25 मार्च को काँग्रेस और बीजेपी के मिलेजुले नेता चौधरी बीरेन्द्र सिंह का 75वाँ जन्मदिन था और उनके राजनीतिक जीवन के 50 साल पूरे हुए थे।

उमेश जोशी    

बहुत साधारण से तीन अंक हैं 25, 50 और 75, लेकिन इन अंकों की खास अहमियत है क्योंकि हाल में इन्हीं अंकों की आड़ में हरियाणा की राजनीति के भविष्य की इबारत लिखने की कोशिश की गई है। 25 मार्च को काँग्रेस और बीजेपी के मिलेजुले नेता चौधरी बीरेन्द्र सिंह का 75वाँ जन्मदिन था और उनके राजनीतिक जीवन के 50 साल पूरे हुए थे। इस अवसर पर जींद में कई पार्टियों के नेता इकट्ठे हुए; कुछ सक्रिय थे और कुछ सक्रिय होने को बेताब थे लेकिन उन बेचारों को पार्टी ने हाशिये पर पटका हुआ है और वे मुख्य धारा में आने के लिए फड़फड़ा रहें हैं। 

  खुद चौधरी बीरेन्द्र सिंह अपने अल्पकालीन राजनीतिक सन्यास से ऊबे हुए लग रहे थे। जो वातावरण वहाँ दिख रहा था और चौधरी बीरेन्द्र सिंह अपने चेहरे पर नूर लौटने की बात कह रहे थे उससे यह साफ़ संकेत मिल रहा था कि वे राजनीतिक संन्यास का चोगा उतार कर फिर से सक्रिय राजनीति में आना चाहते हैं। लेकिन, उनके साथ मजबूरी यह है कि काँग्रेस में जा नहीं सकते और बीजेपी में सक्रिय राजनीति के दरवाजे बंद हैं। इन हालात में तीसरा मंच ही सहारा बन सकता है। वही मंच शिथिल भावनाओं में उत्साह भर सकता है। 

बड़ी चतुराई से जींद आयोजन का न्योता भेजा गया था। उसमें कहा गया था कि पिछले 50 वर्षों के राजनीतिक जीवन में चौधरी बीरेन्द्र सिंह से जो भी संपर्क में रहा है वो इस आयोजन में सादर आमंत्रित हैं। आयोजकों को भी बखूबी मालुम था कि चौधरी साहब ने जिस काँग्रेस पार्टी में सबसे अधिक समय गुजारा है उस पार्टी के नेताओं से ही सबसे अधिक संपर्क में रहे हैं लेकिन उस पार्टी का कोई नेता आयोजन में नहीं आएगा। फिर भी ऐसा खुला निमंत्रण देने के पीछे मंशा थी कि आम आदमी पार्टी का कोई बड़ा नेता आए और पार्टी में शामिल होने की गुहार करे। अंधे को क्या चाहिए, दो आंखें। आम आदमी पार्टी के हरियाणा प्रभारी और राज्यसभा सदस्य सुशील गुप्ता न सिर्फ आयोजन में पहुंचे बल्कि पार्टी में शामिल होने का न्योता भी दे दिया। सुशील गुप्ता ने जब यह कहा कि चौधरी साहब का आम आदमी पार्टी में स्वागत है तो चौधरी साहब बोले – स्वागत की मैंने धार काढ़णी है। मतलब साफ था कि इससे आगे की बात करो। सुशील गुप्ता बोले कि आम आदमी पार्टी में शामिल होने के बाद चौधरी साहब के सारे सपने पूरे हो सकते हैं।

