·         नियम 267 के तहत दीपेन्द्र हुड्डा के कार्य स्थगन प्रस्ताव को राज्य सभा के सभापति ने अस्वीकार किया

·         दीपेन्द्र हुड्डा के समर्थन में पूरा विपक्ष एकजुट हुआ जिसके बाद सदन की कार्रवाई स्थगित करनी पड़ी

·         चंडीगढ़ केंद्र शासित प्रदेश भी है, पंजाब विधानसभा में पारित प्रस्ताव पर भारत सरकार स्पष्टीकरण दे– दीपेंद्र हुड्डा

·         1 अप्रैल को पंजाब विधान सभा में पारित प्रस्ताव एकतरफा व असंवैधानिक और पंजाब पुनर्गठन एक्ट 1966 का पूर्ण उल्लंघन– दीपेंद्र हुड्डा

·         हरियाणा के हिस्से का-एक एक बूंद पानी और एक-एक इंच जमीन लेकर रहेंगे – दीपेंद्र हुड्डा

·         पंजाब सरकार के इस कदम से क्षेत्रीय शांति, भाईचारा और स्थिरता बिगड़ने की संभावना – दीपेन्द्र हुड्डा

·         हरियाणा के हितों से खिलवाड़ नहीं होने देंगे, हम अपने हक की रक्षा करेंगे – दीपेन्द्र हुड्डा

चंडीगढ़, 4 अप्रैल। सांसद दीपेन्द्र हुड्डा ने आज राज्य सभा में चंडीगढ़ को लेकर पंजाब विधानसभा में पारित एकतरफा प्रस्ताव के खिलाफ कार्यस्थगन प्रस्ताव दिया, जिसे सभापति ने स्वीकार नहीं किया। इसके विरोध में पूरा विपक्ष दीपेन्द्र हुड्डा की मांग के समर्थन में एकजुट हो गया, जिसके बाद सदन की कार्रवाई स्थगित करनी पड़ी।दीपेन्द्र हुड्डा ने नियम 267 के तहत दिए गये अपने नोटिस में कहा कि 1 अप्रैल को पंजाब विधान सभा में पारित प्रस्ताव एकतरफा व असंवैधानिक है साथ ही वर्ष 1966 में पारित पंजाब पुनर्गठन एक्ट का पूर्ण उल्लंघन भी है। पंजाब सरकार के इस कदम से इससे क्षेत्रीय शांति, भाईचारा और स्थिरता बिगड़ने की संभावना होगी। उन्होंने कहा कि चंडीगढ़ को लेकर पंजाब की एकतरफा दावेदारी सही नहीं है। आज पूरे हरियाणा की भावना है कि चंडीगढ़ हमारा है और सारे का सारा है। चंडीगढ़ केवल हरियाणा की राजधानी नहीं है, केंद्र शासित प्रदेश भी है इसलिए भारत सरकार को पंजाब विधानसभा में पारित प्रस्ताव पर स्पष्टीकरण देना चाहिए। दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि हरियाणा के हितों से खिलवाड़ नहीं होने देंगे, हरियाणा के हिस्से का एक-एक बूंद पानी और एक-एक इंच जमीन लेकर रहेंगे। उन्होंने SYL के पानी के मसले को हल करने की भी मांग की।

नोटिस के जरिये सांसद दीपेन्द्र ने सदन को बताया कि 1 अप्रैल को पंजाब विधानसभा में केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ के स्थानांतरण के संबंध में एकतरफा प्रस्ताव पारित किया गया है। जिसमें कहा गया है कि “चंडीगढ़ शहर को पंजाब की राजधानी के रूप में बसाया गया था” जो पूरी तरह भ्रामक और आधे-अधूरे तथ्यों से पूर्ण है। केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ पर हरियाणा राज्य का दावा और नदी के पानी में उसका उचित हिस्सा भारत के संविधान के तहत कानूनी रूप से जायज और संरक्षित किया गया है। उन्होंने कहा कि शाह कमीशन ने भी कहा था कि चंडीगढ़ पर पहला हक हरियाणा का है। अगर पंजाब सरकार राज्य के मसलों पर बात करना चाहती है तो सबसे पहले SYL पर SC के 2016 के फैसले को अक्षरशः लागू करे। हरियाणा और पंजाब में 3 विषयों पर बातचीत होगी, पंजाब सरकार को हिंदी भाषी क्षेत्रों समेत तमाम मसलों पर बात करनी होगी। हमारी मांग है कि हरियाणा की मौजूदा सरकार एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के साथ प्रधानमंत्री से मिले और एसवाईएल को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू कराने की पहल करे। इस मामले में सारा हरियाणा एक है। इस मसले पर सभी एकजुट होकर प्रदेश के हक और हितों की रक्षा के लिए मजबूती से आवाज उठाएंगे।

उन्होंने आगे कहा कि SYL का सच ये है कि भारत की तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने 1982 में पंजाब के कपूरी गाँव में अपने हाथ से कस्सी मार कर इसके निर्माण का काम शुरू किया था। दुर्भाग्य की बात यह है कि प्रदेश में पहली बार भाजपा की सरकार बनी और पहली बार पंजाब में SYL को पाटने का काम शुरू हो गया। जबकि, 1985 में हुए राजीव लोंगोवाल समझौते को आधार मानकर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में हरियाणा के पक्ष में फैसला सुनाया था। SYL हरियाणा के लिये गँगा के समान है, हम किसी का हक़ नहीं छीन रहे हैं बल्कि अपना हक मांग रहे हैं जिसे हम लेकर रहेंगे। 

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