रहते हुए उन्होंने गुजरात में लागू किया  था। अब हरियाणा में भी यही कथित गुजरात माडल शिक्षा में आयेगा जो सरकारी विश्वविद्यालयों से होता हुआ भविष्य में सभी सरकारी कालेजों, स्कूलों, शिक्षा संस्थानों में लागू होगो और प्रदेश में शिक्षा इतनी महंगी हो जायेगी कि आमजन अपने बच्चों को उच्च शिक्षा तो क्या स्कूली व कालेज शिक्षा भी नही दिलवा पाएंगे। विद्रोही ने कहा कि कर्ज लेकर सरकारी विश्वविद्यालय चलाने के इस प्रयोग के खिलाफ सभी हरियाणावासियों ने मिलकर जोरदार विरोध करके सरकार को इस शिक्षा विरोधी प्रयोग को करने से नही रोका तो आमजन की पहुंच से शिक्षा उसी तरह बाहर हो जायेगी जैसे पुरातन समय में मनुवादी व्यवस्था में शिक्षा केवल उच्च वर्ग की बपौती थी व शूद्र, पिछडे, दलित, आदिवासी, गरीब, किसान, मजदूर के लिए शिक्षा के दरवाजे बंद थे। विद्रोही ने लोगों से अपील की कि भाजपा-संघी सरकार की इस अघोषित मनुवादी शिक्षा व्यवस्था को लागू करने के षडयंत्र के खिलाफ आंदोलन करे अन्यथा उनकी भावी पीढियों को मनुवादी व्यवस्था के दौर से फिर गुजरना पडेगा।

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