सुशील गुप्ता ने यह भी कहा कि चौधरी साहब आपने राज्य में एक बदलाव किया था जो माकूल नहीं था लेकिन  इस बार जो बदलाव करेंगे वो देश और प्रदेश की राजनीति के लिए महत्त्वपूर्ण होगा। आखिर चौधरी साहब का ऐसा कौन-सा सपना है जो पूरा नहीं हुआ। चौधरी साहब का एक ही सपना था प्रदेश का मुख्यमन्त्री बनना। उनके जीवन में दो बार अवसर आए लेकिन भाग्य ने साथ नहीं दिया और पास आई कुर्सी खिसक गई। 1991 में काँग्रेस ने उनके नेतृत्व में चुनाव जीता था। चुनाव के दौरान ही राजीव गांधी की हत्या हो गई। जिनके भरोसे पर चौधरी साहब काम कर रहे थे, जब वे ही नहीं रहे तो  मुख्यमंत्री की कुर्सी चौधरी भजन लाल  को दे दी गई। 2005 में फिर अवसर आया, लेकिन भाग्य फिर रूठ गया और मुख्यमंत्री की कुर्सी भूपिंदर सिंह हुड्डा को मिल गई। सुशील गुप्ता यही सपना पूरा होने की बात कह रहे थे। चौधरी बीरेन्द्र सिंह भी पंजाब के नतीजों से उत्साहित लगते हैं कि शायद हरियाणा में भी पंजाब जैसा कोई करिश्मा हो जाए। 

 राजनीतिक पंडितों का यह भी कहना है कि चौधरी बीरेन्द्र सिंह आम आदमी पार्टी का ट्रेलर  दिखा कर  बीजेपी पर दबाव बनाना चाहते हैं। वे अपने सांसद पुत्र बृजेंद्र सिंह को मंत्रिमंडल में स्थान दिलवाना चाहते हैं। जिस बेटे के लिए उन्होंने न सिर्फ खुद बल्कि पत्नी प्रेमलता सहित राजनीति से संन्यास लिया था। जिस पुत्र के लिए इतना बड़ा त्याग किया उसे मंत्री होना चाहिए। लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी मानना है कहीं दबाव की राजनीतिक भारी ना पड़ जाए और बृजेंद्र सिंह की ही जमीन खिसकने लगे। 

  चौधरी बीरेन्द्र सिंह यह भी कह सकते हैं कि उन्होंने राजनीति से कभी संन्यास नहीं लिया। बेटे को टिकट दिलाते समय सक्रिय राजनीति छोड़ने का एलान करना ही संन्यास है। संन्यासी होने का साफ साफ संकेत कांस्टीच्युशन क्लब में अर्ध सैनिकों के सम्मेलन में दे चुके हैं। उस सम्मेलन में डॉक्टर सत्यपाल सिंह भी मौजूद थे। 

राजनीतिक संन्यासी’ के जन्मदिन पर बीजेपी के तीन नेता रामविलास शर्मा, राव नरबीर और विपुल गोयल भी पहुँचे थे। रामबिलास शर्मा मुख्य संयोजक की भूमिका में थे। इनमें पहले दो नेता अघोषित राजनीतिक संन्यासी हैं। उड़ना चाहते हैं लेकिन इनके पर कतर दिए हैं, पहले जनता ने, फिर पार्टी ने। ये उड़ना चाहते हैं लेकिन पर यानी पंख नहीं हैं।  

 इनेलो के अभय सिंह चौटाला ने मंच से कहा कि यहाँ उपस्थित सभी नेता अपनी पार्टी में उपेक्षित हैं इसलिए सभी को मिलकर तीसरा मोर्चा बनाना चाहिए। इस पर रामविलास शर्मा, राव नरबीर और विपुल गोयल ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी बल्कि मौन रहें और मौन का अर्थ होता है स्वीकृति।

इन तीनों नेताओं ने दो बातों पर हांभी भरी है- वे पार्टी में उपेक्षित हैं और तीसरा मोर्चा बनना चाहिए। ताज्जुब है कि राव नरबीर तो मुख्यमंत्री के खास माने जाते हैं फिर भी उन्होंने तीसरे मोर्चे के आह्वान पर प्रतिक्रिया क्यों नहीं दी, क्यों मौन रहें! उन्हें स्पष्ट कहना चाहिए था कि हम तीसरे मोर्चे में शामिल नहीं होंगे। लेकिन वे सभी मौन रहे और अब इस मौन के कई अर्थ निकल रहे हैं। 

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