-कमलेश भारतीय

जी 23 समूह ने आखिर साफ साफ कह दिया कि हमें गांधी परिवार यानी सोनिया गांधी ही चाहिए । कोई गिला शिकवा नहीं है । बस । चुनाव सम्पर्क हों और वरिष्ठजनों का सम्मान । इससे ज्यादा कुछ नहीं चाहिए । पहले हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और बाद में जी 23 की ओर से गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस हाईकमान सोनिया गांधी से मुलाकात की और बातचीत के रास्ते जो दूरी बनी हुई थी , उसे दूर करने की शुरूआत की गयी । संकेतों के अनुसार यह बातचीत पाॅजिटिव है और सही दिशा में है । इससे चर्चा फैल गयी कि हरियाणा में आप पार्टी की बढ़ती गतिविधियों को देखते हुए नेतृत्व परिवर्तन करने पर हाईकमान विचार कर रही है । जब आप कार्यकर्त्ता की नब्ज नहीं पकड़ेंगे तब तक सकारात्मक परिणाम कैसे मिलेंगे ? अब परिवर्तन कब होता है और क्या होता है , इस पर रणनीति निर्भर है । चर्चायें जोरों से चल रही हैं कि युवा शक्ति को कमान सौंपी जा सकती है । कमान जिसे भी मिले संगठनात्मक ढांचे को पुनर्जीवित करना जरूरी है । नहीं तो आपको चुनाव में बस्ता उठाने वाले नहीं मिलेंगे । दूसरा गुटबाजी से दूर रहने की जरूरत है ।

इधर वरिष्ठ नेता मणिशंकर ने भी कहा है कि गांधी परिवार का कोई विरोध नहीं है जी 23 समूह में । विरोध है नीतियों का और संगठन को दुरूस्त करने की मांग का । लेकिन क्या मणिशंकर जी ने अपने दिये गये बयानों की जांच पड़ताल की कि कितना नुकसान पहुंचाते रहे कांग्रेस को ? कभी चाय वाला कहा तो देश भर में नमो टी स्टाल खुल गये । कभी नीच तो कभी कुछ । ये बयान भाजपा को संजीवनी प्रदान करने वाले रहे । क्या अपनी जुबान पर लगाम लगाने पर विचार करेगे ? कभी मनीष तिवारी की किताब में ताज प्रकरण को उछालना कांग्रेस को नुकसान पहुंचा गया तो कभी किसी और कांग्रेसी के बयान से भाजपा को लाभ पहुंचा । ये कैसे वरिष्ठ कांग्रेस हैं ? ऐन चुनावों के मौके पर ऐसे बयान जिसे भाजपा चतुर क्रिकेट खिलाडियों की तरह तुरंत लपकती रही और कांग्रेस अपने ही जाल में फंसती गयी ।

बस । गांधी परिवार चाहिए और अपनी जुबान पर लगाम भी लगा लेनी चाहिए ।
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।

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