हिन्दी साहित्य भारती हरियाणा प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक आयोजित

कुरुक्षेत्र, 1 मई : हिन्दी साहित्य भारती हरियाणा की प्रदेश कार्यकारिणी बैठक का आयोजन स्थानीय प्रेरणा संस्था स्थित रामस्वरूप सभागार में किया गया। बैठक में ‘‘देश में सकारात्मक बौद्धिक वातावरण का निर्माण: हमारा संकल्प’’ विषय पर प्रबुद्धजनों ने अपने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर मंचासीन महामंडलेश्वर पूज्य स्वामी डॉ. शाश्वतानंद जी महाराज अखंड गीता पीठ, कुरुक्षेत्र, हिन्दी साहित्य भारती के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व शिक्षा मंत्री उत्तर प्रदेश डॉ. रवीन्द्र शुक्ल, हि.सा.भा. हरियाणा अध्यक्ष डॉ. रामेन्द्र सिंह, केन्द्रीय महामंत्री डॉ. अनिल शर्मा, हिन्दी साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. चंद्र त्रिखा, केन्द्रीय महामंत्री डॉ. अनिल शर्मा रहे। बैठक में संरक्षक जयभगवान सिंगला, महामंत्री डॉ. ऋषिपाल, कुवि से डॉ. लालचंद गुप्त ‘मंगल’, यू.आई.ई.टी. निदेशक डॉ. सी.सी. त्रिपाठी, कुवि परीक्षा नियंत्रक डॉ. हुकम सिंह, हिन्दी साहित्य भारती के प्रदेश जनसंपर्क संयोजक डॉ. कृष्ण कुमार सहित प्रदेश भर से आए हिन्दी साहित्य भारती हरियाणा के प्रतिनिधि उपस्थित रहे। इस बैठक में मंच संचालन, अतिथि परिचय एवं वार्षिक प्रतिवेदन डॉ. ऋषिपाल ने किया। बैठक के द्वितीय सत्र में कुरुक्षेत्र, कैथल, यमुनानगर, भिवानी, झज्जर एवं प्रदेश के अन्य जनपदों से आए प्रतिनिधियों ने वृत्त निवेदन प्रस्तुत किया।
इस अवसर पर आचार्य देवेन्द्र देव की पुस्तक ‘‘शंख महाकाल का’’, हिन्दी साहित्य भारती के संरक्षक जयभगवान सिंगला की पुस्तक ‘‘दैवीय चमत्कार मैं और मेरा परिवार’’, डॉ. रामनारायण शर्मा की पुस्तक ‘‘कबीरदास की मानवतावादी समन्वय साधना’’ का विमोचन किया गया।

प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में डॉ. रवीन्द्र शुक्ल ने कहा कि आज पूरे विश्व में हिन्दी की स्वीकार्यता बढ़ी है। पूरे विश्व में आज 260 विश्वविद्यालय हिन्दी पढ़ा रहे हैं और 28 हजार संस्थाएं हिन्दी पढ़ाने का काम कर रही हैं। सुखद पहलू यह भी है कि समाज में काम करने वाले लोग इससे ज्यादा हिन्दी के लिए सक्रिय हैं। साहित्य समाज का दर्पण नहीं मार्गदर्शक है। साहित्य सृजन करता है। आज हिन्दी के प्रचार-प्रसार की नितान्त आवश्यकता है और हिन्दी साहित्य भारती जल्द ही एक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन करने की योजना पर काम कर रही है। उन्होंने कहा कि भारत के 50 प्रतिशत से अधिक जिलों और विश्व के 35 देशों में हिन्दी साहित्य भारती ने अपनी कार्यकारिणी गठित कर ली है। इसी के साथ हिन्दी साहित्य भारती पूरे विश्व में हिन्दी पर सक्रिय रूप से कार्य करने वाला प्रथम संगठन बन गया है। महामंडलेश्वर डॉ. शाश्वतानंद जी ने बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि आज हमें अपने सुनहरे अतीत को याद करने की आवश्यकता है और वही समाज प्रगति कर पाया है जिसने अपने गौरवशाली इतिहास के साथ जीना सीख लिया है। हमें अपनी भाषा, संस्कृति और संस्कार अपने जीवन में उतारने होंगे, तभी हम समाज का कल्याण करने में सक्षम हो पाएंगे।

हिन्दी साहित्य भारती हरियाणा के अध्यक्ष डॉ. रामेन्द्र सिंह ने बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि हिन्दी में काम करने के लिए सरकारी कार्यालय अग्रसर होने लगे हैं। राष्ट्रीय स्तर पर भी ऐसा पहली बार हुआ है कि हम विदेशी भाषाओं का अनुकरण और अनुसरण करने की जगह अपनी स्थानीय भाषा एवं मातृभाषा का प्रयोग करने पर बल दिया जाने लगा है। हिन्दी साहित्य भारती हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए प्रतिबद्ध है और इसका दायरा लगातार बढ़ रहा है। हिन्दी साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. चंद्र त्रिखा ने कहा कि हम अपनी भाषा के प्रति कितने गंभीर हैं, इसका चिंतन-मनन अवश्य करना चाहिए। हम आज भी बहुत सी बातों से मुक्त नहीं हो पाए हैं। अंग्रेजी भाषा को विकसित होने में 6 हजार वर्ष का समय लगा, लेकिन हिन्दी में ऐसा नहीं है क्योंकि यह हमारे संस्कारों में रची-बसी भाषा है। उन्होंने कहा कि हिन्दी भाषा और साहित्य को बढ़ावा देने के लिए हमें अधिक से अधिक हिन्दी की पुस्तकें पढ़नी चाहिए और खरीदनी भी चाहिएं। कार्यक्रम के अंत में प्रसिद्ध उद्योगपति जयभगवान सिंगला ने कार्यक्रम में आए सभी का आभार व्यक्त किया।

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