जिस व्यक्ति के पास ज्ञान, भक्ति, विवेक, प्रेम, शांति नही वो गुरु नही

दिनोद धाम जयवीर फोगाट

01 मई,जब इंसान सतगुरु को अपना सब बल हार जाता है तो वो हाजिर नाजिर हर पल उस जीव की संभाल करते हैं। जब भक्त पर कोई विपत्ति आती है तो परमात्मा किसी देहधारी के रूप में प्रकट होकर उसकी मदद करता है।

हुजूर कंवर साहेब जी ने फरमाया कि यदि हमारी वृति ठीक है, चरित्र ठीक है और अच्छे बुरे की समझ है और यदि हम सतयुग की बातों को हम अपने चरित्र में शामिल करले तो सतयुग आज भी है। गुरु जी ने कहा कि आज का युग विज्ञान का युग है। तर्क की कसौटी पर हम अपने मूल्यों को भी तोलने लगे हैं। धर्म का आडम्बर ओढ़ रखा है। उन्होने कहा कि कुल 84 लाख योनि हैं और चार खान में जीव बंटे हुए हैं। लेकिन केवल इंसान ही ऐसा है जो ज्ञान और अज्ञान की समझ रखता है। इसी एक यौनि में गुरु मिलता है। गुरु नाम ज्ञान का है, विवेक का है समझ का है। जिस व्यक्ति के पास “ज्ञान भक्ति, विवेक, प्रेम, शांति” नही है वो गुरु नही है। असल मे तो इंसान का चोला मिलना ही कठिन है। चोला मिल भी गया तो गुरु मिलना और भी कठिन है। शब्द गुरु मिलना तो बहुत ही दुष्कर है। शब्द गुरु की पहचान यही है कि वो भेख नही धारता बल्कि करोड़ो को तारता है।

उन्होंने फ़रमाया कि इंसान को यह काया मेहमान की भांति मिली है। अनेको बार जन्म लिए है हमने लेकिन किसी को याद नही है लेकिन ये मेला चंद रोज़ का है। अपना कर्म हमे खुद को ही भोगना पड़ता है। कोई किसी का कितना ही प्यार क्यों ना हो लेकिन कोई किसी की जगह नही जाता। फिर भी हम मेरा मेरी के फेर में कितनी व्याधियों में अपने आप को फंसा बैठते हैं। इन व्याधियों की एक दवा है। वो है प्रभु का नाम। परमात्मा का नाम कुनीन की दवाई जैसा कड़वा है लेकिन जो उसे खा लेता है उसका बुखार भी तुरंत उत्तर जाता है। उन्होंने चेताया कि दूसरे को कष्ट देना, ईर्ष्या चुगली करना ये भक्ति के लक्षण नही हैं। जिस प्रकार दूध में खट्टी वस्तु का छोटा सा कण भी उसके फाड़ देता है उसी प्रकार एक छोटा सा बुरा विचार भी हमारी भक्ति के ख्याल को दुषित कर देता है। 

उन्होंने कहा कि जो सत्संग की बुराई करता है वो दुष्ट इंसान है। बुरा व्यक्ति बुरी चीज का बहाना लगा कर अच्छी चीज को भी बुरी बनाने का प्रयास करते हैं। उन्होंने कहा कि नशे विषयो के आदि इंसान तो पशु तुल्य हैं। वो ना सिर्फ अपना अहित करते हैं बल्कि समाज का भी अहित करते हैं। इन बुरे लोगो मे गुरु का भेष धारण करने वाले ढोंगी भी शामिल हैं। ऐसे लोग खुद तो नरकों में जाते ही हैं औरो को भी नरक के रास्ते पर धकेल रहें हैं। इंद्री रसों के कारण सारे के सारे दुख पैदा होते हैं। यदि इंसान चरित्रवान है, खानपान सही है और दृढ़संकल्पी है तो सभी बाधाओं को पार करके अपनी मंज़िल को पा ही लेता है। झूठ कपट बेईमानी को त्याग कर दया को रखो और धर्म की पालना करो। संसारी चीजो के प्रति उदासीनता रखो। क्योंकि संसारी चीज़ में मन लगाओगे तो ये परलोक में भी तुम्हे कष्ट देंगी। 

गुरु महाराज जी ने कहा कि नाव में बढ़े पानी को और घर मे बढ़े पैसे को दोनों हाथों से उलीचो। बढ़े पैसे से परोपकार और परमार्थ कमाओ। सत्संग ऐसा घाट है जँहा सब एक साथ नहाते हैं और पुण्य कमाते हैं। अहंकार भक्ति को खा जाता है। गुरु महाराज जी ने कहा कि कर्म से पवित्र बनो। घर मे प्यार प्रेम शान्ति रखें। सबका मान सम्मान रखे। गुरु की आज्ञा में रहे।

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