महान समाज सुधारक महात्मा ज्योतिबा फुले के जन्मदिवस 11 अप्रैल पर विशेष

सुरेश गोयल धूप वाला………..मीडिया प्रभारी
कैबिनेट मंत्री डॉ कमल गुप्ता

हजारों वर्षों से भारत वर्ष ऋषि- मुनियों संतो- महात्माओं की धरती रहा है, जिन्होंने अपने ज्ञान के प्रकाश से पूरे विश्व मे रोशनी फैलाने का कार्य किया। महापुरुष किसी एक विशेष जाति के नहीं, वे पूरे मानव जाति के कल्याण के लिए कार्य करते हैं। जब धरती पर पाप बढ़ जाता है तब संत महात्मा धरती पर अवतरित होकर प्राणियों में पुण्य का मंत्र गुँजाते हुए जीवन में धर्म धारण करवाने का कार्य करते हैं ।

ऐसे ही एक महात्मा फुले जिन्हें ज्योतिबा फुले के नाम से भी जाना जाता है का जन्म 11 अप्रैल 1827 को महाराष्ट्र प्रान्त में हुआ। वे बहुत ही उच्चकोटि के संत हुए हैं, जिन्होंने भारतीय समाज में धर्म के प्रति जागृति उत्पन्न करने का कार्य किया। महात्मा फुले महान समाज सुधारक, विचारक, लेखक, कवि, दार्शनिक व आध्यात्मिक पुरूष थे। महात्मा ज्योतिराव गोविंद राव फुले ने 1873 में सत्य शोधक समाज नामक संस्था का गठन किया। उन्होंने रूढि़वादी प्रथाओं का घोर विरोध करते हुए महिलाओं व दलितों को ऊपर उठाने के लिए समाज में जागृति उत्पन्न करने का कार्य किया। समाज में शिक्षा के प्रति उनका विशेष आग्रह रहा। साक्षरता के लिए उन्होंने समाज मे अपनी पूरी शक्ति झोंक दी। जातिवाद के वे कट्टर विरोधी थे। उनका चिंतन था पूरा भारतीय समाज एक है।

हजारों वर्षो से हम सब भारतवासी एक वरिष्ठ भारतीय संस्कृति के साथ जुड़े हैं। हम में किसी प्रकार का जातिवादी, क्षेत्रवादी व ऊंच-नीच का भेदभाव नहीं रहना चाहिए। महात्मा फुले ने अंधविश्वास व समाज में फैली कुरीतियों का डट कर विरोध किया। उन्होंने बाल विवाह का विरोध व विधवा विवाह का समर्थन कर समाज मे नई जागृति उत्पन्न करने का कार्य किया। उनका समाज मे कई बातों को लेकर विरोध भी किया गया। परंतु वे हमेशा अपनी बात पर अडिग रहे। धीरे-धीरे जब लोगों को उनकी बात समझ आने लगी तो उनका विरोध करने वाले ही उनके समर्थक हो गए।

वे समाज मे फैली बुराइयों का पूरी तरह अंत कर देना चाहते थे। वे महिला-पुरुष के भेदभाव को समाज में पूरी तरह समाप्त करने के पक्षधर थे। महिलाओं में शिक्षा के प्रति उनके अधिकारों के प्रति जीवन पर्यंत काम करते रहे। उनका दृढ़ निश्चय था कि वे अवश्य ही क्रांतिकारी परिवर्तन लाने में सफल होंगे।

महात्मा फुले ने समाज मे एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करते हुए अपनी धर्मपत्नी सावित्री बाई फुले को स्वयं ही शिक्षा प्रदान की। वे भारत की पहली महिला अध्यापिका थी। यह वह समय था जब महिलाओं को शिक्षा देना अच्छा नहीं समझा जाता था। उन्होंने अपने जीवन काल मे अनेकों पुस्तकें भी लिखी। महात्मा फुले के प्रयासों के कारण ब्रिटिश सरकार ने किसानों के हितों वाला एग्रीकल्चर एक्ट पास किया। तत्कालीन ब्रिटिश सरकार द्वारा उन्हें महिला शिक्षण के आध्द जनक कह कर गौरान्वित भी किया व सार्वजनिक रूप से उनको सम्मानित भी किया। उनकी मृत्यु 28 नवम्बर 1890 को पुणे में 63 वर्ष की आयु में ही हो गई। वे भारतीय समाज मे एक जागृति की लहर छोड़ गए जो आज भी पूरी तरह प्रासंगिक हैं।

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