-कमलेश भारतीय

हमारा देश बहुविध , बहुसंस्कृति और अनेक धर्मों का देश है और संभवतः यही इसकी सबसे बड़ी खूबी है । हिंदू , मुस्लिम , सिख , ईसाई और सब के सब हैं भाई भाई । जो भी यहां आक्रामक बन कर आया , वह यहीं का होकर रह गया । इसीलिए कहते हैं कि सब मिट गये जहां से लेकिन कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी । स्वतंत्रता से पहले हम सब हिंदुस्तानी ही थे और हर हिंदुस्तानी ने इसके लिए कुर्बानी दी । चाहे कोई किसी धर्म का था , सबके सब हिंदुस्तानी थे और हैं लेकिन दुर्भाग्य यह कि स्वतंत्रता के बाद हम धीरे धीरे बंटने लग गये । जिन छाप तिलक पर हमारी कोई कटुता नहीं थी , कोई वैर भाव न था , वही छाप तिलक धीरे धीरे हमारे लिए महत्वपूर्ण होते चले गये । साम्प्रदायिक दंगे स्वतंत्रता के बाद से बढ़ गये ।

इसीलिए तो प्रसिद्ध कथाकार भीष्म साहनी का अपने साथ हुई बातचीत का अंश याद आ रहा है कि स्वतंत्रता के बाद से तो भाषा भी जोड़े रखने का काम न करके बांटने का काम करने लगी है । भाषा के आधार पर राज्य गठित किये जा रहे हैं । छाप तिलक सचमुच रंग दिखाने लगे हैं और अभी न केवल रामनवमी बल्कि हनुमान जयंती पर कल भी हिंसा की घटनाएं हुई हैं जो बहुत दुखद हैं । किसी भी धर्म के महत्वपूर्ण दिन पर कोई हिंसा नहीं होनी चाहिए । पर अब होने लगी हैं । हनुमान जयंती को इतना प्रचारित किया गया कि कुछ सरकारों ने बाकायदा विज्ञापन जारी किये । यह हमारे धर्मनिरपेक्ष देश की छवि को भ्रमित करने वाले विज्ञापन ही माने या कहे जा सकते हैं । हनुमान जी तो संकट मोचक कहलाये जाते हैं और उनकी जयंती पर संकट क्यों ? बखेड़ा क्यों ? हिंसा क्यों ? जो दूसरे के भले के लिए अपने प्राणों को जोखिम में डाले रहे , उन्हीं की जयंती पर इतना बबाल क्यों ? फिर हम हमेशा कहते हैं कि जिसकी जयंती है उसके पदचिन्हों पर चलना चाहिए । यह कैसा अनुसरण ?

इस बढ़ती साम्प्रदायिक घटनाओं पर कांग्रेस सहित देश के तेरह नेताओं ने प्रधानमंत्री की चुप्पी पर गहरी चिंता जाहिर की है । देश भर में बढ़ रही भोजन , वेशभूषा , आस्था , त्योहारों और भाषा जैसे मुद्दों पर सत्ता के प्रतिष्ठानों द्वारा समाज का ध्रुवीकरण किये जाने के प्रयासों को लेकर ये नेता क्षुब्ध हैं । इन नेताओं ने कहा कि हम प्रधानमंत्री की चुप्पी को लेकर स्तब्ध हैं जोकि ऐसे लोगों के खिलाफ कुछ भी बोलने में नाकाम रहे । जो अपने शब्दों व कृत्यों से कट्टरता फैलाने और समाज को भड़काने का काम कर रहे हैं । हमें एकजुट होकर सामाजिक सद्भाव को मजबूत करने का अपना संयुक्त संकल्प जारी रखना होगा ।

इसलिए छाप , तिलक सब छीने रे ही याद आया । यह जरूरी है । जब हम एक हैं तो अलग छाप , अलग तिलक कोई मायने नहीं रखते । इनके पीछे का इंसान दिखता रहना चाहिए ।
तभी तो नीरज ने कहा है :

अब कोई ऐसा मजहब चलाया जाये
जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाये
पर इसमें लगती है मेहनत ज्यादा ।
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।

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