डॉ मीरा सिंह किसी भी देश के विकास में उस देश के श्रमिकों की अहम भूमिका होती है। जिस प्रकार एक मकान की मजबूत “नीव ” का उसके अस्तित्व में विशेष महत्व होता है,ठीक उसी तरह से किसी देश के निर्माण में या फिर यूं कहें कि किसी भी औद्योगिक इकाई के सम्पूर्ण विकास में उसके कामगारों का विशेष योगदान रहता है। मजदूरों के अथक परिश्रम के बिना कोई उद्योगपति अपने औद्योगिक ढांचे को स्थापित करने की कल्पना नहीं कर सकता है। लेकिन आज भी श्रमिक वर्ग कम मेहनताना,अस्थायी नौकरी, असुरक्षित कार्यक्षेत्र,अच्छी मशीनों का अभाव,बाल मजदूरी,महिला श्रमिकों को पुरुषों की अपेक्षा कम वेतन मिलना,सरकारी व सहकारी संस्थाओं का निजीकरण जैसी कई मुश्किलों से जूझ रहा है। मजदूरों द्वारा खून-पसीने के साथ की गई मेहनत को लेकर कहा भी गया है कि- “मेहनत जिसकी लाठी है,मजबूत जिसकी काठी है, हर बाधा को जो कर देता है दूर,दुनिया कहती है उसे मजदूर” प्रबंधन में भी यही बताया जाता है कि किसी भी नए व्यवसाय या उद्योग को शुरू करने के लिए पांच मूल ज़रूरतों को पूरा करना अत्यंत आवश्यक होता है। इन पांच ज़रूरतों को “पांच एम” कहा जाता है, इसमें पहला (एम) ही मैन यानी श्रमिक अथवा कामगार हैं। दूसरा ‘एम’ मनी मतलब पूंजी है। तीसरा एम को हम मेटीरियल यानी कच्चा माल कह सकते हैं और चौथे ‘एम’ को मैथड यानी काम करने की प्रणाली के साथ पेशेवर प्रक्रिया, इसके अलावा पाचवें एम को हम मशीनरी यानी उस कार्य में इस्तेमाल होने वाली मशीनों तथा अन्य यंत्रों के साथ जोड़कर देखते हैं। इन सभी पांचों में पहला ‘एम’ श्रमिक (मैन) है जो उस इकाई के संचालन में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 1मई को मजदूर दिवस मनाने का ऐतिहासिक कारण माने तो वो है 1886 में अमेरिका में हुई मजदूर संगठनों की हड़ताल, जिसमें मुख्य मांग मजदूर संगठनों द्वारा एक शिफ्ट में काम करने की अधिकतम सीमा 8 घंटे करने की रखी गई थी। इस हड़ताल के दौरान एक अज्ञात शख्स ने शिकागो के हेय मार्केट में बम फोड़ दिया, उसी दौरान पुलिस ने मजदूरों पर गोलियां चला दीं, जिसमें 7 मजदूरों की मौत हो गई। इसके बाद अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन में ऐलान किया कि इस घटना में शहीद हुए निर्दोष मजदूरों की याद में,1 मई को “अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस” के रूप में मनाया जाएगा और इस दिन सभी कामगारों व श्रमिकों का अवकाश रहेगा। मजदूर दिवस मनाने की शुरुआत शिकागो में 1886 से ही हो गई थी। इस घटना के कुछ समय बाद ही अमेरिका ने मजदूरों के एक शिफ्ट में काम करने की अधिकतम सीमा 8 घंटे निश्चित कर दी थी। तभी से “अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस” 1 मई को मनाया जाता है। अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मजदूरों की कड़ी मेहनत,दृढ़ निश्चय और उनकी इच्छाशक्ति एवं निष्ठा के प्रति सम्मान का दिन है। हमारे देश की बात करे तो भारत में मजदूर दिवस के मनाने की शुरुआत चेन्नई में 1 मई 1923 से हुई। लेकिन आज भी मजदूरों की स्थिति बड़ी दयनीय है,बेशक मजदूरों के 8 घंटे काम करने से संबंधित कानून लागू हो गया हो लेकिन अधिकतर प्राइवेट कंपनिया अब भी उनके वहाँ काम करने वाले मजदूरो से 12 घंटे से अधिक समय तक काम करवाती हैं और अभी भी देश में कम मजदूरी पर मजदूरों से काम कराया जाता है। बेशक, इसको लेकर देश में विभिन्न राज्य सरकारों ने न्यूनतम मजदूरी के नियम लागू किये हुए हैं, लेकिन इन नियमों का उल्लंघन भी हो रहा है और श्रमिकों का आज भी शोषण होता है। इसको लेकर प्रशासन द्वारा उचित कार्रवाई की अति आवश्यकता है। केंद्र सरकार व राज्य सरकारों को भी इस दिशा में ओर अधिक बेहतरीन कानून बनाना चाहिए और उसका