वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक

कुरुक्षेत्र पिहोवा :- श्री गोविंदानंद आश्रम पिहोवा की महंत सर्वेश्वरी गिरि जी महाराज ने आज नवरात्रि व्रत व मां दुर्गा की आराधना के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि नवरात्रि के व्रत का समापन अष्टमी और नवमी के दिन कन्या पूजन से किया जाता है। मान्यता है कि माता रानी को जितनी प्रसन्नता कन्या पूजन से होती है, उतनी प्रसन्नता उन्हें हवन और दान से भी नहीं होती।

नवरात्रि का समापन अष्टमी और नवमी तिथि को होता है। इस दिन माता के पूजन, हवन आदि के बाद कन्या पूजन की परंपरा है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।

जो भक्त नौ दिनों तक माता रानी का व्रत रखते हैं, वो कन्या पूजन के बाद अपना व्रत खोल लेते हैं। वैसे तो नवरात्रि में कन्या पूजन किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन अष्टमी और नवमी के दिन करना ज़्यादा श्रेष्ठ माना जाता है।

शास्त्रों में कन्या पूजन को विशेष महत्व दिया गया है। मान्यताओं के अनुसार कन्या पूजन के बिना नवरात्रि का व्रत पूरा नहीं होता। कन्या पूजन के दौरान 9 कन्याओं को माता के नौ स्वरूप मानकर पूजा की जाती है, उनके साथ ही एक बालक को भी भोज कराया जाता है, जिसे भैरव बाबा का रूप माना जाता है। उस बालक को लांगुर कहा जाता है। कहा जाता है कि कन्याओं के साथ लागुंर (बालक) को भोजन कराने के बाद ही कन्या पूजन पूरी तरह सफल होता है।

इस तरह करें कन्या पूजन
सुबह उठ कर खीर, पूड़ी, हलवा, चने आदि बना लें। माता रानी को इसका भोग लगाएं। इसके बाद कन्याओं और लांगुर को बुला कर, उनके पैर साफ़ पानी से धुलवाएं और उन्हें एक स्वच्छ आसन पर बैठाएं। इसके बाद कन्याओं और लांगुर को भोजन करवाएं। फिर माथे पर रोली से सभी का तिलक करें और सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा दें। इसके बाद सभी के चरण स्पर्श करें।

इस तरह से कन्या भोजन कराने से माता अत्यंत प्रसन्न होती हैं और भक्त को आशीर्वाद प्रदान करती हैं।

महंत सर्वेश्वरी गिरि जी महाराज ने बताया कि आश्रम में पिछले कई वर्षो से कन्या पूजन भंडारा तो होता ही है साथ में जरूरतमंद कन्याओं की हर जरूरत का सामान भी उपलब्ध करवाया जाता है।

शिक्षा चिकित्सा और विवाह इत्यादि में भी आश्रम की तरफ से हर संभव सहयोग किया जाता है।

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