डॉ मीरा सिंह

अम्बेडकर विचारधारा केवल दलित कल्याण या संविधान निर्माण तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह एक व्यापक विचारधारा है। डॉ. बी.आर. अंबेडकर अधिकांश विपरीत परिस्थितियों में एक सफल व्यक्तित्व का एक अनूठा उदाहरण हैं। गरीब परिवार में जन्म होने के कारण उनका जीवन बहुत ही संघर्षभरा रहा और जातिगत भेदभाव के कारण उन्हें काफी मुश्किलों का सामना भी करना पड़ा।

आंबेडकर की विचारधारा आज भी प्रासंगिक है। उनके द्वारा तैयार संविधान हमें समरस समाज की ओर प्रेरित करता है।उन्हें लोकतांत्रिक मूल्यों पर पूरा भरोसा था। वे मानते थे कि लोकतंत्र श्रेष्ठ है, क्योंकि यह स्वतंत्रता में अभिवृद्धि करता है। उन्होंने लोकतंत्र के संसदीय स्वरूप का समर्थन किया और ‘लोकतंत्र प्रणाली को जीवन पद्धति’ बताया। वे जानते थे कि लोकतंत्र का महत्त्व केवल राजनीतिक क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि व्यक्तिगत, सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में भी उतना ही है। उनका विचार था कि स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व ये तीनों अलग विचार नहीं है बल्कि एक-दूसरे के पूरक हैं। इनमें से यदि एक को अलग किया तो लोकतंत्र का मूल उद्देश्य ही नष्ट हो जाएगा । स्वतंत्रता को समानता से और समानता को स्वतंत्रता से अलग नहीं किया जा सकता।  इसी प्रकार स्वतंत्रता और समानता को बंधुत्व से अलग-अलग नहीं किया जा सकता।

बाबा साहेब के तीन मूलमंत्र-शिक्षित बनो,संगठित रहो और संघर्ष करो
 इन अनमोल वचनों को अपनाकर हम मानव विकास के पथ की ओर अग्रसर हो सकते है। बाबा साहेब की पहचान एक न्यायविद, शिक्षाविद, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, समाज सुधारक,संविधान निर्माता, आजाद भारत के प्रथम कानून मंत्री एवं शोषितों के मसीहा के रूप में होती है। 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश में जन्में डॉ अम्बेडकर, भारत के संविधान के एक प्रमुख वास्तुकार थे। डॉ अम्बेडकर को आधुनिक भारत के सबसे ओजस्वी लेखकों में गिना जाता है। विश्व के लगभग हर देश में उनके प्रशंसक मौजूद हैं। वे हिन्दी, पाली, संस्कृत, अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, मराठी, पर्शियन और गुजराती जैसे 9 भाषाओँ के जानकार थे। इसके अलावा उन्होंने लगभग 21 साल तक विश्व के सभी धर्मों की तुलनात्मक रूप से पढ़ाई की थी। भीमराव अम्बेडकर तीनों गोलमेज सम्मलेन में भाग लेने वाले गैर कांग्रेसी नेता थे। एक सर्वे में कोलंबिया यूनिवर्सिटी ने डॉ आंबेडकर को विश्व का नंबर वन शोधार्थी घोषित किया गया। बाबा साहेब विदेश जाकर अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की डिग्री हासिल करने वाले पहले भारतीय थे।  उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय से  (बी॰ए॰), कोलंबिया विश्वविद्यालय से (एम॰ए॰, पीएच॰डी॰, एलएल॰डी॰), लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स (एमएस॰सी॰, डीएस॰सी॰), ग्रेज इन (बैरिस्टर-एट-लॉ) की उपाधि ली और उनको भीमराव बोधिसत्व (1956), भारत रत्न (1990), पहले कोलंबियन अहेड ऑफ देअर टाईम (2004), द ग्रेटेस्ट इंडियन (2012) सम्मान एवं पुरस्कार से सम्मानित किया गया।उन्होंने  शेड्युल्ड कास्ट फेडरेशन, स्वतंत्र लेबर पार्टी, भारतीय रिपब्लिकन पार्टी, बहिष्कृत हितकारिणी सभा आदि सामाजिक और राजनैतिक संगठन बनाये।

डॉ अम्बेडकर आधुनिक भारत के निर्माता के रूप में याद किये जाते है।क्योंकि वे ऐसा समाज बनाना चाहते थे, जिसमे शिक्षा,न्याय, स्वतंत्रता, समता आदि मानवीय मूल्यों का अधिकार देश के सभी नागरिकों को समान रूप से मिले। वे ऐसे कानूनों, कार्यों, नियमों और ऐसी व्यवस्थाओं को खुली चुनौती देते थे, जिससे पिछड़े और कमजोर लोगों के अधिकारों का हनन होता हो। समाज में शोषक और शोषित वर्ग नहीं होना चाहिए, अगर ऐसी स्थति बनती है तो इससे लोकतंत्र के लिए खतरा हो सकता है। वे ऐसे दार्शनिक थे कि माहिलाओ की समानता और सस्क्तीकरण को लेकर हिन्दू कोड बिल की आवश्कता को पहेले ही समझ चुके थे। उन्होंने उस समय मजदूरों के अधिकारों की भी वकालत की। जीवन को लेकर उनका मानना था कि जीवन भले ही छोटा हो लेकिन महान होना चाहिए। राष्ट निर्माण में उनके अद्भुत योगदान को देखते हुए, हमें भी देशहित व अपने राष्ट्र के समग्र विकास हेतु श्रेष्ठ कार्यों में सहयोग करना चाहिए।

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