सख्ती से पालन हो, इसका भी ध्यान रखना चाहिए। मजदूरी की दर इतनी तो होनी ही चाहिए ताकि मजदूर के परिवार का पालन पोषण हो जाए उसे भूखा न रहना पड़े और मजदूरों के बच्चो को शिक्षा से वंचित न रहना पड़े, इसकी भी व्यवस्था हो। महिला मजदूरों की बात करे तो बहुत से स्थानों पर आज भी महिलाओं को समान कार्य हेतु समान वेतन नहीं दिया जाता है। बेशक महिला और पुरुष फैक्ट्रियों में समान रूप से काम कर रहे हों। ये महिला मजदूरों का खुलेआम शोषण है सभी उद्योगों को लैंगिक भेदभाव से बचना चाहिए। सभी मजदूरों के लिए काम करने का उचित स्थान,अच्छा वातावरण और बेहतरीन स्वास्थ्य स्थिति होनी चाहिए, लेकिन कई फैक्ट्रियों में तो महिलाओं के लिए अलग से शौचालय की व्यवस्था तक नहीं होती है। महिला श्रमिक से संबंधित कानूनों का भी कड़ाई से पालन होना चाहिए। बालश्रम की समस्या भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देशों में आज भी एक विकट समस्या का रूप धारण किये हुए है जिसका समाधान खोजना बहुत जरूरी है। भारत में 1986 में बाल श्रम निषेध और नियमन अधिनियम पारित हुआ जिसके अंतर्गत खतरनाक उद्योगों में बच्चों से काम करवाना निषेध है। वैसे तो हमारे संविधान ने मजदूरों को काम का अधिकार, पूरी मजदूरी देने का प्रावधान और संरक्षण प्रदान करके उन्हें शोषण से बचाने का प्रावधान किया गया है। कोई भी ठेकेदार, फैक्टरी या कारखाना मालिक उनका शोषण नहीं कर सकता। उद्योग तथा श्रम सम्बन्धी विधान में कारखाना अधिनियम 1948, औद्योगिक संघर्ष अधिनियम 1947, भारतीय श्रम संघ अधिनियम 1926, इत्यादि विधान की श्रेणी में आते हैं। श्रम विधान सामाजिक विधान का ही एक अंग है सामाजिक सुरक्षा सम्बन्धी विधान के अन्तर्गत वे समस्त अधिनियम आते हैं जो श्रमिकों के लिए विभिन्न सामाजिक लाभों में जैसे बीमारी, प्रसूति, रोजगार सम्बन्धी आघात, प्रॉविडेण्ट फण्ड और न्यूनतम मजदूरी इत्यादि-की व्यवस्था करते हैं। इस श्रेणी में कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम 1948,कर्मचारी प्रॉविडेण्ट फण्ड अधिनियम1952, न्यूनतम भृत्ति अधिनियम1948, कोयला खान श्रमिक कल्याण कोष अधिनियम1947 प्रमुख हैं। सामाजिक सुरक्षा से संबधित कुछ अधिनियम पुराने पड़ने से वर्तमान समय की जरूरत के मुताबिक उनकी पुनः समीक्षा भी होनी चाहिए। असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों तथा मजदूरों के लिए ई-श्रमिक कार्ड योजना चलाई जा रही है जोकि सरकार की एक बहुत ही सराहनीय पहल है। ई-श्रमिक कार्ड से मजदुर सभी सरकारी योजनाओं का लाभ उठा सकते हैं। वर्तमान समय में ई-श्रमिक कार्ड से इन सरकारी योजनाओं में – प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना, स्वरोजगार करने वालों के लिए राष्ट्रीय पेंशन योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, अटल पेंशन योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, राष्ट्रीय सामाजिक सहायता योजना, आयुष्मान भारत योजना, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, प्रधानमंत्री रोजगार सृजन योजना को जोड़ा गया है। वहीं राष्ट्र की प्रगति में अपने श्रमिकों की महत्वपूर्ण भूमिका का सम्मान करते हुए हमें उनकी तारीफ करते हुए हौसला अफजाई करनी चाहिए । इसके साथ ही राष्ट्र निर्माण में बहुमूल्य योगदान देने वाले मजदूर वर्ग को उनके कड़े परिश्रम, दृढ़ निश्चय, उनकी निष्ठा एवं इच्छाशक्ति का सम्मान करते हुए मजदूरों के हितों की रक्षा के लिए हमे सदैव तैयार रहना चाहिए। Post navigation आज प्रदेश के युवा बेरोजगारी के चलते हताश और निराश – बलराज कुंडू अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस 2022……भारत में महिला, प्रवासी एवं बाल मजदूरों की समस्याएं बेहद चिंतनीय